डॉ•आरती
स्मित
विद्वानों ने सच ही कहा है-पुस्तकें मित्र होती हैं,सच्ची मित्र। हर एक की,हर उम्र,
हर प्रांत, हर धर्म- संप्रदाय के लोगों की
सहचरी। सच्ची मित्र मैंने इसलिए कहा क्योंकि साहित्य बाल-सखा की तरह हमें खींचकर,घसीटकर भी सही राह चलाने के लिए विवश करता ही है... हमारे कानों में कहता
है --- मैं हूँ न तुम्हारे साथ ... तुम्हारी कल्पना और यथार्थ का हमजोली ।और सचमुच
पुस्तक के रूप में मित्र पाकर हम आनंद और पूर्णता के एहसास से भर उठते हैं । मैंने
देखा है रंग-बिरंगे चित्रों से भारी पुस्तक के प्रति शिशु का आकर्षण – यहीं से शुरू हो जाती है मित्रता; यहीं से शुरू होता
है व्यक्तित्व –गठन और इसमें बाल साहित्य महती भूमिका निभाता
है
वरिष्ठ कथाकार श्री प्रकाश मनु बच्चों के भी सुपरिचित कथाकार हैं, जिनकी कहानियाँ बाल मन को गुदगुदाती तो कभी कुछ
सिखाती, नई दिशा देती चलती है। बच्चों के लिए की जानेवाली
रचना, चाहे वह किसी विधा में हो, स्वयम्
को उस अवस्था में पहुंचाए बिना नहीं लिखी जा सकती और बाल साहित्य वही रच सकता है
जिसने अपने अंदर पलते बच्चे को सदैव जीवंत रखा हो ... वही भोलापन, वही मासूमियत ,वही निर्दोषता ॥ तभी शब्द अपने अबोध
मन के साथ कागज पर उतर पाते हैं और तितली बनकर पंख फड़फड़ाते हैं। इस पुस्तक में कुल
दस कहानियाँ हैं ।सभी अपनी-अपनी छटाएँ बिखेरती हुईं ।बालसुलभ मन और कर्म के साथ –साथ उन्हें सीख देने की नई कोशिश इनकी कुछ कहानियों में झलकती है। इनमें
मास्टरजी, दोस्ती का हाथ, जमुना दादी,
अहा रसगुल्ले, झटपट सिंह और मिठाईलाल का नाम
लिया जा सकता है।लेखक ने बच्चों की शरारतों के लिए कहीं भी दंड का प्रावधान नहीं
रखा। बच्चे हैं शरारते करेंगे ही; संवेदनशील हैं,अपराध-बोध से भरेंगे भी, किन्तु यहाँ बड़ों का फर्ज़
क्या है? वे बच्चों को गलतियों के लिए दंडित करें, उन्हें फटकारें, तिरस्कृत करें.... हमजोलियों या
सगे-संबंधियों के सामने उन्हें लज्जित करें या उनकी बाल-सुलभ गलतियों या गलत दिशा
में बढ़े उनके कदमों को रोकने के लिए मूल कारणों की तह में जाकर उनका निदान करें॥
वह भी स्नेह के साथ। बाल मनोविज्ञान भी यही कहता है कि बच्चों के व्यवहार का
प्रतिकार ना करें।बच्चों की भावना समझने के लिए उस स्तर तक उतरें फिर देखें कि
उनके व्यक्तित्व को कैसे और कितना निखारा जा सकता है। प्रकाश मनु की कहानियाँ
साबित करती हैं कि वे बाल-मन में पैठकर रचना करते हैं मैंने एक बात जो महसूस की
...जिसकी वर्तमान समाज में ज़रूरत भी है .... वह है, बच्चों
के प्रति हम वयस्कों के व्यवहार की रूपरेखा ।प्रकाशजी के प्राय: सभी वयस्क पात्र
क्षमाशील,धैर्यवान और मार्गदर्शक हैं। उनकी संवेदना बच्चों
को स्पर्श करती है,स्नेहिल व्यवहार बच्चों को अच्छा बनने और
बना रहने पर विवश करता है, फिर वह वयस्क पात्र मास्टरजी हो,जमुना दादी हो,मिठाई के शौकीन बिरजू की माँ हो या
रसगुल्ले के शौकीन ननकू की माँ ।लेखक ने यहीं गुण दोस्ती के मुख्य पात्र अनुराग
में भी आरोपित किए हैं।
मास्टरजी’ कहानी कुछ पंक्तियाँ देखें:
प्रशांत: मास्टरजी, मेरे मन में तो अंधेरा था। आपने दीया जला दिया।अब तो सब ओर प्रकाश ही
प्रकाश है।
मास्टरजी : अंधेरा भी तुम्हारे भीतर
ही था और प्रकाश भी तुम्हारे भीतर से फूटा है ।अपने गाइड तुम खुद हो प्रशांत।
“ प्रशांत के भीतर-बाहर जो उजाला फूट पड़ा था ,वह तो
कभी खत्म हो ही नहीं सकता था ।आज उसने सचमुच मन के दीए जलाए थे।शायद इसलिए मास्टर
अयोध्या बाबू के घर से लौटते हुए भी उसे लग रहा था ,जैसे वे
उसके साथ-साथ चल रहे हैं।“
ये पंक्तियाँ वयस्क-व्यवहार को तय करती हैं ।बाल-मन का अपने माता-पिता, अभिभावक, मित्र व गुरुजन के
व्यवहार के प्रति आश्वस्त होना उन्हें निश्चिंतता का भाव-बोध देता है,वे स्वयम् को अकेला महसूस नहीं कराते...विशेषकर जब माता-पिता दोनों
नौकरीपेशा हो .... इसी प्रकार अन्य
कहानियाँ, जैसे डाक बाबू का प्यार, मुनमुन
ने बनाई घड़ी परोपकार और घमंड ना करने की शिक्षा देती है, लेखक
की विशेषता है कि उनकी शिक्षा कही भी थोपी हुई प्रतीत नहीं होती, भाषाशैली सहज और रोचक है,बच्चे अवश्य ही इस पुस्तक का आनंद उठाएँगे।मेरा तो यह मानना है कि प्रौढ़
साहित्य बालोपयोगी भले न हो, किन्तु बाल साहित्य का पठन-पाठन
सबके लिए उपयोगी है। इससे परिवार व समाज के वयस्क बच्चों के भाव व व्यवहार को
अपेक्षाकृत बेहतर ढंग से समझ सकेंगे ।ये कहानियाँ व्यस्त माता-पिता को बच्चों से
जोड़े रखने का सरल और सशक्त माध्यम है।प्रकाश मनु को बधाई और साधुवाद।
-0-
प्रकाश मनु की चुनिन्दा बाल कहानियाँ
: चित्रांकन –सीमा ज़बीं हुसैन ,पहला संकलन : 2014 , मूल्य: 95.00रुपये, प्रकाशक : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ,भारत, नई दिल्ली
डॉ•आरती
स्मित
विद्वानों ने सच ही कहा है-पुस्तकें मित्र होती हैं,सच्ची मित्र। हर एक की,हर उम्र,
हर प्रांत, हर धर्म- संप्रदाय के लोगों की
सहचरी। सच्ची मित्र मैंने इसलिए कहा क्योंकि साहित्य बाल-सखा की तरह हमें खींचकर,घसीटकर भी सही राह चलाने के लिए विवश करता ही है... हमारे कानों में कहता
है --- मैं हूँ न तुम्हारे साथ ... तुम्हारी कल्पना और यथार्थ का हमजोली ।और सचमुच
पुस्तक के रूप में मित्र पाकर हम आनंद और पूर्णता के एहसास से भर उठते हैं । मैंने
देखा है रंग-बिरंगे चित्रों से भारी पुस्तक के प्रति शिशु का आकर्षण – यहीं से शुरू हो जाती है मित्रता; यहीं से शुरू होता
है व्यक्तित्व –गठन और इसमें बाल साहित्य महती भूमिका निभाता
है
वरिष्ठ कथाकार श्री प्रकाश मनु बच्चों के भी सुपरिचित कथाकार हैं, जिनकी कहानियाँ बाल मन को गुदगुदाती तो कभी कुछ
सिखाती, नई दिशा देती चलती है। बच्चों के लिए की जानेवाली
रचना, चाहे वह किसी विधा में हो, स्वयम्
को उस अवस्था में पहुंचाए बिना नहीं लिखी जा सकती और बाल साहित्य वही रच सकता है
जिसने अपने अंदर पलते बच्चे को सदैव जीवंत रखा हो ... वही भोलापन, वही मासूमियत ,वही निर्दोषता ॥ तभी शब्द अपने अबोध
मन के साथ कागज पर उतर पाते हैं और तितली बनकर पंख फड़फड़ाते हैं। इस पुस्तक में कुल
दस कहानियाँ हैं ।सभी अपनी-अपनी छटाएँ बिखेरती हुईं ।बालसुलभ मन और कर्म के साथ –साथ उन्हें सीख देने की नई कोशिश इनकी कुछ कहानियों में झलकती है। इनमें
मास्टरजी, दोस्ती का हाथ, जमुना दादी,
अहा रसगुल्ले, झटपट सिंह और मिठाईलाल का नाम
लिया जा सकता है।लेखक ने बच्चों की शरारतों के लिए कहीं भी दंड का प्रावधान नहीं
रखा। बच्चे हैं शरारते करेंगे ही; संवेदनशील हैं,अपराध-बोध से भरेंगे भी, किन्तु यहाँ बड़ों का फर्ज़
क्या है? वे बच्चों को गलतियों के लिए दंडित करें, उन्हें फटकारें, तिरस्कृत करें.... हमजोलियों या
सगे-संबंधियों के सामने उन्हें लज्जित करें या उनकी बाल-सुलभ गलतियों या गलत दिशा
में बढ़े उनके कदमों को रोकने के लिए मूल कारणों की तह में जाकर उनका निदान करें॥
वह भी स्नेह के साथ। बाल मनोविज्ञान भी यही कहता है कि बच्चों के व्यवहार का
प्रतिकार ना करें।बच्चों की भावना समझने के लिए उस स्तर तक उतरें फिर देखें कि
उनके व्यक्तित्व को कैसे और कितना निखारा जा सकता है। प्रकाश मनु की कहानियाँ
साबित करती हैं कि वे बाल-मन में पैठकर रचना करते हैं मैंने एक बात जो महसूस की
...जिसकी वर्तमान समाज में ज़रूरत भी है .... वह है, बच्चों
के प्रति हम वयस्कों के व्यवहार की रूपरेखा ।प्रकाशजी के प्राय: सभी वयस्क पात्र
क्षमाशील,धैर्यवान और मार्गदर्शक हैं। उनकी संवेदना बच्चों
को स्पर्श करती है,स्नेहिल व्यवहार बच्चों को अच्छा बनने और
बना रहने पर विवश करता है, फिर वह वयस्क पात्र मास्टरजी हो,जमुना दादी हो,मिठाई के शौकीन बिरजू की माँ हो या
रसगुल्ले के शौकीन ननकू की माँ ।लेखक ने यहीं गुण दोस्ती के मुख्य पात्र अनुराग
में भी आरोपित किए हैं।
मास्टरजी’ कहानी कुछ पंक्तियाँ देखें:
प्रशांत: मास्टरजी, मेरे मन में तो अंधेरा था। आपने दीया जला दिया।अब तो सब ओर प्रकाश ही
प्रकाश है।
मास्टरजी : अंधेरा भी तुम्हारे भीतर
ही था और प्रकाश भी तुम्हारे भीतर से फूटा है ।अपने गाइड तुम खुद हो प्रशांत।
“ प्रशांत के भीतर-बाहर जो उजाला फूट पड़ा था ,वह तो
कभी खत्म हो ही नहीं सकता था ।आज उसने सचमुच मन के दीए जलाए थे।शायद इसलिए मास्टर
अयोध्या बाबू के घर से लौटते हुए भी उसे लग रहा था ,जैसे वे
उसके साथ-साथ चल रहे हैं।“
ये पंक्तियाँ वयस्क-व्यवहार को तय करती हैं ।बाल-मन का अपने माता-पिता, अभिभावक, मित्र व गुरुजन के
व्यवहार के प्रति आश्वस्त होना उन्हें निश्चिंतता का भाव-बोध देता है,वे स्वयम् को अकेला महसूस नहीं कराते...विशेषकर जब माता-पिता दोनों
नौकरीपेशा हो .... इसी प्रकार अन्य
कहानियाँ, जैसे डाक बाबू का प्यार, मुनमुन
ने बनाई घड़ी परोपकार और घमंड ना करने की शिक्षा देती है, लेखक
की विशेषता है कि उनकी शिक्षा कही भी थोपी हुई प्रतीत नहीं होती, भाषाशैली सहज और रोचक है,बच्चे अवश्य ही इस पुस्तक का आनंद उठाएँगे।मेरा तो यह मानना है कि प्रौढ़
साहित्य बालोपयोगी भले न हो, किन्तु बाल साहित्य का पठन-पाठन
सबके लिए उपयोगी है। इससे परिवार व समाज के वयस्क बच्चों के भाव व व्यवहार को
अपेक्षाकृत बेहतर ढंग से समझ सकेंगे ।ये कहानियाँ व्यस्त माता-पिता को बच्चों से
जोड़े रखने का सरल और सशक्त माध्यम है।प्रकाश मनु को बधाई और साधुवाद।
-0-
प्रकाश मनु की चुनिन्दा बाल कहानियाँ
: चित्रांकन –सीमा ज़बीं हुसैन ,पहला संकलन : 2014 , मूल्य: 95.00रुपये, प्रकाशक : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ,भारत, नई दिल्ली
6 comments:
arti ji bahut sunder likha hai
aur praksh manu ji ko bahut bahut badhai
rachana
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-05-2015) को "एक चिराग मुहब्बत का" {चर्चा - 1984} पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
---------------
सुन्दर समीक्षा
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
सुन्दर ,सराहनीय प्रस्तुति ...उत्कृष्ट बाल साहित्य सृजन हेतु हार्दिक बधाई !
शुभ कामनाएँ !!
आरती जी...बहुत सुन्दर समीक्षा लिखी है...|
पुस्तक के लिए प्रकाश मनु जी को तथा इस समीक्षा के लिए आपको बहुत बधाई...|
Post a Comment