मेरा आँगन

मेरा आँगन

Monday, July 15, 2013


सुदर्शन रत्नाकर
1
तुम्हारी हँसी
सितार बजा गई
सूने घर में ।
2
धूप
-सी हँसी
आँगन में उतरी
सहला गई।

-0-

किचन की रानी


-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

गुड़िया रानी बनी सयानी
कुछ  करके  दिखलाएगी ।
किचन का सभी काम सँभाला
दाल और भात खिलाएगी ॥

Saturday, July 13, 2013

सुनहरी सुबह




पंछियों ने चहककर कहा-
उठो, जागो, प्यारे बच्चो कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

चुपके से ठंडी हवा ने कपोलों को छूकर कहा-
खिड़कियाँ खोलो जरा, देखो तुम्हें नजारा बुला रहा है
वो देखो बादलों की रजाई में दुबका सूरज भी कुनमुनाकर जाग उठा है
तुम भी आलस छोडो प्यारे बच्चो कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

पलकें उठाकर तो देखो अपनी बगिया को
रंग बिरंगी यूनिफार्म में सजकर तितलियाँ भी पराग लेने चल पड़ीं हैं
तुम भी चल पड़ो बस्ता लेकर कि तुम्हें स्कूल बुला रहा है |

पन्ने फडफड़ाकर कब से तुम्हें जगा रही है तुम्हारी प्यारी कॉपी
कह रही, संग चलूंगी मैं भी, छोड़ न देना मुझे घर पे अकेली |
अरे रे ..मचल उठी है नन्हीं कलम भी , हाथों में आने को बेकल
लुढ़क ना जाए रूठकर उसे थाम लो तुम
लिख डालो नई इबारत कि तुम्हें स्कूल बुला रहा है |

आओ कि बाहें फैलाकर खड़ा है विद्यालय प्रांगण
हँसा दो अपनी खिलखिलाहट से कि गूँजे दिशाएँ
आओ कि पेड़ों ने तुम्हारी राहों में फूल बिखराए है
नन्हे हाथों से तुमने रोपे थे जो पौधे
प्यास उनकी बुझा दो कि तुम्हे स्कूल बुला रहा है |

देखो तो ज़रा , द्वार पे खड़ा सुरक्षा- प्रहरी
तुम्हारे स्वागत में, मूँछों में मुस्कराया है |
तोतली मीठी बोली में काका सुनकर मन उसका हरषाया है |
बाँध लो सबको पावन रिश्तों में कि तुम्हें स्कूल बुला रहा है |

आशीष तुम्हे देने को कब से खड़ी माँ शारदा वागेश्वरी
वीणा के तारों को सुर दो कि तुम्हें स्कूल बुला रहा है |
नन्ही उँगलियों से थामकर कलम को
चल पड़ो सृजन पथ पर कि तुम्हें स्कूल बुला रहा है |

चले आओ प्यारे बच्चो कि तुम्हें स्कूल बुला रहा है |



कमला निखुर्पा 
प्राचार्य,
के.वि.क्रमांक २ सूरत 

Friday, June 7, 2013

हार्दिक शुभ कामनाएँ-5 जून-6 जून

शान्तनु काम्बोज
शान्तनु काम्बोज और तरुणा काम्बोज
"उपवन के प्यारे पुष्पों को
           खिलती खूब बहार मिले ,
सुन्दर सरस मधुर हो जीवन
           स्नेहपूर्ण व्यवहार मिले |
नयी मंजिलें ,शिखर नए हों
           नित नित हो आगे बढ़ना
पग पग पर पथ सरल हो इतना
           कठिनाई को हार मिले.......
प्रिय शान्तनु(नन्हा हाइकु)और
सुशान्त काम्बोज,( बैठे मयंक , मिहिर)
उसके माता-पिता जी ..
व परिवारी जन को 
जन्म दिवस पर 
हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ ...:))

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

Saturday, May 18, 2013

नवांकुर


आज नवांकुर  में प्रस्तुत है , बहुमुखी प्रतिभा की धनी अन्वीक्षा श्रीवास्तव , कैलिफ़ोर्निया और कविता में कलम आज़माने वाले ॠतिक काम्बोज
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1-सम्मान
-अन्वीक्षा श्रीवास्तव



2-कविताएँ
-ॠतिक काम्बोज
1-दान
जो नर आत्म-दान से अपना जीवन-घट भरता है,
वही मृत्यु के मुख मे भी पड़कर न कभी मरता है।
 दान कर मनुष्य स्वयं को जीने योग्य है बनाता,
दान करने से मनुष्य का क्या है जाता।
दान करोगे तो तुम्हरा ही मान है,
इसे अगर अह्सान समझोगे
तो तुम्हारा जीना ही बेकार है।
यह न स्वत्व का त्याग है,
यह न कोइ व्यर्थ आदान-प्रदान है,
बल्कि स्वर्गलोक मे जाने का यह सबसे आसान काम है।।
-0-
2-प्रकृति के पेड़ पौधे 

पेड़ –पौधे सब कहते रहते
हम जीवन तुमको है देते
फ़िर भी हर दिन काट हमे
इतना कष्ट क्यो तुम हमको देते
बारिश लाते ,छाँव बिछाते
सब के रहने का आशियाना बसाते
फ़िर भी तुम हो हमे काटते
फिर भी तुम हो हमे सताते
क्सिजन वह कहाँ से आएगी
फल सब्जियाँ भी समाप्त हो जाएँगी
और काटोगे अगर तुम हमें
तो कल तुम्हे हमारी ही याद आएगी
अब भी है कहते हम तुमको
प्रकृति हरी- भरी बनाओ
काटो न तुम हम सबको
हरियाली तुम हर जगह फैलाओ
ताज़ा हो जाएगी वह चाय की चुस्की
जो तुम्हे है सर्दियो में पसन्द
और छा जाएगी फ़ुलवारी ,
जब आ जाएगा वसन्त



फिर प्यारी –प्यारी धूप खिलेगी
सबको एक प्यारी ज़िन्दगी मिलेगी
चहक उठेंगे पक्षी गगन में
जब हरियाली धरा पर झूम उठेगी
घूमना ठण्डी-ठण्डी हवा मे तुम
संग खाते सेब, केले और अंगूर
पर चाहिए अगर ऐसी ही ज़िन्दगी
तो न कर देना प्रकृति की हरियाली दूर
-0-
3- माँ
माँ का आँचल, माँ का प्यार
जिसने पाया , यह सुखी संसार
माँ, नहीं जाने कोई तेरी माया
तूने ही यह जीवन बनाया
धूप -छाँव में चलती रहती
फिर भी उफ़ तक करती
सारे कष्ट सह हमें खुश रखती
हम गलती करे माँ डाट पिलाती
माँ अगले ही क्षण प्यार जताती
जब बच्चो को दर्द सताए
तब माँ का दर्द दुगुना हो जाए
माँ सुबह जल्दी उठ जाती
बड़े प्यार से हमें जगाती
बच्चो हो जाओ तैयार
करना है छुट्टियों का काम
माँ पढ़ते- पढ़ते हो गए बोर
छुट्टियों मे छाया मस्ती का दौर
आओ मिलकर सब चले
अपनी नानी - दादी की ओर
हे लोगो पत्थर न पूजो
पूजो माँ को बारमबार
यही है असली स्वर्ग का द्वार
यही है माँ का प्यार
यही है माँ का प्यार
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Monday, December 31, 2012

सुशीला शिवराण की दो कविताएँ




सुशीला शिवराण

आज फिर गोलू
पहुँचा अपनी प्यारी दुनिया में
खुशबुओं की क्यारी में
रंग-बिरंगे फूल खिले थे
तरुवर
 तन कर खड़े थे
भँवरे
 गुंजन कर रहे थे
पक्षी खूब चहक रहे थे
नाचा बहुत सुंदर मोर
कारे बदरा सुहानी भोर
पंछी उड़ते नीड़ की ओर
उसे खींचते अपनी ओर

गाल पे  बैठी एक तितली
उसकी प्यारी मुस्कान खिली
बहुत भाई उसे  ये दुनिया
कूचीरंगों में समेट के दुनिया
पुलकित गोलू पहुँचा रसोई
मम्मी ज़ोर से बड़बड़ाईं
सहमे-सहमे ही चित्र बढ़ाया
फ़ुर्सत नहीं मम्मी चिल्लाई
भारी कदमों से बढ़ा रीडिंग रूम
कंप्यूटर चालू ,पापा गुम
धीरे से पुकारा,"पापा"
बिन देखे झल्लाए पापा -
"देखते नहीं फ़ुर्सत नहीं ?
बाद
 में कहना!"
-0-
2-किसकी रोटी?

दो बिल्लियाँ
पक्की सहेलियाँ
एक ने देखी रोटी
दूजी ने लपक उठाई
पहली बोली - मेरी रोटी
दूजी बोली- हट मेरी है
पहली कहती – मैंने देखी पहले
यह रोटी मेरी है
दूजी बोली उससे क्या
लपक उठाई मैंने
यह तो अब मेरी है!

दोनों में हुआ विवाद बहुत
बुलाए गए बंदर मामा

जानके झगड़ा रोटी का
खूब मुस्काए बंदर मामा
‘’ला दो एक तराजू’’- बोले
‘’रोटी को हम आधा तोलें ।’’

चालाक बड़े थे बंदर मामा
रोटी के दो भाग किए
एक बड़ा और एक छोटा
पलड़ों में वो रख दिए
तोड़ा बड़ा टूक, झुके पलड़े से
लगते देखो कितने सीधे-से
झुका पलड़ा दूजा जब
तोड़ा टूक वहाँ से तब
झुकते पलड़े बारी-बारी
चट कर गए वे रोटी सारी!

बिल्लियों का बड़ा बुरा था हाल
चूहों ने जब पेट में मचाया धमाल
दोनों को भैया एक बात समझ में आई
अच्छी नहीं होती देखो आपस की लड़ाई।
-0-


Thursday, November 15, 2012

आ जा रे चन्दा ! (लोरी)


डॉ सुधा गुप्ता

आ जा रे चन्दा !
मुनिया की आँखों में
निंदिया छाई
रेशम के पंखों पे
बैठ के आई
शहद -भरी लोरी
      सुना जा रे चन्दा !
आ जा रे चन्दा !
मुनिया की आँखों में
      मीठे सपने
घूम-घूम, झूम
      तितली लगी बुनने
जादू -भरी छड़ी
      छुआ जा रे चन्दा !
आ जा रे चन्दा !
-0-

Wednesday, November 14, 2012

माँ कहती है-



डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा

सब मुझको "मीठी" कहते हैं 
,
माँ कहती है कम बतियाओ ।

मेरी फ्राक बड़ी है सुन्दर
 
माँ कहती है मत इतराओ ।






पापा कहते परी हूँ उनकी ,

माँ कहती है मुँह धो आओ । 


बच्चे कहते आओ खेलें ,

माँ कहती है -पढने जाओ ।


प्यारी सखी  से हुई लड़ाई

माँ कहती है- भूल भी जाओ । 


मेरी गुड़िया सोई न अब तक ,

माँ कहती है- अब सो जाओ । 


आँख में आँसू देखे- बोले 
,
गले लगा लूँ पास तो आओ ।
-0-


Sunday, September 23, 2012

भैया बहुत सताए मुझको


डॉ ज्योत्स्ना शर्मा


भैया बहुत सताए मुझको
चोटी खींच रुलाए मुझको ।
गुड़िया मेरी छीने भागे
पीछे खूब भगाए मुझको ।

मेरी पुस्तक ,रंग उसके हैं
खेलें कैसे, ढंग उसके हैं
क्या खाना है, क्या पहनाऊँ
नए- नए हुड़दंग उसके हैं ।

फिर भी तुमको क्या बतलाऊँ
प्यार उसी पर आए मुझको  ।
मेरा प्यारा न्यारा भैया  ,
कभी दूर ना भाए मुझको ।
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Monday, June 18, 2012

स्वागत

1-सुदर्शन रत्नाकर
1
स्वागत शिशु
आगमन तुम्हारा
खुशियाँ लाया ।
2
तेजस्वी बनो,
नाम रोशन करो,
दुआ है मेरी








2- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तरु हर्षित
उगी नई  कोंपल
शान्त कोमल  ।
-0-











3-कमला निखुर्पा
1
पलकें मूंदे
जगाए है सबको
नन्हा हाइकु |
2
बंद ये  मुट्ठी
खुशियाँ  बिखराए
नन्हा हाइकु |
-0-