डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा
भैया बहुत सताए मुझको
चोटी खींच रुलाए मुझको ।
गुड़िया मेरी छीने भागे
पीछे खूब भगाए मुझको ।
मेरी पुस्तक ,रंग उसके हैं
खेलें कैसे, ढंग उसके हैं
क्या खाना है, क्या पहनाऊँ
नए- नए हुड़दंग उसके हैं ।
फिर भी तुमको क्या बतलाऊँ
प्यार उसी पर आए मुझको ।
मेरा प्यारा न्यारा भैया ,
कभी दूर ना भाए मुझको ।
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18 comments:
बहुत प्यारी कविता...भाई-बहन का प्यार जिसमे समाया संसार!
bahut sundar bhav .
shubhkamnayen .
बहुत ही प्यारी कविता एकदम बच्चों की ही तरह मासूम और प्यारी !
बधाई !
aanand aaya bhaiya mere ghr me bhi yahi hota rahta hai
sunder
rachana
बाल मन का आपसी प्यार, बहुत प्यारी कविता, बधाई.
bachon see piyari kavita !
Bachpan ki yaad dila gayi ye pyari si rachna...
बहुत प्यारी कविता
this is utterly beautiful...
अच्छी रचना,
बहुत सुंदर
real very sweet view
A beautifully written poetry that reminds me the childhood days...kudos to you.
बहुत सुन्दर कविता ....
बहुत सुन्दर कविता ....
भोली-भाली प्यारी सी कविता।
ऐसा ही तो होता है भाई-बहन का मधुर-मज़ेदार सा रिश्ता...। एक प्यारी कविता के लिए बधाई...।
प्रियंका
प्यारी से सरल कविता भाव
इस स्नेह के लिए बहुत आभार !
सादर ..
ज्योत्स्ना शर्मा
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