Tuesday, December 7, 2021
Wednesday, December 1, 2021
170-स्मार्ट फोन - बच्चों को यूँ ही न थमा दें
[अनीता सिंह, अँग्रेजी भाषा से पोस्ट ग्रेजुएट है।
बेसिक अनुभव व शिक्षा विशाखापत्तनम व मुंबई में हुई है । कानपुर महानगर में
महिलाओं के लिए कम्प्यूटर की बेसिक लर्निंग स्कूल फेमिनेट को सन 2002 से कई वर्षों
तक संचालित करती रही हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत क्षेत्रीय प्रचार
अधिकारी भारत सरकार कानपुर में मेरी तैनाती के दौरान महिला एवं बाल कल्याण से जुड़े
तमाम कार्यक्रमों में सजग सहभागिता रही है । भारत के तमाम दूरस्थ स्थलों का भ्रमण
अनुभव है । वर्तमान में समाज एवं साहित्य सेवा में संलग्न हैं । महिला एवं परिवार
कल्याण तथा शिशु विकास पर उनके रोचक और अछूते विषयो से संबन्धित आलेखों की नयी
श्रंखला में आप उनके अनुभव से जुड़े तमाम विश्लेषण पर जरूरी मुद्दे से जुड़ी जानकारी
प्राप्त करेंगे ।-– अवधेश सिंह पूर्व अधिकारी भारतीय सूचना
सेवा भारत सरकार । ]
स्मार्ट फोन - बच्चों को यूँ ही न थमा दें- अनीता
सिंह
बच्चों
को वह चीज नहीं देनी चाहिए,
जो उन्हें अच्छी लगती हो; बल्कि वह चीज देनी चाहिए, जो उनके लिए अच्छी हो । आज इसी
मुद्दे पर बात करना है । आजकल स्मार्ट फोन शिशुओं से लेकर बड़े बच्चे तक धड़ल्ले से
इस्तेमाल कर रहें हैं । इसका कोई विकल्प भी नहीं; बल्कि
कोरोना काल में छोटे छोटे बच्चों की ऑन लाइन क्लासेज में यह
जरूरी होता गया ।
नयी उम्र के माता पिता को उनके बच्चों को लेकर लालन पालन में उनके मानसिक विकास की तमाम समस्याएँ ,तब और बढ़ जाती है जब वे एकल परिवार हैं। आजकल बुजुर्गों या छोटे भाई बहनो के बिना न्यूक्लियस फेमली सेट अप में अधिकतर शहरी लोग रह रहे हैं । पति दिन भर कार-रोजगार के सिलसिले में बाहर रहते हैं, जबकि घर पर बची अकेली होम मेकर पत्नी बच्चों की आया और शिक्षिका दोनों भूमिकाओ को एक साथ निभा रही होती है । इसलिए यह मेट्रो और महानगरों के निवासियों की आम समस्या है । बच्चों को तमाम प्रकार से सक्रिय रखने की बाध्यता के चलते माताएँ बहुत आसानी से मोबाइल स्क्रीन में बाल चित्रों– गीतों या कार्टून फिल्मों के माध्यम से बच्चों को बहलाना शुरू कर देती हैं । बस नई दिक्कतों की शुरुआत यहीं से होती है ।
वैसे
भी छोटे बच्चों को सकारात्मक रूप से व्यस्त रखना और उनकी उछल कूद तथा सक्रियता को
सही दिशा देना माता पिता या अभिभावकों के लिए हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है । लेकिन
जब इन नन्हे बच्चों को आप टोकते हैं, उनको उनकी गतिविधियों के प्रति “नो - नो” कहकर उनमें निराशा जगाते हैं । तब
स्थित और भी विपरीत हो जाती है। दो वर्ष का बच्चा हो या उससे
थोड़ा बड़ा, उसके सीखने की जिज्ञासा उम्र के साथ बढ़ती है, तब यह बर्ताव सही नहीं है । पाँच वर्ष से आठ वर्ष के बच्चों को “नहीं
नहीं”, “ऐसा बच्चे नहीं करते”, “ओह ये
मत कर”, “अरे लोग क्या सोचेंगे , वेरी
बैड”, “यू आर गुड बेबी” , “नो यू आर नाऊ नॉट आ चाइल्ड” आदि कहकर कभी डांटे, कभी बहलाएँ, कभी रुकावट पैदा करें । तब यह तो और भी अनुचित है । इससे बचना चाहिए ।
बाल मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यह सभी बातें बच्चों के कोमल मनो-मस्तिष्क में उनकी समस्या का सही हल नहीं है । प्राकृतिक रूप से बच्चों को नया सीखने की इच्छा रहती है, उसी में वे
सही और गलत को पहचान करना शुरू करते हैं तथा अपने मस्तिष्क में इन तथ्यों को यादकर बिठाते जाते हैं । यह वो अवस्था होती है, जब उनमें किसी प्रकार का भय या संकोच नहीं होता है और वे खुश रहना चाहते हैं, अपनी प्रशंशा सुनना चाहते हैं, यहाँ तक कि बड़ों को अपने साथ खेलने या नृत्य करने या मस्ती करने का खुला प्रस्ताव भी देते हैं । फिर माता पिता क्या करें, चुप होकर सब देखते रहें, उनकी गलत या सही क्रिया कलापों का समर्थन करते हुए क्या अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ खड़े कर लें , आखिर वे क्या करें । यह प्रश्न मस्तिष्क में सभी के उभरता है । मै इसका उत्तर देना चाहूँगी कि आप अपनी ज़िम्मेदारी से इस्तीफा न दें , बल्कि इस समस्या के हल पर मनोवैज्ञानिक परिणामों की मदद लेना शुरू करें ।
हमें
सबसे पहले बच्चों की सक्रियता उनकी
जिज्ञासा उनकी पसंद और उनकी अरुचि को समझना होगा । उसी के अनुरूप खुद माता पिता या
अभिभावक के रूप में अपने व्यवहार और सलाह को न्याय संगत , वातावरण संगत और बच्चे के स्वास्थ्य संगत बनाना होगा, ताकि उन्हे सही दिशा मिल सके
। वस्तुतः हमें इस पर गंभीर और सजग होने की जरूरत है ।
स्मार्ट
फोन आज के समय जरूरत की महत्त्वपूर्ण
घरेलू डिवाइस है । हम विभिन्न कार्यों के
लिए स्मार्ट फोन पर व्यस्त रहते हैं । इसी स्मार्ट फोन को लोग बच्चों को खिलौने की
तरह पकड़ा भी दे रहे हैं । इसलिए सबसे पहले जरूरी है कि आप अपने स्मार्ट फोन पर
उसकी सेटिंग इस प्रकार से रखें कि छोटे बच्चे यदि उसे थामे हुए पूरे घर में चहल
कदमी कर रहे हों, तब कोई ऐसा बड़ा नुकसान न हो कि जिसकी वजह
से आप तकलीफ में पड़ जाएँ । इसके लिए सबसे पहले स्मार्ट फोन के अंदर अपने ईमेल
एकाउंट , फेसबुक , व्हाट्सेप आदि सोशल
मीडिया सहित आन लाइन पेमेंट की सभी सुविधाओं को पासवर्ड से सुरक्षित करें । फोटो
गैलरी , कैमरा आदि को भी लॉक करें ताकि कभी ये स्मार्ट फोन
बच्चों के हाथों से छूट कर बालकनी आदि से बाहर गिरे, तब आपके
महत्त्वपूर्ण संदेशों और वालेट आदि का दुरुपयोग कभी न हो सके । बच्चों को निर्धारित कमरे – लॉबी
में रहने को ही कहते रहें, ताकि कभी वे वाशरूम के टैप या बकेट के पानी से आपके स्मार्टफोन को नहलाना
न शुरू कर दें । ऐसी स्थित से निपटने के लिए बच्चों के खिलौनो में भी स्मार्ट फोन
आ रहे हैं । उन्हे ही छोटे बच्चों को गिफ्ट करें । और अपने स्मार्ट फोन को देने से
परहेज रखें ।
बच्चों
को बहलाने या उन्हे खाना खिलाने में उनको राइम्स या कार्टून फिल्मे दिखाने से बचें, इसकी जगह टेलीविज़न के किड्स चैनल का उपयोग
करें, यदि फिर भी
आपकी अपनी सहूलियत यदि स्मार्ट फोन से बन रही है तब आप आन लाइन राइम्स या कार्टून
प्ले करने के बजाय पहले से निर्धारित पसंद को डाउन लोड करके रख लें और उसकी को प्ले
करें । यह देखने में आया है कि ऑन लाइन प्ले करने में कई बार
विज्ञापन और गंदे अरुचिकर फिल्में या वीडियोज़ भी प्ले हो जाते हैं , जिनका बच्चों के कोमल मन में गलत प्रभाव पड़ सकता है । ऑनलाइन गेम्स में बच्चों को पहुँचने का रास्ता खुद न बनें। उसकी जगह गेम्स खिलौनो की शॉप में से लेकर आएँ,
ताकि बच्चों के स्किल में बढ़ोत्तरी भी हो और समाल स्क्रीन को लगातार देखने से उनकी
आँखों पर कोई दुष्प्रभाव भी न पड़े ।
- अनीता सिंह [9450213555 ]
Tuesday, November 30, 2021
169
प्रेस नोट : पेड़ों की छाँव तले 81 वीं गोष्ठी के अंतर्गत 7वीं बाल राष्ट्र गान- कविता प्रतियोगिता सम्पन्न
आज़ादी के 75वें अमृत महोत्सव के अवसर पर एक शाम राष्ट्र गीतों के नाम
“भारत हृदय हमारा है, पृथ्वी में सबसे प्यारा है ...”.
“देश का कर्ज चुकाने को हम अपना फर्ज निभाते हैं...”. ने प्रभावित किया
पेड़ों की छांव तले संस्था के अंतर्गत “आजादी के रंग- बच्चों के संग” शीर्षक से बाल राष्ट्र गान एवं देशभक्ति कविता वाचन प्रतियोगिता सम्पन्न हुई । आज़ादी के 75वें अमृत महोत्सव के अवसर पर आन लाइन और वास्तविक दोनों रूपों से पिछले तीन दिनो से वृहत स्क्रीनिंग को कवयित्री आरती स्मित ,पल्लवी मिश्रा , गीता गंगोत्री एवं शशि किरण ने पूर्ण समर्पण के साथ किया । राजकीय प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती शादाब कमर ने पूर्व की भांति सहयोग किया ।
राष्ट्रीय स्तर की इस प्रतियोगिता में राजकीय प्राथमिक विद्यालय वैशाली , बुद्धविहार वसुंधरा के साथ स्थानीय एवं अन्य प्रदेशों बिहार , झारखंड , महाराष्ट्र और कोलकाता के 15 वर्ष से कम उम्र के विद्यार्थियों ने इसमें बढ़ चढ़ कर कई चक्रों में हिस्सा लिया ।
वैशाली के वैभव भट्ट के स्वरचित गीत “देश का कर्ज चुकाने को हम अपना फर्ज निभाते हैं” को प्रथम स्थान मिला जबकि बोकारो स्टील सिटी झारखंड की मुक्ता सिंह को बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी के लिए तथा जफिया दिल्ली को ये काश मेरी ज़िंदगी में सरहद की कोई शाम आए एवं महाराष्ट्र से यशस्वी दहिया को उनके गीत जिसे देश से प्यार नहीं है जीने का अधिकार नहीं है के लिए संयुक्त रूप से दिवतीय स्थान मिला ।
दिल्ली की स्वाती यादव कक्षा 4 के साथ औरंगाबाद से शामिल श्रद्धा विजय परदेशी कक्षा 6 को व कोलकाता से जुड़ी डी पीएस स्कूल की कक्षा 5 की विद्यार्थी अक्षरा अनुपमा को संयुक्त रूप से तीसरा स्थान मिला ।
जबकि राजकीय प्राथमिक विद्यालय वैशाली को उनकी विशिष्ट नाट्य प्रस्तुतियों, फ़ैन्सी ड्रेस और रिकार्ड नृत्य के लिए अलग से पुरस्कृत किया गया है ।
फिनाले के रूप में प्रमुख कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे प्रख्यात बाल साहित्यकार डॉ दिविक रमेश ने बाल रचना पाठ के इस सातवें आयोजन को सफल बताते हुए कहा कि देशभक्ति और आजादी पर लिखी गईं रचनाएँ राष्ट्र चरित्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं । उन्होंने कहा कि देश की माटी , समाज, फूल आदि पर लिखी कविताएं भी देशभक्ति की कविताएं हैं । बच्चों की प्रस्तुतियों की सराहना की और उनके भविष्य को उज्ज्वल कहा ।
अध्यक्षता करते हुए विख्यात बाल साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने मलिन बस्तियों में कविता बनाओ कविता सिखाओ के तर्ज पर और ज्यादा काम करने के सुझाव दिये साथ ही “तुम क्यों आए जंगल में आए ” शीर्षक से कविता पाठ कर पर्यावरण के प्रति चिंता व्यक्त की ।
संयोजक अवधेश सिंह ने देश गान पढ़ा “भारत है घर आँगन अपना / ये राष्ट्र नहीं ये है सपना / यहाँ मिलजुल कर सब रहते हैं / सुख –दुख मिलकर ही सहते हैं / कहीं कोई नहीं बटवारा है / भारत हृदय हमारा है / पृथ्वी में सबसे प्यारा है ॥
इस दौरान उपस्थित बाल रचनाओं की वरिष्ठ कवयित्री आरती स्मित ने “गूगल भैया” शीर्षक से कोरोना से आजादी दिलाने वाली कहानी पढ़ी , कवयित्री शशि किरण ने मोर्चे पर घर से दूर तैनात फौजी के बच्चे की अनुभूति को “मेरे पापा” शीर्षक से व्यक्त किया ।
– अवधेश सिंह, संयोजक-अध्यक्ष “पेड़ों की छाँव तले फाउंडेशन , वैशाली
Sunday, November 14, 2021
Sunday, October 10, 2021
Saturday, April 10, 2021
166-तितली रानी
तितली रानी
प्रियंका गुप्ता
तितली रानी, तितली रानी
पास हमारे आओ न ,
पंख फैलाकर उड़ती कैसे
हमको भी सिखलाओ न ,
नीले, पीले, लाल , हरे कई
रंगों में भरमाओ न ,
जीवन का हर रंग समाया
तुमने अपने तन-मन में
सतरंगों की बौछारों में
हमको भी नहलाओ न ,
मस्ती से तुम रहती कैसे
यह गुण हमें सिखाओ न ,
तितली रानी, तितली रानी
पास हमारे आओ न ।
एम.आई.जी -292, कैलाश विहारआवास विकास योजना सं- एक,
कल्याणपुर, कानपुर-208017
(उ.प्र)
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Tuesday, April 6, 2021
162- कपास का फूल
कपास का फूल
चक्रधर शुक्ल
धुनिया मुझको धुनता है
मुझे जुलाहा बुनता है ।
सज -धज
के जब आता
हूँ,
सब पर मैं छा जाता हूँ ।
जाड़ा दूर भगाता हूँ
,
सबके मन को
भाता हूँ
।
मैं बाती बन जाता हूँ ,
थाली में
सज जाता हूँ
।
सबके मैं
अनुकूल हूँ
,
मैं - कपास
का फूल हूँ ।