मेरा आँगन

मेरा आँगन

Thursday, December 3, 2015

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तीन कविताएँ

डॉरामनिवास मानव



1-हुई सुबह

उठो मियाँ  अब हुई सुबह,
स्वच्छ धुली अनछुई सुबह।

उठकर चन्दातारे अब,
गये घूमने सारे तब।
तुम भी उठो, घूमोफिरो,
क्यों सोये हो प्यारे अब !

ओस, फूल, खुशियाँ  लेकर,
आई है जादुई सुबह।

कौआ कहता रोटी दो,
चाहे छोटीमोटी हो।
चिड़िया गुस्से में बैठी,
कहती मेरा गीत सुनो।

अब इनको क्या कहना है,
पूछती छुईमुई सुबह।

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2-मोनू राजा

मोनू राजा आजा,
बैठ बजाएँ बाजा।
मिलकर सुनें कहानी,
राजा था या रानी।

खेलें चोरसिपाही,
मेटें सभी बुराई।
तितली पकड़ें भागें,
परीलोक में जागें।

पीयें दूधबताशा,
देखें खूब तमाशा।
नहीं किसी को डांटें,
जीभर खुशियाँ  बांटें।
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3- मोनू का उत्पात

पापाजी का पैन चुराकर,
मूँछ बनाई मोनू ने।
दादाजी का बेंत उठाकर,
पूँछ लगाई मोनू ने।

करने लगे उत्पात अनेक,
उछलउछल कर फिर घर में।
किया नाक में दम सभी का,
मोनूजी ने पलभर में।

मम्मी के समझाने से भी,
न मोनू महाशय माने।
डंडाजी जब दिये दिखाई,
तब आ होश ठिकाने।
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Friday, October 30, 2015

दीवाली



प्रकृति दोशी

फिर से दीवाली आई
संग लेकर खुशियाँ आई।
घर- घर हो रही सफाई,
फिर से दीवाली आई।

अपने प्यारे घर में भी,
 होगी लो आज पुताई।
फिर से दीवाली आई।

दादी -मम्मी मिलकर सब
बना रहे हैं मिठाई।
फिर से दीवाली आई।

हम भाई- बहनों ने मिल
रंगोली है बड़ी सजाई।
फिर से दीवाली आई।

खूब बताशे खाएँगे हम
झोली भरकर मिलेगी लाई।
फिर से दीवाली आई।

घर के सब लोगों ने मिल
फुलझड़ी खूब चलाई।
फिर से दीवाली आई।
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Tuesday, October 20, 2015

दादी


मंजूषा मन

छोड़ अपना गाँव पीपल की छाँव।
दादी ने रखा था  शहर में पाँव।

भाई नहीं उनको  यहाँ की हवा
चल ही न पाई ये जीवन की नाव।

ना दिखी थी धरती ना आसमान
जँची न किसी तरह  उनको ये ठाँव।

पौधे  ना थे न फूलों की बगिया
चिड़िया की चूँ चूँ न कौए की काँव।

समझ आ गया मुझे दादी का दुख
लो चलते  हैं अब हम फिर से गाँव।

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