मेरा आँगन

मेरा आँगन

Tuesday, September 21, 2010

ओ मम्मी, ये कैसा युग है !

प्रियंका गुप्ता
[वह कविता मैने तब लिखी थी जब मैं आठवीं में पढ़ती थी ।]
      ओ मम्मी, ये कैसा युग है
      कितने रावण जनम रहे हैं
      राम कहाँ हैं बोलो मम्मी
      लव-कुश यूँ जो बिलख रहे हैं
      पिछ्ली बार तो हम ने मम्मी
      खाक किया था रावण को
      फिर किसने है आग लगाई
      घर घर यूँ  जो दहक रहे हैं
      क्यों मम्मी खामोश हो गई
      कण-कण आज पुकार रहे हैं
      हर बच्चे को राम बनाओ
      फिर चाहे कितने ही रावण
      जन्मे इस धरती पर मम्मी
      हम उनका दस शीश कुचलने को
      लो वानर सेना बना रहे हैं.

-0-

                                                       

19 comments:

Akshitaa (Pakhi) said...

अले वाह, यह तो बहुत अच्छी कविता है...मजेदार.

____________________
'पाखी की दुनिया' में 'करमाटांग बीच पर मस्ती...'

प्रियंका गुप्ता said...

बहुत शुक्रिया...।

रावेंद्रकुमार रवि said...

अच्छी कविता है!
मन को भाने नए दोस्तों का दिन आया : सरस चर्चा (14)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पतंग पर सुन्दर रचना लिखी है आपने!
--
आपकी पोस्ट की चर्चा तो यहाँ भी है!
--
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/09/18.html

रानीविशाल said...

बहुत सुन्दर कविता है .....धन्यवाद !
नन्ही ब्लॉगर
अनुष्का

निर्मला कपिला said...

ये तो बता देती कि आठवीं किये कितने बर्ष हो गये चलो छोडो लडकियों की उम्र नही पूछते वो तो पालने मे ही स्यानी हो जाती हैं बिलकुल तुम्हारी तरह। बहुत अच्छी लगी कविता। बधाई।

संजय कुमार चौरसिया said...

बहुत सुन्दर कविता है .....

सुधाकल्प said...

ये कैसा युग है !कविता अति सुन्दर बन पड़ी है|सच में नई पीढ़ी ही दुष्ट दिमागों से कार्बन निकालने में सफल होगी|
सुधा भार्गव

mridula pradhan said...

bahut sunder.

Dr.Bhawna Kunwar said...

Choti si umara men itni badi soch ...bahut khub! yun hi likhte raho..

प्रियंका गुप्ता said...

आप सब के इतने उत्साहवर्धक कमेण्ट्स के लिए बहुत आभारी हूँ...।

Shabad shabad said...

सुन्दर कविता है .......

RAJWANT RAJ said...

umar koi bhi ho vjn bhav ka hota hai . slam aapke is jjbe ko .

Chaitanyaa Sharma said...

अरे यह तो बहुत ही सुंदर कविता है....बहुत अच्छी लगी मुझे

VIJAY KUMAR VERMA said...

BAHUT HEE SUNDAR TATHA VICHAROTOZAK KAVITA...BADHAYI

जयकृष्ण राय तुषार said...

very nice

Nirantar said...

thanks for encouraging me,With best wishes
इसी तरह आप से बात करूंगा
मुलाक़ात आप से जरूर करूंगा

आप
मेरे परिवार के सदस्य
लगते हैं
अब लगता नहीं कभी
मिले नहीं है
आपने भरपूर स्नेह और
सम्मान दिया
हृदय को मेरे झकझोर दिया
दीपावली को यादगार बना दिया
लेखन वर्ष की पहली दीवाली को
बिना दीयों के रोशन कर दिया
बिना पटाखों के दिल में
धमाका कर दिया
ऐसी दीपावली सब की हो
घर परिवार में अमन हो
निरंतर दुआ यही करूंगा
अब वर्ष दर वर्ष जरिये कलम
मुलाक़ात करूंगा
इसी तरह आप से
बात करूंगा
मुलाक़ात आप से
जरूर करूंगा
01-11-2010

निरंतर ख्वाब देख रहे थे
क्या पता था वो वक़्त गुजार रहे थे

हम
समझते थे वो
आजमां रहे हैं
क्या पता था हमें
सता रहे हैं
जब मुस्करा कर देखते
हम समझते
करीब आ रहे हैं
जब बात करते
हम समझते थे
हाल-ऐ-दिल बता रहे हैं
इंतज़ार बेचैनी से कर रहे थे
सब खुशी से सह रहे थे
हाँ सुनने को तरस रहे थे
निरंतर ख्वाब देख रहे थे
क्या पता था
वो
वक़्त गुजार रहे थे
05-11-2010
इक बार तेरे हांथों से पी लूं,
क़ज़ा से पहले तमन्ना तो कर लूं

क़ज़ा
से पहले तमन्ना पूरी
कर लूं
दीदार तेरा इक बार तो
कर लूं
जी भर के तुझे इक बार
देख लूं
बीमार-ऐ- इश्क हूँ दवा तो
ले लूं
हकीकत में नहीं तो ख़्वाबों में
देख लूं
निरंतर जाम पिए तेरे नाम पर
इक बार तेरे हांथों से
पी लूं
क़ज़ा से पहले तमन्ना तो
कर लूं
04-11-2010
(क़ज़ा=मृत्यु)

चाल कोई भी चलें,अब चाल चलेंगे हम

तय
किया था
अब इश्क नहीं करेंगे
हम
कोई मुस्कराएगा नहीं देखेंगे
हम
इशारों से बुलाएगा,नहीं जायेंगे
हम
ख़्वाबों में आयेंगे,नहीं सोयेंगे
हम
निरंतर पैगाम भेजें,जवाब नहीं देंगे
हम
पहले से रो रहे हैं,अब नहीं रोयेंगे
हम
पुराने जाल से निकले नहीं
नए जाल में नहीं फंसेंगे
हम
चाल कोई भी चलें,अब चाल चलेंगे
हम
04-11-2010
इन्साफ ज़मीन पर नहीं तो ऊपर होता है
जो जैसा करता है,वैसा भरता है

जो
फितरत में जीते हैं
हैवान बन के रहते हैं
मन में शैतान पालते हैं
इंसानियत को निरंतर
बदनाम करते हैं
खुदा के कहर से नहीं डरते
किसी बात का असर
उन्हें नहीं होता
रंज भी उन्हें नहीं होता
ऐसे लोगों का,कोई नहीं होता
वे जानते नहीं हैं
विकृत सोच का अंत भी
विकृत होता है
इन्साफ ज़मीन पर नहीं
तो ऊपर होता है
जो जैसा करता है
वैसा भरता है
04-11-2010

Nirantar said...

इसी तरह आप से बात करूंगा
मुलाक़ात आप से जरूर करूंगा

आप
मेरे परिवार के सदस्य
लगते हैं
अब लगता नहीं कभी
मिले नहीं है
आपने भरपूर स्नेह और
सम्मान दिया
हृदय को मेरे झकझोर दिया
दीपावली को यादगार बना दिया
लेखन वर्ष की पहली दीवाली को
बिना दीयों के रोशन कर दिया
बिना पटाखों के दिल में
धमाका कर दिया
ऐसी दीपावली सब की हो
घर परिवार में अमन हो
निरंतर दुआ यही करूंगा
अब वर्ष दर वर्ष जरिये कलम
मुलाक़ात करूंगा
इसी तरह आप से
बात करूंगा
मुलाक़ात आप से
जरूर करूंगा
01-11-2010

निरंतर ख्वाब देख रहे थे
क्या पता था वो वक़्त गुजार रहे थे

हम
समझते थे वो
आजमां रहे हैं
क्या पता था हमें
सता रहे हैं
जब मुस्करा कर देखते
हम समझते
करीब आ रहे हैं
जब बात करते
हम समझते थे
हाल-ऐ-दिल बता रहे हैं
इंतज़ार बेचैनी से कर रहे थे
सब खुशी से सह रहे थे
हाँ सुनने को तरस रहे थे
निरंतर ख्वाब देख रहे थे
क्या पता था
वो
वक़्त गुजार रहे थे
05-11-2010
इक बार तेरे हांथों से पी लूं,
क़ज़ा से पहले तमन्ना तो कर लूं

क़ज़ा
से पहले तमन्ना पूरी
कर लूं
दीदार तेरा इक बार तो
कर लूं
जी भर के तुझे इक बार
देख लूं
बीमार-ऐ- इश्क हूँ दवा तो
ले लूं
हकीकत में नहीं तो ख़्वाबों में
देख लूं
निरंतर जाम पिए तेरे नाम पर
इक बार तेरे हांथों से
पी लूं
क़ज़ा से पहले तमन्ना तो
कर लूं
04-11-2010
(क़ज़ा=मृत्यु)

चाल कोई भी चलें,अब चाल चलेंगे हम

तय
किया था
अब इश्क नहीं करेंगे
हम
कोई मुस्कराएगा नहीं देखेंगे
हम
इशारों से बुलाएगा,नहीं जायेंगे
हम
ख़्वाबों में आयेंगे,नहीं सोयेंगे
हम
निरंतर पैगाम भेजें,जवाब नहीं देंगे
हम
पहले से रो रहे हैं,अब नहीं रोयेंगे
हम
पुराने जाल से निकले नहीं
नए जाल में नहीं फंसेंगे
हम
चाल कोई भी चलें,अब चाल चलेंगे
हम
04-11-2010
इन्साफ ज़मीन पर नहीं तो ऊपर होता है
जो जैसा करता है,वैसा भरता है

जो
फितरत में जीते हैं
हैवान बन के रहते हैं
मन में शैतान पालते हैं
इंसानियत को निरंतर
बदनाम करते हैं
खुदा के कहर से नहीं डरते
किसी बात का असर
उन्हें नहीं होता
रंज भी उन्हें नहीं होता
ऐसे लोगों का,कोई नहीं होता
वे जानते नहीं हैं
विकृत सोच का अंत भी
विकृत होता है
इन्साफ ज़मीन पर नहीं
तो ऊपर होता है
जो जैसा करता है
वैसा भरता है
04-11-2010

rajesh singh kshatri said...

आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .