मेरा आँगन

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Friday, April 9, 2010

गुलब्बो रानी


सुधा भार्गव
झूमर चलती तो लगता पायल खनक रही हैI बोलती तो मैना भी उसके पास फुदक कर बैठती I पढ़ती तो केवल किताबों की दुनिया में रम जाती I ऐसी थी हमारी गुलब्बो I
एक बार उसकी नानी बीमार हो गईं I खबर पाकर माँ तो खाना -पीना भी छोड़ बैठीं I अगले ही दिन पहली ट्रेन से अजमेर जाने का निश्चय किया । झूमर की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे I पढ़ाई का नुकसान नहीं करना चाहती थी और माँ के बिना रह भी नहीं सकती थी Iउसके पिता जी उसकी दुविधा को भाँप गये I वे बोले -''बेटी ,तुम्हारी माँ का जाना तो जरूरी है I जैसे तुम अपनी माँ को प्यार करती हो; वैसे ही वे अपनी माँ को प्यार करती हैंI तुम यदि उनके साथ नहीं जाना चाहो तो मत जाओI तींन- चार दिनों की ही बात है I फिर मैं तो तुम्हारे साथ हमेशा रहूँगा ही I''
झूमर ने भारी मन से अपनी माँ को अजमेर जाने की सहमति दे दी I
अगले दिन वह स्कूल बस से घर के सामने उतरी I वहाँ उसे अपने प्यारे पिताजी खड़े मिले I
वह इतराती इठलाती बोली -"पिता जी , मैं तो आज खीर खाऊँगी। ''
''चलो ,घर में हम अपनी लाडली को ठंडी -ठंडी खीर खिलायेंगे i''
''आप कहाँ से लाएँगे ,आपको तो बनाना ही नहीं आता I''
झूमर की आँखों में खुशी की फुलझड़ियाँ छूटने लगीं I वह खीर का स्वाद लेती जाती और कहती जाती -''मेरी माँ बहुत प्यारी हैं I''
''तुम्हारी माँ को मालूम है कि खीर बहुत पसंद है ,इसलिए वे फ्रिज में रख गई हैं I ''
''पिताजी , मुझे तो कल अपनी सहेली कंगन के जन्मदिवस पर जाना है । कौन सा फ़्राक पहन कर जाऊँ,उसे क्या उपहार में दूँ ,कुछ समझ में नहीं आता I एक साँस में कह गई झूमर I
इतने में फ़ोन की घंटी बज उठी ,''हेलो ----मैं झूमर बोल रही हूं---माँ, मैंने खीर चट कर ली - - - - आप बहत अच्छी हैं ,जल्दी - - - - !''
''बेटी ,ध्यान से सुनो ,अपनी सहेली के घर शाम को गुलाबी फ़्राक पहन कर जाना I
उसके लिए अलमारी के सबसे ऊपर के रैक में उपहार भी रखा हैI''झूमर की बात को काटते हुए उसकी माँ बोल उठीं ,नहीं तो वह ही बोलती रहती I
''ओह अच्छी माँ !----आपको मेरी हर बात का ध्यान रहता है I''
''झूमर मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ हूँ - माँ ने कहा I
शाम को गुलब्बो रानी बनी झूमर अपनी सहेली के घर गई Iसबने उसकी ड्रेस की खूब प्रशंसा कीIउसे अपनी माँ पर गर्व हो आया Iवह उनकी पसंद ही तो थी I
रात को अपना गृहकार्य करने बैठी झूमर I उसको एक पैराग्राफ लिखना था I विषय था -तुम घर में सबसे ज्यादा प्यार किसे करते हो और क्यों ?उसने १० मिनट में कार्य समाप्त किया और गहरी नींद में सो गई I
सुबह झूमर और उसके पिताजी घर से निकले तो साथ -साथ, पर आगे चलकर रास्ते उनके अलग-अलग हो गये I झूमर को विद्यालय जाना था और दीनानाथ जी को रेलवे स्टेशन की ओर I उसकी माँ अजमेर से जो लौट रही थीं I
स्कूल से लौटने पर सदैव की तरह माँ उसकी प्रतीक्षा करती मिलीं I उनके आँचल से लिपटते हुए झूमर बोली - - - ''माँ --माँ --देखो तो मुझे कॉपी में क्या मिला है !''
''क्या मिला है मेरी रानी बिटिया को ?''
''वैरी गुड I ''
''किसमें ?''
''जिसे मैं सबसे ज्यादा प्यार करती हूं उसके बारे मे लिखना था I '
''हमारी बिटिया तो बहुत सयानी हो गई है Iदिखाओ तो क्या लिखा है ?''
माँ की नजरें जल्दी -जल्दी शब्दों के ऊपर से फिसलने लगीं --------
--मैं घर में सबसे ज्यादा माँ को प्यार करती हूं I वे बिना कहे ही मेरे मन की बात समझ जाती हैं I दूर रहकर भी वे मेरे पास रहती हैं I मैं सवेरे उठकर रोज माँ को प्रणाम करती हूँ; क्योंकि वे मेरे मनमंदिर की देवी हैं - - - ''इससे आगे झूमर की माँ पढ़ सकी I आँखों में खुशी के आँसू उमड़ पड़े थे I उसे आज ही मालूम हुआ कि वह बेटी की नजरों में कितनी ऊँची हैI एक माँ अपनी भोली- सी बच्ची को सीने से लगाने के लिए तड़प उठी I

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4 comments:

दिलीप said...

maan beti ka rishta kitna anmol hai...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

माँ और बिटिया का प्रेम भावुक कर गया. माँ तो खैर ऐसी ही होती है.

ਸ਼ਿਆਮ ਸੁੰਦਰ ਅਗਰਵਾਲ said...

Maan ka bachchon ke liye kya mahattav hai aur bachchon ke liye maan ka, Sudha ji ne apni kahani mein is baat ko bahut sunder dhang se darshaya hai.Lekhika ko bahut-bahut badhai.

mridula pradhan said...

bhawpurn rachna.bahut sunder.