मेरा आँगन

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Monday, October 27, 2008

बाल-कविता(हास्य)

बाल-कविता(हास्य)
गधा आदमी से अच्छा
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

छज्जू मास्टर एक रोज़ बच्चों को पढ़ा रहे थे॥
जो नहीं पढ़ पाता उसको मुर्ग़ा बना रहे थे ।।
पतली छड़ी से पीट-पीट कह रहे थे ऊँचे स्वर से॥
गधे से बनोगे तुम आदमी इस पिटने के डर से ।।
नन्दू कुम्हार पास से गुज़रा तो सुनकर चकराया ।
छज्जू मास्टर के चरणों में जा अपना शीश झुकाया ॥
“एक गधा घर मेरे बँधा है आदमी उसे बना दो॥
जो भी इसकी फ़ीस लगेगी झटपट मुझे बता दो॥”
छज्जू बोले-“नन्दू भैया !कुल रुपए लगेंगे बीस ।
गधे से आदमी बनने में दिन गुज़रेंगे तीस।”
यह सुनकरके नन्दू अपने मन में बहुत हर्षाया ।
तीस दिनों के बाद वह फिर विद्यालय में आया ॥
उसे देखकर छजू मास्टर पड़ा बहुत चक्कर में ।
बेच चुका था उस गधे को वह पूरे सत्तर में ॥
नन्दू से फिर यूँ बोला-“सीधे थाने जाओ।
दरोग़ा बना गधा तुम्हारा जल्दी से ले आओ॥”
पहुँचा नन्दू जब थाने में दरोगा पड़ा दिखाई।
“मेरे गधे घर चल जल्दी”-ये आवाज़ लगाई ॥
बार –बार जब कहा गधा तो लात दरोगा ने मारी ।
बोला नन्दू-“आदमी बनकर भी न आदत गई तुम्हारी॥
तुम्हें आदमी बनाने में गधा हाथ से खोया ।
आज बने हो तुम दरोगा कल तक बोझा ढोया॥”
बुरी तरह पिटकरके नन्दू जब घर वापस आया
‘गधा आदमी से अच्छा’ –मन को यूँ समझाया ॥
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1 comment:

सुनीता काम्बोज said...

बहुत सुंदर बाल रचना भैया जी आरी सुंदर