मेरा आँगन

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Monday, October 27, 2008

धरती हिन्दुस्तान की

धरती हिन्दुस्तान की

-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

 

जहाँ आकरके रही लौटती सेनाएँ तूफ़ान की।

हमको प्राणों से भी प्यारी धरती हिन्दुस्तान की ॥

चारों वेदों के मन्त्रों से गूँजा ये आकाश था

जिसके चप्पे-चप्पे में सत् विद्या का प्रकाश था ।

जगद्गुरु बनकरके पताका ऊँची की सम्मान की ॥

गंगाजमुना नहीं हैं नदियाँ पावन दूध की धारा हैं ।

इन्हीं के बलबूते पर हमने शत्रु को ललकारा है ।

इसी अमृत को पीकर हमने बाजी लगाई जान की ॥

बाहें मिलाकर वीर बाँकुरे शेरों से भी खेले हैं

अंगारों की बरसातों में वार भयंकर झेले हैं ।

गूँज रही अब तक हुंकारें 'वन्देमातरम्' गान की ॥

बहिनों ने भाई के माथे लहू के तिलक लगाए हैं

हाथों में तलवारें लेकर रण में जौहर दिखाए हैँ ।

मार मार कर दुश्मन की सेनाएँ लहू-लुहान की ॥

अडिग हिमालय हम सब वासी सागर से गम्भीर हैं

दुश्मन की गर्दन की खातिर, हम पैनी शमशीर है ।

आई जिसे सींचती वाणी गीता और क़ुरान की ॥

हमको प्राणों से भी प्यारी धरती हिन्दुस्तान की ॥

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बाल-कविता(हास्य)

बाल-कविता(हास्य)
गधा आदमी से अच्छा
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

छज्जू मास्टर एक रोज़ बच्चों को पढ़ा रहे थे॥
जो नहीं पढ़ पाता उसको मुर्ग़ा बना रहे थे ।।
पतली छड़ी से पीट-पीट कह रहे थे ऊँचे स्वर से॥
गधे से बनोगे तुम आदमी इस पिटने के डर से ।।
नन्दू कुम्हार पास से गुज़रा तो सुनकर चकराया ।
छज्जू मास्टर के चरणों में जा अपना शीश झुकाया ॥
“एक गधा घर मेरे बँधा है आदमी उसे बना दो॥
जो भी इसकी फ़ीस लगेगी झटपट मुझे बता दो॥”
छज्जू बोले-“नन्दू भैया !कुल रुपए लगेंगे बीस ।
गधे से आदमी बनने में दिन गुज़रेंगे तीस।”
यह सुनकरके नन्दू अपने मन में बहुत हर्षाया ।
तीस दिनों के बाद वह फिर विद्यालय में आया ॥
उसे देखकर छजू मास्टर पड़ा बहुत चक्कर में ।
बेच चुका था उस गधे को वह पूरे सत्तर में ॥
नन्दू से फिर यूँ बोला-“सीधे थाने जाओ।
दरोग़ा बना गधा तुम्हारा जल्दी से ले आओ॥”
पहुँचा नन्दू जब थाने में दरोगा पड़ा दिखाई।
“मेरे गधे घर चल जल्दी”-ये आवाज़ लगाई ॥
बार –बार जब कहा गधा तो लात दरोगा ने मारी ।
बोला नन्दू-“आदमी बनकर भी न आदत गई तुम्हारी॥
तुम्हें आदमी बनाने में गधा हाथ से खोया ।
आज बने हो तुम दरोगा कल तक बोझा ढोया॥”
बुरी तरह पिटकरके नन्दू जब घर वापस आया
‘गधा आदमी से अच्छा’ –मन को यूँ समझाया ॥
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