मेरा आँगन

मेरा आँगन

Tuesday, November 11, 2008

देश हमारा है






देश हमारा है



-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'





आँखों का तारा है ,प्राणों से प्यारा है ।



सब देशों से अच्छा , ये देश हमारा है ॥



इसका तन कुन्दन है ,



पावन मन चन्दन है।



साँसों में फूलों की



डूबी हर धड़कन है ॥



षड् ॠतुओं ने आकर फिर रूप सँवारा है ।



होठों का राग सरस



नयनों से रहा बरस।



केशों से लिपटी है



अमावस निशा बरबस ।



अगणित नदियाँ इसकी ममता की धारा हैं।



मिट्टी में छुपी सुगन्ध,



मुट्ठी में पौरुष बन्द ।



नित मुकुट हिमालय से



झरता रहा मकरन्द ।



सागर ने हाथों से पदरज को पखारा है।



भाषा व वेश अनेक ,



प्राण हैं फिर भी एक ।



विश्व-पट पर गौरव का ,



लिखा है हमने लेख ।



गुण सदियों से इसके गाता जग सारा है ।

1 comment:

Manju Mishra said...

भाषा व वेश अनेक ,


प्राण हैं फिर भी एक ।


विश्व-पट पर गौरव का ,


लिखा है हमने लेख ।


बच्चों को सिखाने के लिये बहुत ही सुन्दर कविता... यदि अापकी अनुमति हो तो मै अपने विद्यार्थियों को सिखाउँगी