मेरा आँगन

मेरा आँगन

Tuesday, December 16, 2008

DEFINITION OF EXCELLENCE

Excellence
A man once visited a temple under construction where he saw a sculptor making an idol of God. Suddenly he noticed a similar idol lying nearby. Surprised, he asked the sculptor, "Do you need two statues of the same idol?" "No," said the sculptor without looking up, "We need only one, but the first one got damaged at the last stage." The gentleman examined the idol and found no apparent damage. "Where is the damage?" he asked. "There is a scratch on the nose of the idol." said the sculptor, still busy with his work. "Where are you going to install the idol?" The sculptor replied that it would be installed on a pillar twenty feet high. "If the idol is that far, who is going to know that there is a scratch on the nose?" the gentleman asked.

The sculptor stopped his work, looked up at the gentleman, smiled and said, "I will know it."

The desire to excel is exclusive of the fact whether someone else appreciates it or not. "Excellence" is a drive from inside, not outside.

Excellence is not for someone else to notice but for your own satisfaction.

Saturday, November 22, 2008

खुशी : पंकज चतुर्वेदी

खुशी : पंकज चतुर्वेदी
चित्रांकन :अजीत नारायण
प्रकाशक :Pratham Books 930,4rth Cross Ist Main, MICO Layout,Stage 2,Bangalore 560076

बच्चों के लिए लिखना सबसे कठिन कार्य है ।बच्चे जितने छोटे उनके भाषा-ज्ञान ,मनोविज्ञान के अनुरूप लेखन उतना ही चुनौती-भरा है।पंकज चतुर्वेदी जी ने मुनिया और राजू के पतंग उड़ाने के प्रसंग को रोचक , सरल और सहज भाषा में पिरोकर प्रस्तुत किया है । उड़ाते समय पतंग पेड़ में फँस जाती है और झटका देने पर टूट जाती है। बाँस से निकालने के प्रयास में पतंग तो निकलती नहीं ,ऐसे में कुछ आम टूट्कर गिर जाते हैं ।राजू और मुनिया आम खाकर खुश हो जाते हैं ।
आगे चिड़िया का बच्चा पतंग की डोर को मुँह से पकड़कर उड़ने का मज़ा लेता है ।पतंग उसकी चोंच से छूटती है तो खरगोश को मिल जाती है ;लेकिन उठाते समय उसके तीखे नाखूनों से फट जाती है ।
खरगोश रोने लगता है तो उसकी माँ फटी पतंग की झण्डियाँ बनाकर दरवाज़े को सजा देती है ।
इस प्रकार एक पतंग सबको खुशी प्रदान करती है ।शब्दाडम्बर से दूर यह किताब शिशु वर्ग को रिझाने में सफल है ।इस छोटी –सी रोचक कथा को अजीत नारायण ने अपने चित्रांकन से सजाकर और भी रोचक बना दिया है ।

समीक्षा: रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

चंदा और खरगोश :पंकज चतुर्वेदी


चंदा और खरगोश :पंकज चतुर्वेदी
चित्रांकन :अजीत नारायण
प्रकाशक :Pratham Books 930,4rth Cross Ist Main, MICO Layout,Stage 2,Bangalore 560076

चन्दा और खरगोश एक छोटी –सी कथा है-खरगोश के धरती पर आने की ।खरगोश ठहरा बच्चा । चाँद पर रहता है उसके साथ-साथ । ।दोनों में गहरी दोस्ती है । धरती, हरे-भरे पेड़ ,नीला समुद्र हमेशा उसे लुभाते रहते हैं; इसीलिए वह हमेशा नीचे झाँकता रहता है । चाँद उसे ऐसा करने से मना करता है ;पर वह मानता नहीं । चाँद पर तेज आँधी चलती है ।झाँकते समय एक दिन वह गिर पड़ता है और कई साल तक हवा में तैरते हुए धरती पर उतर आता है। चाँद पर रहते हुए तो वह हाथी जितना बड़ा था ;लेकिन धरती पर आते-आते बहुत छोटा हो जाता है ।बाल भी टूट्कर छोटे हो जाते हैं ।
चाँद को खरगोश आज तक नहीं भूल पाया है ।उसकी लाल-लाल आँखों इस बात की गवाह हैं ।
अजीत नारायण के चित्रों का वैविध्य इस कहानी में और भी चार चाँद लगा देते हैं ।
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समीक्षा : रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Tuesday, November 18, 2008

कमज़ोर दृष्टिवाले बच्चे


कमज़ोर दृष्टि वाले बच्चे
( प्राथमिक विद्यालयोंके अध्यापकों के लिए एक संदर्शिका)
लेखिका : अनीता जुल्का
मूल्य :26 रुपए ,पृष्ठ :56, प्रकाशक :राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् ,श्री अरविन्द मार्ग नई दिल्ली-110016
कक्षा का रूप प्राय: सामान्य को ध्यान में रखकर निर्धारित किया गया है ।किसी भी प्रकार की कमज़ोरी वाले बच्चे के लिए उसमें अलग से कोई स्थान नहीं है।शिक्षण को छात्र केन्द्रित करने के लिए हर छात्र की विशेषता और कमी का ध्यान रखना ज़रूरी है ।इस कार्य को सजग शिक्षक ही कर सकता है ।यह पुस्तक ऐसे जागरूक शिक्षकों को दिशानिर्देश देने की सजग पहल करती है । यह पुतक छह अध्यायों में बाँटी गई है :-1-परिचय ,2-कमज़ोर दृष्टि वाले बच्चों के लिए कक्षा का व्यवस्थापन,3-पढ़ना और लिखना,4-अनुदेश का स्तर ,5-मनोसामाजिक समस्या ,6-विचारणीय विषय के अन्तर्गत विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है । प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को यह पुस्तक ज़रूर पढ़नी चाहिए

-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

लौट के बुद्धू घर को आए


लौट के बुद्धू घर को आए:डॉ सरोजिनी प्रीतम
पृष्ठ : 32 , मूल्य :25 रुपए।
प्रकाशक: चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट नेहरू हाउस ,
4 बहादुरशाह ज़फ़रमार्गनई दिल्ली-110002
हास परिहास के क्षेत्र में बच्चों के लिए बहुत कम लिखा गया है ; वह भी कविता में। डॉ सरोजिनी प्रीतम की यह पुस्तक इस कमी को पूरा करती है।यह एक नितान्त बुद्धू कहे जाने वाले बालक की अक़्लमन्दी तक पहुँचने की यात्रा है ।कवयित्री ने ने विभिन्न कविताओं को एक सूत्र में रोचक घटनाओं के एक सूत्र में पिरोया है ।इस प्रकार 22 कविताएँ मिलकर कथा को रोचकता प्रदान करती हैं।
इनमेंसे कुछ रोचक कविताएँ हैं:-
1. मैंने तो बस खाया चाँटा
2. कौन है बन्दर
3. बुद्धू का पिंजरा
4. बिल्ली ने जब रस्ता काटा
5. लौट के बुद्धू घर को आए
6. गंजे सिर पर ओले बरसे
7. असली मास्टर नकली मास्टर
8. फिर बुद्धू ने बस्ता फेंका
कविताओं के साथ चित्रों का संयोजन उन्हें और भी प्रभावशाली बना देता है ।यह पुस्तक छोटे बच्चों को ज़रूर पसन्द आएगी
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Saturday, November 15, 2008

डॉ भावना कुँअर की बाल-कविताएँ











भावना कुँअर एक सहृदय कवयित्री हैं ।उनका यह सहृदय रूप उनके यात्रा संस्मरणों में भी मुखरित होता है ।बाल दिवस के अवसर पर उनकी सात कविताएँ दी जा रही हैं ।सभी कविताओं के अलग-अलग रंग हैं ।भाषा की सहजता इनकी कविताओं का विशेष गुण है ।आयु वर्ग के अनुसार विषय का चयन एवं शिल्प का संयोजन कठिन कार्य है ।इसे भावना जी ने बखूबी निभाया है ।

1- रंग-बिरंगे गुब्बारे

रंग बिरंगे-नीले पीले,
हैं गुब्बारे खूब सजीले।


इन्द्रधनुष के रंगों जैसे,
झटपट दे दो अब तुम पैसे।


जो भी चाहो ले लो तुम,
जी भर के फिर खेलो तुम।
2-मतवाली चिड़िया
देखो चिड़िया है मतवाली
रंग-बिरंगे पंखों वाली ।
सोने जैसे पंख लगें
काले मोती खूब सजें।
दौड़-दौड़ कर जाती है
दाना चुन-चुन लाती है।
दिन भर करती मेहनत खूब
लगती नहीं है उसको धूप।
सुन्दरता पर ना इतराती
दिन ढलते ही घर को जाती।
3- चिड़िया के बच्चे
चिड़िया के थे बच्चे चार,
अच्छा था उनका व्यवहार।
माँ को थे वो नहीं सताते,
भूख लगे तो गाना गाते।
मम्मी चिड़िया उड़कर जाती,
अच्छा-अच्छा दाना लाती।
बच्चे मिल-बाँटकर खाते,
इक-दूज़े से चोंच लड़ाते।
4-चंकी बंदर
चंकी बंदर बड़ा शैतान
रोज़ उमेठे सबके कान ।
रामू ने फिर जुगत लगाई,
चंकी की कर दी कुडमाई।
अब चंकी जी मुँह छिपाये,
मेम साहब से कान खिंचाये।
5-सजी प्रकृति
झरनों को भी है वरदान,
गायें सदा वो मीठा गान।

सूरजचमक रहा है खूब,

मोती -माला पहने दूब।

रंग-बिरंगे कपड़े पहने,

फूलों के भी क्या हैं कहने।

6-मेहनत के रंग
देखो छोटों के व्यवहार
मेहनत से न माने हार।
चीटी होती सबसे छोटी
खुद से बड़ा वज़न ये ढोती।
चुन-चुन चिड़िया तिनका लाती
और घोंसला बड़ा बनाती।
चूहा बिल जो अपना बनाये
ढेरों मिट्टी खोदे जाये।
रेशम का कीड़ा दीवाना
सुन्दर बुनता ताना बाना।
रस फूलों का लेकर आती
मधु मक्खियाँ मधु बनातीं।
दिन भर मकड़ी जाल है बुनती।
मगर आह! न हमको सुनती।
7-बच्चों की पाती
आओ बच्चों जल्दी आओ,
अपनी पाती लेकर जाओ।
पढ़कर इसको रखना याद,
पूरे होंगे सारे ख्वाब।
प्रातः जल्दी उठकर तुम,
सभी बड़ों को करो नमन।
और प्रभु का लेकर नाम,
करो शुरू तुम सारे काम।
सभी बड़ों का आदर करना,
छोटों से भी न तुम लड़ना।
अगर करोगे अच्छे काम,
जग में होगा सबका नाम।
मात-पिता की आज्ञा मानों,
भले बुरे को तुम पहचानों।
फैलाओ ऐसा उज़ियारा,
मिट जाये जग का अँधियारा।
बड़ी लगन से पढ़ना तुम,
मेहनत से न डरना तुम।
पाओगे ऊँचा स्थान
बन जायेगें बिगड़े काम।
झूठ की राह कभी न चलना,
सच के पथ पर आगे बढ़ना।
झूठ का होता है अपमान,
सच को मिलता है सम्मान।
जीवों पर भी दया करो,
कभी न उनका बुरा करो।
वो भी देंगे तुमको प्यार
प्रेममय होगा संसार।
गर तुम पे हो रोटी कम,
करो नहीं कोई भी गम।
साथ बाँटकर इसको खाओ,
जग में सबसे प्यार बढ़ाओ।
वाणी में तुम अमृत घोलो,
कभी किसी से बुरा न बोलो।
बन जायेंगे संगी साथी,
पूरी हो गयी अपनी पाती।
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Tuesday, November 11, 2008

देश हमारा है






देश हमारा है



-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'





आँखों का तारा है ,प्राणों से प्यारा है ।



सब देशों से अच्छा , ये देश हमारा है ॥



इसका तन कुन्दन है ,



पावन मन चन्दन है।



साँसों में फूलों की



डूबी हर धड़कन है ॥



षड् ॠतुओं ने आकर फिर रूप सँवारा है ।



होठों का राग सरस



नयनों से रहा बरस।



केशों से लिपटी है



अमावस निशा बरबस ।



अगणित नदियाँ इसकी ममता की धारा हैं।



मिट्टी में छुपी सुगन्ध,



मुट्ठी में पौरुष बन्द ।



नित मुकुट हिमालय से



झरता रहा मकरन्द ।



सागर ने हाथों से पदरज को पखारा है।



भाषा व वेश अनेक ,



प्राण हैं फिर भी एक ।



विश्व-पट पर गौरव का ,



लिखा है हमने लेख ।



गुण सदियों से इसके गाता जग सारा है ।

Tuesday, November 4, 2008

चिटकू : सुरेखा पाणंदीकर



चित्रांकन :मृणाल मित्र ;अनुवाद : मनमोहन पुरी
पृष्ठ :24 ;मूल्य :20 रुपए
प्रकाशक :चिल्ड्रन्स बुक ट्र्स्ट नेहरू हाउस ,4 बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग
नई दिल्ली-110002

चिटकू”बालकथा का मुख्यपात्र चिटकू चूहा है , जो बहुत छोटा और चंचल है।अपनी चंचलता के कारण सूँ-सूँ करता पनीर की गन्ध सूँघता इधर –उधर दौड़ता है और मुन्नू कि प्लेट तक पहुँच जाता है। भागने पर मुन्नू की हॉकी स्टिक की चोट से उसकी दुम का एक सिरा अलग हो जाता है । चिटकू की माँ उसे अकेले बाहर जाने से मना करती है। माँ की बात को वह बहुत जल्दी भूल जाता है और लड्डू खाने के लोभ पर नियंत्रण नहीं कर पाता है; जिससे वह लड्डुओं के ढेर में दब जाता है । चुहिया माँ उसे किसी तरह बाहर निकालती है । एक बार फिर चिटकू बिल्ली के पंजे में फँस जाता है और भाग्य से किसी प्रकार बच जाता है । कहानी में रोचकता शुरू से आखिर तक बनी हुई है । छोटे बच्चों के मानसिक स्तर के अनुसार लिखी गई कहानियाँ बहुत कम हैं ।यह पुस्तक इस कमी की पूर्ति करने में सहायक है ।
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रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’’

Monday, October 27, 2008

धरती हिन्दुस्तान की

धरती हिन्दुस्तान की

-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

 

जहाँ आकरके रही लौटती सेनाएँ तूफ़ान की।

हमको प्राणों से भी प्यारी धरती हिन्दुस्तान की ॥

चारों वेदों के मन्त्रों से गूँजा ये आकाश था

जिसके चप्पे-चप्पे में सत् विद्या का प्रकाश था ।

जगद्गुरु बनकरके पताका ऊँची की सम्मान की ॥

गंगाजमुना नहीं हैं नदियाँ पावन दूध की धारा हैं ।

इन्हीं के बलबूते पर हमने शत्रु को ललकारा है ।

इसी अमृत को पीकर हमने बाजी लगाई जान की ॥

बाहें मिलाकर वीर बाँकुरे शेरों से भी खेले हैं

अंगारों की बरसातों में वार भयंकर झेले हैं ।

गूँज रही अब तक हुंकारें 'वन्देमातरम्' गान की ॥

बहिनों ने भाई के माथे लहू के तिलक लगाए हैं

हाथों में तलवारें लेकर रण में जौहर दिखाए हैँ ।

मार मार कर दुश्मन की सेनाएँ लहू-लुहान की ॥

अडिग हिमालय हम सब वासी सागर से गम्भीर हैं

दुश्मन की गर्दन की खातिर, हम पैनी शमशीर है ।

आई जिसे सींचती वाणी गीता और क़ुरान की ॥

हमको प्राणों से भी प्यारी धरती हिन्दुस्तान की ॥

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बाल-कविता(हास्य)

बाल-कविता(हास्य)
गधा आदमी से अच्छा
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

छज्जू मास्टर एक रोज़ बच्चों को पढ़ा रहे थे॥
जो नहीं पढ़ पाता उसको मुर्ग़ा बना रहे थे ।।
पतली छड़ी से पीट-पीट कह रहे थे ऊँचे स्वर से॥
गधे से बनोगे तुम आदमी इस पिटने के डर से ।।
नन्दू कुम्हार पास से गुज़रा तो सुनकर चकराया ।
छज्जू मास्टर के चरणों में जा अपना शीश झुकाया ॥
“एक गधा घर मेरे बँधा है आदमी उसे बना दो॥
जो भी इसकी फ़ीस लगेगी झटपट मुझे बता दो॥”
छज्जू बोले-“नन्दू भैया !कुल रुपए लगेंगे बीस ।
गधे से आदमी बनने में दिन गुज़रेंगे तीस।”
यह सुनकरके नन्दू अपने मन में बहुत हर्षाया ।
तीस दिनों के बाद वह फिर विद्यालय में आया ॥
उसे देखकर छजू मास्टर पड़ा बहुत चक्कर में ।
बेच चुका था उस गधे को वह पूरे सत्तर में ॥
नन्दू से फिर यूँ बोला-“सीधे थाने जाओ।
दरोग़ा बना गधा तुम्हारा जल्दी से ले आओ॥”
पहुँचा नन्दू जब थाने में दरोगा पड़ा दिखाई।
“मेरे गधे घर चल जल्दी”-ये आवाज़ लगाई ॥
बार –बार जब कहा गधा तो लात दरोगा ने मारी ।
बोला नन्दू-“आदमी बनकर भी न आदत गई तुम्हारी॥
तुम्हें आदमी बनाने में गधा हाथ से खोया ।
आज बने हो तुम दरोगा कल तक बोझा ढोया॥”
बुरी तरह पिटकरके नन्दू जब घर वापस आया
‘गधा आदमी से अच्छा’ –मन को यूँ समझाया ॥
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Wednesday, September 17, 2008

नन्हीं कविताएँ

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-maorI naanaI

maorI naanaI AcCI naanaI

baatoM maOMnao saarI maanaI

rat hao ga[- mauJao saunaaAao

piryaaoM vaalaI ek khanaI

vahI khanaI baD,I puranaI

ijasamao Mhao

piryaaoM naanaI

­ maalaI

saIcaM saIMcakr hr paOQao kao

hra­Bara krta hO maalaI.

rMga ibarMgao fUlaaoM sao inat

baigayaa kao Barta hO maalaI.

hr paOQao sao AaOr poD, sao

baigayaa maoM haotI hiryaalaI.

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-BaarI basta

maaÐ mauJasao yah nahIM ]zogaa

basta [tnaa BaarI.

[sa basto ko Aagao maorI

ihmmat ibalkula harI.

baaoJa kra dao kuC kma [saka

sauna laao baat hmaarI ।

­maata -ipta

maata - ipta bahut hI AcCo

jaI Bar krto hmakao Pyaar.

saubah jaagakr sabasao phlao

]nhoM krto hma namaskar.

-baapU

sabasao imalakr rhao p`oma sao

paz pZayaa baapU nao.

AajaadI laokr maanaoMgao

hmaoM isaKayaa baapU nao.

-itrMgaa

sada itrMgaa JaNDa Pyaara

}Ðcaa [sao ]zaeÐgao hma.

caaho jaana hmaarI jaae

[sakao nahIM JaukaeÐgao hma.

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-fla

sabasao maIza AaOr rsaIlaa

saBaI flaaoM ka raja Aama.

ek saoba jaao Kae raoja,

]sao baImaarI sao @yaa kama.

naaXapatI ¸kolaa¸AMgaUr

ppIta BaI KaAao ja,$r.

laIcaI ¸naarMgaI ¸Anaanaasa

naIMbaU ka rsa sabasao Kasa .

Saturday, July 12, 2008

अमृतमय हो जीवन


हरियाली छाई हो हर कदम पर सदा
बने रिमझिम– रिमझिम फुहारों -सा जीवन ।
कहीं भी तपन न हो पथ में तुम्हारे
हर पल हो सुखद बयारों का जीवन ।
पावन हों सम्बन्ध गंगा की तरह
अमृतमय हो सब किनारों का जीवन ।

Saturday, May 31, 2008

बाल कविता

कल्लू मोटा

कल्लू मोटा ना है खोटा

रखे हाथ में ,मोटा सोटा

रोज़ नहाता ,भर भर लोटा ।

चन्दू भाई ,है हलवाई

खुद ना खाता ,कभी मिठाई

इसीलिए कोठी बनवाई

माधो मट्टू,बड़ा निखट्टू

आदत से है अड़ियल टट्टू

सिर है उसका ,जैसे लट्टू ।

है बरजोरा, बड़ा चटोरा

खाता खीर बाइस कटोरा

तन है उसका जैसे बोरा ।

-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Monday, April 7, 2008

जब सूरज जग जाता है

जब सूरज जग जाता है
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

आँखें मलकर धीरे-धीरे
सूरज जब जग जाता है ।
सिर पर रखकर पाँव अँधेरा
चुपके से भग जाता है ।
हौले से मुस्कान बिखेरी
पात सुनहरे हो जाते ।
डाली-डाली फुदक-फुदक कर
सारे पंछी हैं गाते ।
थाल भरे मोती ले करके
धरती स्वागत करती है ।
नटखट किरणें वन-उपवन में
खूब चौंकड़ी भरती हैं ।
कल-कल बहती हुई नदी में
सूरज खूब नहाता है
कभी तैरता है लहरों पर
डुबकी कभी लगाता है ।
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