डॉ हरदीप कौर सन्धु
कितनी भोली और मासूम सी
फूलों जैसे खिला है चेहरा
खिल-खिल वह हँसती है
कद से वह लम्बी दिखती
अभी भोली बातें करती है
भर ओक बाँटे वह खुशियाँ
दुःख कभी न आएँ अंगना
हर पल एक नई सौगात बन जाए
जिन्दगी सतरंगी कायनात बन जाए
रहे भरता सदा रब
उसकी तमन्नाओं की पिटारी को
चल काला टीका लगा दूँ
कहीं नजर न लग जाए
मेरी परियों जैसी धी -रानी को
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3 comments:
बहुत सुंदर बाल रचना
khubsurat rachna..
हरदीप जी.. बहुत ही ख़ूबसूरत रचना... परियों जैसी ही तो होती हैं .. आसपास जब ये खिल खिल हंसती हैं तो इनके साथ साथ पूरी कायनात हँसती सी लगती है...
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