प्रियंका सैनी
कक्षा 10 स
राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय ,रोहिणी सेक्टर -11 ,
नई दिल्ली
उस हवेली में
पूछा मैंने हर रोज़
हवेली जान के बारे में,
कहती माँ हर रोज़ यही
‘दुनिया का स्वर्ग है वहीं’
सोचा करती मैं ख़्यालों में-
वो हवेली माँ की तो नहीं ?
याद आई मुझे वो एकादशी की रात
कर रही थी जब मैं
अपने जन्म-दिन की बात
कहा था माँ ने -‘
दूँगी तुझे एक मधुर उपहार
अबकी बार ;
पर नहीं थे पैसे माँ के पास ।
एक दिन पहुँची मैं माँ के पीछे-पीछे,
देखा-खड़ी है वहाँ एक औरत
माँ कह रही थी उसे ठकुराइन,
ठकुराइन गुर्राकर बोली-
‘जा बनाकर ला मेरे लिए कॉफ़ी’
उसका बोलना लगा मुजे बेढंगा
समझ गई थी मैं अब सब कुछ
जोड़ रही थी पैसे माँ
मेहनत करती थी दिन-रात
मुझे देना चाहती थी मधुर उपहार ।
माँ कह रही थी ठकुराइन को-
‘ कल मुझे जाना है रात होने से पहले
देना है अपनी लाडो को प्यारा उपहार’-
सुनकर इतना ढरके मेरे आँसू
गीली हो गईं हथेलियाँ ।
‘ओह ! मेरी माँ !’ -निकला मेरे मुँह से ।
ढली चाँदनी, आई सुबह नई !
सबसे प्यारा उपहार मुझे मिला
वह उपहार था -मेरी नई स्कूल ड्रेस,
मेरी माँ भला क्या कम है
किसी आकाश से उतरने वाले फ़रिश्ते से !
सचमुच फ़रिश्ता है मेरी माँ !!
-0-
4 comments:
प्यारी कविता ...
बहुत ही प्यारी और सुन्दर पंक्तिया ....
हकीकत बयान करती यह पोस्ट अच्छी लगी...शुभकामनायें !!
बहूत अच्छी कहानी हेँ।
Post a Comment