मेरा आँगन

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Tuesday, May 5, 2020

157


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


6-पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ, पेड़ लगाओ
गुरु जी हमको समझाते ।

बिना पेड़ धरती है सूनी
पेड़ सभी हैं खुशियाँ लाते।

मीठे फल और सुन्दर फूल,
छाया देकर सुखी बनाते ।
-0-


7-मेरी गुड़िया

मेरी भोली गुड़िया रानी
सुनती मुझसे रोज़ कहानी।

आँखें नीली सुन्दर बाल
परियों -जैसी इसकी चाला

बढ़िया जूते-कपड़े पहने
मेरी गुड़िया के क्या कहने !

-0-
8-विद्यालय

लेकर बस्ता हँसी -खुशी से
विद्यालय में जाते हम ।

मिल-जुलकर हम पढ़ते-लिखते
मिल-जुल करके गाते हम ।

अच्छी-अच्छी बातें ही सब
सदा सीखकर आते हम ।
-0-
9-मदारी

डुगडुग- डुगडुग डमरू बजता
उछल-उछलकर चले मदारी ।
नाचे बन्दर और बंदरिया
भीड़ देखती उनको सारी।

रूठ बंदरिया घर को जाती
बंदर उसे मनाकर लाता।
कान पकड़कर्। नाक रगड़कर
देखो सबका मन बहलाता ।

-0-
10-प्रार्थना

हरे-भरे पेड़ और पौधे
हे भगवान् ! बनाए तुमने ।

रंग-बिरंगे ख़ुशबू  वाले
अनगिन फूल खिलाए तुमने।

तरह-रतह की बोली वाले
पंछी भी चहकाए तुमने ।

सूरज चाँद रोशनी बाँटे
तारे भी चमकाए तुमने ।

-0-

Sunday, May 3, 2020

156



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1-गैया

हरी दूब है गैया खाती
सबको पीठा दूध पिलाती ।

बने दूध से दही-मलाई
तरह -तरह की खूब मिठाई ।
-0--

2-गीत

ढोल बजा मेढक का ढम-ढम
भालू बना बाँसुरी वाला ।

अच्छे साथी मिले गधे को
गीत सुनाता गड़बड़झाला ।
-0-

3-सर्कस

देखो सर्कस का यह खेल
हाथी, घोड़ा ठेलमपेल ।

झूला झूल उछल हवा में
कुछ देखो छलाँग लगाते।

बन्दर , चीता, जोकर आते
सब हैं अपने खेल दिखाते।

-0-

4-नेवले की जीत

समझ नेवले को छोटा
नाग झपट पड़ा ।

बहुत निडर था नेवला
डटकर खूब   लड़ा ।

नेवले की जीत हुई
हारा नाग बड़ा ।

-0-
5-सवारी

आसमान पर जहाज उड़े
जिधर चाहता उधर मुड़े॥

छुक-छुक करके आती रेल
दूर-दूर तक जाती रेल ।

लम्बी सड़क बहुत इठलाती
मोटर इस पर दौड़ लगाती ।
-0-

Monday, July 15, 2013

किचन की रानी


-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

गुड़िया रानी बनी सयानी
कुछ  करके  दिखलाएगी ।
किचन का सभी काम सँभाला
दाल और भात खिलाएगी ॥

Wednesday, April 11, 2012

अन्तर समझिएगा


 किसी भी  शब्द में दो स्वर एक साथ  नहीं जुड़ते ।   हिन्दी के प्रकाशक भी इन गलतियों के लिए जिम्मेदार हैं ।
वर्ण विन्यास समझ लें तो दिक्कत नहीं होगी ।
1-प्+र्+अ=प्र
2-द्+ध्+अ= द्ध
3-श् + र्+अ= श्र
4-श्+ॠ = शृ
 5-श् +र्+अ+ॠ =  श्रृ= हिन्दी में इसका अस्तित्व केवल गलत प्रयोगों में है ।कारण,दो स्वर एक साथ नहीं आ सकते।
6-ध्द=X कुछ लोग युध्द इस तरह लिखते हैं , जो गलत है ।
सही रूप है -युद्ध
8-कोई महाप्राण इस रूप में अल्पप्राण से पहले नहीं आता ।
र् का प्रयोग -क+र्+म= कर्म  अगले वर्ण पर होता है । कुछ लोग  आशीर्वाद को  भूलवश  आर्शीवाद लिखते हैं ।
श के पहले भाग को अलग घुण्डी की तरह भी बनाया जाता है जो पुराने समय से आज तक शब्दकोशों में शामिल है ।
इसे शब्द चित्र में समझाया गया है ।

Wednesday, February 15, 2012

मेरी मुनिया

खिलखिलाई
पहाड़ी नदी-जैसी
मेरी मुनिया ।



इन हाइकु को देने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ-

सुदर्शन रत्नाकर
1
तुम्हारी हँसी
सितार बजा गई
सूने घर में ।
2
धूप
-सी हँसी
आँगन में उतरी
सहला गई ।



Thursday, December 15, 2011

ओ मेरी मैया !



-रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’
बात सुनो  ओ मेरी मैया !
ला दो मुझको ,सोनचिरैया
उसको दाना ,रोज़ खिलाऊँ
जीभर उससे ,मैं बतियाऊँ
उड़ना सीखूँ,मैं भी उससे
उसको मैं हँसना सिखलाऊँ
-0-

Sunday, May 16, 2010

मैं हूँ आलू का पापड़

मैं हूँ आलू का पापड़

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

मैं हूँ आलू का पापड़। मैं छोटे-छोटे बीज के रूप में था। किसान ने खेत की जुताई करके मुझे जमीन में दबा दिया। मेरा दम घुटने लगा। मुझे लगा मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएँगे। किसान ने सिंचाई की। मुझसे अंकुर निकलने लगे और ऊपर की कोमल जमीन को चीरकर खुली हवा में साँस लेने का मौका मिला। ठण्ड पड़ने लगी। लगा कि मेरे पत्ते सूख जाएँगे। किसान ने सिंचाई करके मुझे सूखने से बचाया। कुछ कीट-पंतगों ने भी मेरे स्वास्थ्य को खराब करने का बीड़ा उठाया। मेरा मालिक बहुत होशियार था। उसने कीटनाशक छिड़ककर मुझे होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिला दिया। मैं धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। जमीन के भीतर मेरा आकार बढ़ने लगा।

किसान ने खुदाई करके मुझे बाहर निकाल लिया। बाहर का संसार बहुत सुन्दर था। एक दिन एक हलवाई मुझे खरीदकर ले गया। उसने पहले मुझे बड़े-बड़े भगौनों में उबाला। फिर मेरा छिलका बड़ी बेरहमी से उतारा। मेरी आँखों में इस हलवाई ने नमक-मिर्च झोंक दीं, मसाला भी मिला दिया। मुझे बुरी तरह कुचलकर बेलन से बेला और पापड़ बनाए। वह मुझे इतनी जल्दी छोड़ने वाला नहीं था। उसने मुझे तेज धूप में डाल दिया। मैं रो भी नहीं सकता था। इसके बाद उसने मुझे खौलते तेल में डालकर तला। आलू से पापड़ बनने की यह मेरी कष्टकारी यात्रा थी। अब आपकी प्लेट में सजाया गया हूँ ।

-00-

Monday, May 10, 2010

हरियाली ने बौर सजाया

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जन्म दिन वह याद है आया
पेड़ भेंट में मैंने पाया ।
आँगन में वह पेड़ लगाया
पानी उसको रोज पिलाया ।
पानी पीकर निकली डाली
डाली पर छाई हरियाली ।
हरियाली ने बौर सजाया
खुशबू से आँगन महकाया
आँगन में गाती मतवाली
कुहू -कुहू कर कोयल काली ।
महका बौर आम भी आए
हम सबने मिल-जुलकर खाए ।
-00-

Friday, April 23, 2010

विश्व पुस्तक -दिवस के अवसर पर विशेष



धनेश के बच्चे ने उड़ना सीखा

लेखक: दिलीप कुमार बरूआ ,अनुवाद : पंकज चतुर्वेदी ,चित्रांकन:पार्थ सेनगुप्ता

खरगोश और कछुए की दौड़

लेखक: किरण तामूली ,अनुवाद : पंकज चतुर्वेदी ,चित्रांकन:समरज्योति दास

प्रथम संस्करण: 2010 , मूल्य : 16 रुपये , पृष्ट :20 (आवरण सहित)

प्रकाशक: नेशनल बुक ट्रस्ट ,इण्डिया , नेहरू भवन ,5 इंस्टीट्यूशनल एर्या फेज़-दो , वसन्तकुंज , नई दिल्ली-110070

धनेश के बच्चे ने उड़ना सीखा में धनेश ( कठफोड़वा)पक्षी की जीवन शैली को कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया है । अण्डे देने के समय किस प्रकार धनेश बीट से मादा के आवास को सुरक्षित कर देता है, यह जानकारी बहुत रोचक है । साथ ही अण्डे देने और उन्हें सेने के समय नर धनेश किस निष्ठा से मादा के पोषण ध्यान रखता है, सचमुच बहुत महत्त्वपूर्ण है ।

खरगोश और कछुए की दौड़ पुस्तक में पुरानी कहानी को नए सन्दर्भों में प्रस्तुत किया गया है । दौड़ में फिर कछुआ ही जीतता है । अधिक खाने के कारण खरगोश हार जाता है । औसे अवसर पर अन्य जंगली जानवरों की उपस्थिति कथा को और अधिक रोचक बना देती है ।

पुस्तकें सजीव एवं उत्कृष्ट चित्रों से सुसज्जित है । चित्रांकन कथा को सरस बनाने और छोटे बच्चों का मन मोहने में हर दृष्टि से सक्षम हैं । पंकज जी के अनुवाद में मूल जैसा कथा-प्रवाह दृष्टिगोचर होता है।

इन दोनों पुस्तकों की पाण्डुलिपियाँ असमिया बाल पत्रिका “मौचक” के सहयोग से जोरहाट में आयोजित कार्यशाला में तैयार की गई थीं ।

-प्रस्तुति- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Sunday, April 18, 2010

हरियाली और पानी





-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत दिन पहले की बात है-हरियाली और पानी बहुत प्रेम से रहते थे ।बरगद ,पीपल ,आम और नीम की छाया में लेटकर पानी को बहुत सुख मिलता था। इन वृक्षों की हरियाली पानी पीकर और भी गहरी हो गई थी ।
एक दिन हरियाली बोली-“भाई पानी !तुम बहुत आलसी हो । दिन भर लेटे रहते हो। थोड़ी देर के लिए घूम -फिर लिया करो।”
पानी को हरियाली की यह सलाह अच्छी नहीं लगी ।वह नाराज़ होकर बोला-“यदि मैं यहाँ से चला गया, तो तुम नष्ट हो जाओगी।”
हरियाली तुनुक उठी-“जाना चाहते हो, जाओ । किसने रोका है तुमको?”
“ मैं जा रहा हूँ”-कहकर पानी चल दिया, “कुछ ही दिनों में पत्ते सूख जाएँगे ।उसके बाद तना और जड़ भी। तब तुम्हें पता चलेगा।”
पानी रूठकर कहीं दूर चला गया ।
पानी के वहाँ न होने से चारों तरफ़ धूल उड़ने लगी, बरगद ,पीपल ,आम और नीम के पत्ते मुरझाने लगे ।कुछ ही दिनों में सारे पत्ते पीले पड़ गए ।
बूढ़े बरगद ने बीमार और कमज़ोर हरियाली से कहा-“ तुमने पानी के साथ झगड़ा करके अच्छा नहीं किया ।पानी के बिना मेरा सिर चकराने लगा है।”
“गर्मी से हमारा भी जी घबराने लगा है”- आम ,नीम और पीपल बोले ।
“मुझसे भूल हो गई है । मैं पानी से क्षमा माँगना चाहती हूँ ”-हरियाली ने चारों वृक्षों से कहा ।
“ हाँ ,यही ठीक रहेगा”-चारों वृक्ष बोले ।
उधर हरियाली के बिना पानी भी दु:खी रहने लगा था । दिन भर धूल उड़ती और उसकी आँखोंमें भरती रहती ।सूरज तपता , जिससे उसके शरीर में जलन होने लगती। पानी जब हरियाली की बातें याद करता तो गुस्से से भर उठता ।उधर पीले पत्ते सूखकर धरती पर गिर पड़े ।
एक दिन पत्ते तेज़ हवा के झोंके के साथ उड़कर पानी को ढूँढ़ने के लिए निकल पड़े ।दिन भर उड़ते रहने के बाद उन्होंने पानी को ढूँढ़ लिया ।
सूखे पत्तों की दशा देखकर पानी को बहुत पश्चात्ताप हुआ ।पत्तों ने पानी को सभी वृक्षों की दुर्दशा के बारे बारे में विस्तार से बता दिया । सभी वृक्ष प्यास के कारण सूखने लगे थे ।
पानी ने वृक्षों की प्यास बुझाकर हरियाली को बचाने का दृढ़ निश्चय किया ।सूर्य की तेज़ धूप में उसका शरीर झुलसने लगा । चलते-चलते साँस फूलने लगी। सामने रेतीला मैदान था । पानी ने सोचा-रेतीला मैदान मुझे पी जाएगा। बरगद ,पीपल ,आम और नीम तक पहुँचना कठिन हो जाएगा ।
गर्मी के कारण धरती में जगह-जगह दरारें पड़ गई थीं ।पानी धीरे -धीरे बहकर उन दरारों में भर गया ।वह तीव्रता से आगे बढ़ने लगा ।
पानी ज़मीन के भीतर चलने लगा । रास्ते में कई चट्टानों ने उसका मार्ग रोकने की चेष्टा की ।पानी प्रयास करके फिर रास्ता ढूँढ़ लेता । चलते-चलते थकान के कारण वह हाँफने लगा । आगे बढ़ना कठिन हो गया । उसे कुछ जानी-पहचानी खुशबू महसूस हुई ।उसने छुआ- सूखी-सूखी उँगलियाँ-सी भीगने लगी। वह खुशी से उछल पड़ा-अरे! यह तो नीम है!”
वह दुगुने जोश से चलने लगा ।दूर- दूर तक फैली बरगद दादा की जड़ें भीगने लगीं। पानी ने थोड़ी ही देर में चारों वृक्षों की जड़ों को भिगो दिया । सूखी डालियों में नमी भरने लगी ।कुछ ही दिनों में कोंपलें निकल आईं । चारों वृक्ष हरे -भरे हो उठे ।
हरियाली ने पानी को गले से लगा लिया-“भैया !मुझे क्षमा कर दो ।मैं तुम्हें कभी बुरा-भला नहीं कहूँगी।”
“ग़लती मेरी ही थी”-पानी रोने लगा। टप्-टप् आँसू गिर रहे थे-“मैं तुम्हें छोड़कर कभी नहीं जाऊँगा।”
तब से हरियाली और पानी साथ-साथ रह रहे हैं ।
-0-

Sunday, December 20, 2009

पानी



रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
मैं पानी हूँ मैं जीवन हूँ
मुझसे सबका नाता ।
मैं गंगा हूँ , मैं यमुना हूँ
तीरथ भी बन जाता ।
मैं हूँ निर्मल पर दोष सभी ,
औरों के हर लेता ।
कल तक दोष तुम्हारे थे जो ,
अपने में भर लेता ।
पर सोचो तो मैं यों कब तक ,
कचरा भरता जाऊँ !
मुझको जीवन भी कहते हैं ,
मैं कैसे मरता जाऊँ !
गन्दा लहू बहा अपने में
कब तक चल पाता तन
मैं धरती की सुन्दरता हूँ ,
हर प्राणी की धड़कन ।
मेरी निर्मलता से होगी,
धरती पर हरियाली ।
फसलों में यौवन महकेगा,
हर आँगन दीवाली ।
नदियाँ ,झरने ,ताल-तलैया ,
कुआँ हो या कि सागर ।
रूप सभी ये मेरे ही हैं,
एक बूँद या गागर ।
हर पौधे की हर पत्ती की
प्यास बुझाऊँ जीभर ।
पर जीना दूभर होगा ये,
दूषित हो जाने पर ।
-0-

Saturday, August 15, 2009

जागरूक भारत



रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
  धर्मान्धता संक्रामक रोग है , मतान्धता विष है , जातिवाद पागलपन है , क्षेत्रीयतावाद राष्ट्र की जड़ों को खोखला करने वाला घुन है और भ्रष्टाचार इन सबका बाप है । स्वयं को श्रेष्ठ न होते हुए भी श्रेष्ट होने की भावना इन मरणान्तक व्याधियों को बढ़ावा देती है । ये सभी व्याधियाँ राष्ट्र को कमज़ोर करती हैं ।
  चुनाव के समय इनका असली प्रकोप देखा जा सकता है । अच्छे लोकतन्त्र के लिए ये सबसे बड़ा खतरा हैं । इनका सहारा लेकर जब तक वोट माँगने का सिलसिला बरकरार रहेगा ; तब तक ये राष्ट्र को कुतरते रहेंगे । इस अवसर पर जैसे भी जीत मिले ; उसी तरह के हथकण्डे अपनाए जाते हैं ।
  आर्थिक शक्तियाँ कुछ लोगों तक सीमित होती जा रही हैं ।भ्रष्टाचार शिष्टाचार का स्थान लेता जा रहा है । शिक्षा समर्पित लोगों के हाथ में न होकर व्यापारियों के हाथ में चली गई है ।यह ख़तरा देश का सबसे बड़ा ख़तरा है । भू माफिया की तरह शिक्षा माफिया का उदय इस सदी की सबसे बड़ी विडम्बना और अभिशाप हैं । भारत की बौद्धिक सम्पदा का एक बड़ा भाग उच्च शिक्षा से निकट भविष्य में वंचित होने वाला है । इसका कारण बनेंगी लूट का खेल खेलनेवाली धनपिपासु शिक्षा संस्थाएँ; जहाँ शिक्षा दिलाने की औक़ात भारत के ईमानदार 'ए' श्रेणी के अधिकारी के बूते से भी बाहर हो रही है । सामान्यजन किस खेत की मूली है ।
  एक वर्ग वह है जो सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाओं को अपनी तिकड़म से पलीता लगाने में माहिर है । वह सारी सुविधाओं को आवारा साँड की तरह चर जाता है । तटस्थ रहकर काम नहीं चल सकता । हमें समय रहते चेतना होगा; अन्यथा हम भी बराबर के कसूरवार होंगे । समृद्ध भारत के लिए हमें सबसे पहले जागरूक भारत बनाना होगा । सोया हुआ
उदासीन भारत सब प्रकार की कमज़ोरियों का कारण न बने ; हमें यह प्रयास करना होगा । हमें आन्तरिक षड़यन्त्रों पर काबू पाना होगा; तभी हम देश के बाहरी दुश्मनों का मुकाबला कर सकते हैं । हम यह बात गाँठ बाँध लें कि कोई देश किसी का सगा नहीं होता , सगा होता है उनका राष्ट्रीय हित । हम राष्ट्रीय हितों की बलि देकर सम्बन्ध बनाएँगे तो धोखा खाएँगे, जैसा अतीत में खाते रहे हैं ।
15 अगस्त 09


Thursday, June 18, 2009

महत्त्वपूर्ण पत्रिकाएँ








ड्रीम 2007
एक अंक : 5 रुपए
सम्पादक :डॉ वी बी काम्बले
हिन्दी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने वाली विज्ञान की महत्त्वपूर्ण पत्रिका है । इसमें प्रत्येक लेख दोनों भाषाओं में प्रकाशित किया जाता है ।विज्ञान में रुचि रखने वाले अध्यापकों एवं छात्रों के लिए एक ज़रूरी पत्रिका है । यह पत्रिका रटने के बजाय व्यावहारिक ज्ञान एवं वैज्ञानिक अभिरुचि को प्रोत्साहित करती है । विज्ञान को रोचक ढंग से प्रस्तुत करना इस पत्रिका का प्रमुख उद्देश्य है ।00000
विपनेट संवाद[ VIPNET NEWS ]
मूल्य :दो रुपए

सम्पादक : बी के त्यागी
सहायक सम्पादक : निमिष कपूर
इस संवाद पत्रिका में विज्ञान क्लब के समाचार और गतिविधियों की जानकारी रहती है ।इस समाचार पत्रिका में हिन्दी और अंग्रेजी में महत्त्वपूर्ण लेख एवं रोचक पहेलियाँ भी रहती हैं। विद्यालयों को भारत सरकार के इस पवित्र कार्य से ज़रूर जुड़ना चाहिए ।
पत्रिकाओं के मिलने का पता:-

विज्ञान प्रसार,सी-24 , कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली-110016
Vigyan Prasar ,C-24, Qutub Institutional Area New Delhi 110016
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प्रस्तुति-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Friday, November 9, 2007

तनाव के त्रिभुज में घिरे बच्चे


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
आज का दौर तरह-तरह के तनाव को जन्म देने वाला है ,घर-परिवार ,कार्यालय ,सामाजिक परिवेश का वातावरण निरन्तर जटिल एवं तनावपूर्ण होता जा रहा है ,इसका सबसे पहले शिकार बनते हैं निरीह बच्चे ।घर हो या स्कूल , बच्चे, समझ ही नहीं पाते कि आखिरकार उन्हें माता-पिता या शिक्षकों के मानसिक तनाव का दण्ड क्यों भुगतना पड़ता है। घर में अपने पति /पत्नी या बच्चों से परेशान शिक्षक अपने छात्रों पर गुस्सा निकालकर पूरे वातावरण को असहज एवं दूषित कर देते हैं। विद्यालय से लौटकर घर जाने पर फिर घर को भी नरक में तब्दील करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते ।यह प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण छात्रों के मन पर गहरा घाव छोड़ जाता है । कोरे ज्ञान की तलवार बच्चों को काट सकती है ,उन्हें संवेदनशील इंसान नहीं बना सकती है ।शिक्षक की नौकरी किसी जुझारू पुलिसवाले की नौकरी नहीं है,जिसे डाकू या चोरों से दो-चार होना पड़ता है ।शिक्षक का व्यवसाय बहुत ज़िम्मेदार, संवेदनशील ,सहज जीवन जीने वाले व्यक्ति का कार्य है ; मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति का कार्य- क्षेत्र नहीं है । आज नहीं तो कल ऐसे दायित्वहीन,असंवेदनशील लोगों को इस क्षेत्र से हटना पड़ेगा या हटाना पड़ेगा।प्रशासन को भी यह देखना होगा कि कहीं इस तनाव के निर्माण में उसकी कोई भूमिका तो नहीं है ?
छात्रों पर बढ़ता निरन्तर पढ़ाई का दबाव ,अच्छा परीक्षा-परिणाम देने की गलाकाट प्रतियोगिता कहीं उनका बचपन ,उनका सहज जीवन तो नहीं छीन ले रही है ?घर,विद्यालय ,कोचिंग सैण्टर सब मिलकर एक दमघोंटू वातावरण का सर्जन कर रहे हैं । बच्चे मशीन नहीं हैं ।बच्चे चिड़ियों की तरह चहकना क्यों भूल गए हैं? खुलकर खिलखिलाना क्यों छोड़ चुके हैं ?माता-पिता या शिक्षकों से क्यों दूर होते जा रहे हैं ? उनसे अपने मन की बात क्यों नही कहते ? यह दूरी निरन्तर क्यों बढ़ती जा रही है ?अपनापन बेगानेपन में क्यों बदलता जा रहा है? यह यक्ष –प्रश्न हम सबके सामने खड़ा है। हमें इसका उत्तर तुरन्त खोजना है ।मानसिक रूप से बीमार लोगों को शिक्षा क्षेत्र से दूर करना है ।मानसिक सुरक्षा का अभाव नन्हें-मुन्नों के अनेक कष्टों एवं उपेक्षा का कारण बनता जा रहा है ।क्रूर और मानसिक रोगियों के लिए शिक्षा का क्षेत्र नहीं है ।जिनके पास हज़ारों माओं का हृदय नहीं है ,वे शिक्षा के क्षेत्र को केवल दूषित कर सकते हैं ,बच्चों को प्रताड़ित करके उनके मन में शिक्षा के प्रति केवल अरुचि ही पैदा कर सकते हैं।हम सब मिलकर इसका सकारात्मक समाधान खोजने के लिए तैयार हो जाएँ ।