मेरा आँगन

मेरा आँगन

Saturday, March 22, 2008

शुभ कामनाएँ !

डा प्रियंका मिश्र

पूर्व छात्रा के वि 1 आगरा

फागुन की रुत में

रंगों की बहार ।

पिचकारी की फुहार में

खुशियों की बौछार ।

गुझियों की मिठास में

प्रियजनों का प्यार ।

मुबारक हो आपको

होली का त्यौहार !

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Wednesday, March 19, 2008

हाथी दादा की होली




रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

मोटू हाथी लाया भरकर
सूँड में अपनी रंग ।
लिए खड़े थे जो पिचकारी
वे सब रह गए दंग ॥
रंग सभी पर बरसा करके
दादा जी मुस्काए ।
किसमें दम जो मेरे ऊपर
आज रंग बरसाए।
भीगे बन्दर, भालू ,चीता
खेली ऐसी होली ।
हाथी के आगे टिक पाई
नहीं एक भी टोली ।।
हुई शाम को दावत जमकर
लाए सभी मिठाई ।
आधी खाई हाथी जी ने
आधे में सब भाई ।।

सुस्त गधेराम



डा .भावना कुँअर


गधेराम थे सुस्त बड़े
सो जाते थे खड़े- खड़े।

भाता नहीं था कोई काम
हर पल करते थे आराम।

मालिक रोज़ उन्हें समझाता
गधे राम को समझ न आता।

मालिक कहते 'काम करोगे'
खूब फलोगे स्वस्थ रहोगे।

सुनते थे वो कान दबाये
बिना आँख से आँख मिलाये।

आज़ पड़े हैं वो बीमार
घुटने हो गये हैं बेकार।

टप-टप आँसू खूब बहाये
पर घुटनों से उठ ना पाये।

रोज़ ही करते गर वो काम
स्वस्थ ही रहते सुबहो शाम।
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