मेरा आँगन

मेरा आँगन

Sunday, June 7, 2020

158


एकांकी नाटक
 चक्रव्यूह-  
कमला निखुर्पा ( प्राचार्य केन्द्रीय विद्यालय , पिथौरागढ़)


पात्र
1-माँ
2-शिवम (बेटा, उम्र 16 साल)
3-दिव्या (बेटी उम्र 14 साल)
4-डाक्टर
5-पुलिसवाला
6-आशीष (शिवम का दोस्त)
7-हिमांशु(शिवम का दोस्त)
दृश्य एक
 घर के बैठक कक्ष का दृश्य है। माँ सोफ़े पर बैठी अखबार पढ़ रही है। शिवम का प्रवेश।

माँ- अरे शिवम क्या हुआ? इतना परेशान क्यों है? आज तुम्हारा यूनिट टेस्ट था ना?
पेपर कैसा हुआ? शिवम क्या हुआ? कुछ बोलता क्यों नहीं? किसी से लड़ाई हुई है क्या?
(शिवम बैग सोफ़े पर  फेंककर अपनी टाई खोलता है)
शिवम (अनमने  स्वर में)-कुछ नही माँ मेरा खाना लगा दो जल्दी, मुझे ट्यूशन के
     लिए देर हो जाएगी।
माँ- ठीक है ठीक है, लगा रही हूँ मैं खाना। अब बताओ भी पेपर कैसा हुआ? 90% से
   अधिक ही  हैं ना?
शिवम (झल्लाकर) पेपर पेपर पेपर लो देखो पेपर ।  90% नहीं केवल 40% अंक ही
    आए हैं मेरे फ़िजिक्स में। मैं अच्छा नहीं कर पाया माँ।
माँ-( हैरान होकर) 40% !! तुमने तो फ़िजिक्स की ट्यूशन भी लगाई है, वो भी शहर के
    सबसे महंगे ट्यूटर से फ़िर भी इतने कम नंबर? क्यों …?

 शिवम-(दुखी स्वर में) माँ मुझे नहीं पता…क्यों? मैं तो पूरी मेहनत करता हूँ  फ़िर भी
      मेरे नंबर कम क्यों आते हैं। कितनी बार बताया आप लोगों को, मुझे ये फ़िजिक्स,
      कैमिस्ट्री समझ नहीं आती। मुझे तो कैनवस और रंगों से प्यार है पर आप और
      पापा …
 माँ- शिवम हमने भी कितनी बार समझाया है, हम तुम्हें आर्किटेक्ट इंजीनियर बनाना
    चाहते हैं और तुम एक मामूली शौक के लिए पेंटर बनकर अपनी जिंदगी बरबाद
    करना चाहते हो ? ये रंग कागज में ही अच्छे लगते हैं ,असल जिंदगी में नहीं। चलो
    अब खाना खा लो।
शिवम (झल्लाकर)।ओफ़्फ़ो…फ़िर भाषण। रहने दो खाना-वाना। मै जा रहा हूँ । मुझे
    फ़िजिक्स की ट्यूशन के लिए  देर हो रही है।
(शिवम अपना बैग उठाकर चला जाता है)
माँ- अरे  शिवम बेटा! खाना तो खा ले, सुबह से कुछ नही खाया। शिवम शिवम!!!!
   हे भगवान! आज फ़िर बिना खाए भूखा चला गया ये लड़का। दिव्या ,ओ दिव्या! कहाँ
   गई  ये लड़की भी…

दिव्या-क्या हुआ माँ, भैया नही आए क्या?
माँ-अरे बेटा शिवम आया था और बिना खाए ही ट्यूशन चला गया, बताओ खाने की भी
  फ़ुर्सत नहीं है।

दिव्या-खाने की फ़ुर्सत कहा होगी माँ, पता है, भैया आज फ़िर टिफ़िन लेकर नही गए
      थे, स्कूल कैंटीन में खाकर आए होंगे। बर्गर, पिज्जा या समोसा।
माँ- हाँ,आज फ़िर बाहर से उल्टा-सीधा खाकर आया होगा।
    क्या होगा आज की पीढ़ी का? सुबह से घोड़े की तरह दौड़ रहा है, रुकने का तो नाम
    ही नहीं ।
दिव्या-हुँह भागता रहता है, कान में मोबाइल की लीड डालकर बाइक में सवार होकर,
     इतनी तेज चलाता है कि ………… आपको तो मालूम है ना कि 18 साल से कम
    उम्र के बच्चों को गियर वाला वाहन चलाना गैर कानूनी है। आपने उसे बाइक
    दिलाई ही क्यों? साइकिल तो थी न उसके पास?
माँ- कैसी बातें करती हो दिव्या, तुम्हें तो मालूम है न कितनी व्यस्त दिनचर्या है तुम्हारे
   भाई की। पहले स्कूल फ़िर तीन-तीन विषयों के ट्यूशन । साइकिल से आते-जाते
   कितना थक जाता था बेचारा; इसीलिए तो उसे मोटर साइकिल दिलाई हमने और
   रही बात कानून की तो बेटा, सारे नियम कानून व्यावहारिक नहीं होते, जीवन में कई
   समझौते करने पड़ते हैं। तुम्हें क्या पता? तुम्हें तो ट्यूशन नहीं जाना पड़ता है ना।

दिव्या-मैं क्यों जाऊँ ट्यूशन ? मैं स्कूल में मन लगाकर पढ़ती हूँ  जो समझ में नहीं
     आता अपने टीचर से पूछ लेती हूँ । हर बार अव्वल आती हूँ  अपनी कक्षा में। अरे
     हाँ… माँ मुझे आपको कुछ दिखाना है… अपनी आँखें बन्द करो ना………प्लीज माँ
    हाँ अब देखो……मुझे आज प्राइज मिला……।
माँ- अरे वाह! प्राइज! कितना सुंदर है, दिव्या अब प्राइज के बारे में जल्दी से बता दो।
दिव्या- बताती हूँ , बताती हूँ । माँ ,मैने कविता लेखन- प्रतियोगिता में भाग लिया था, मेरी
       कविता जलसंचय’ को फ़र्स्ट प्राइज मिला।
माँ- अरे वाह! मेरी मुनिया तो कवयित्री  बन गई। शाबाश बेटा!
    तुम ये सब काम कब करती हो भई ?
दिव्या- मैं ट्यूशन जाकर समय बरबाद नहीं करती माँ । इसीलिए पढ़ाई के साथ-साथ
     अपनी रुचि के काम  करने के लिए वक्त मिल जाता है मुझे।
 माँ- भई हमें भी सुनाओ अपनी कविता-

दिव्या- सुनो-

पानी है अनमोल,
इसका मोल जान लीजिए।
आने वाली पीढ़ी का
कुछ तो खयाल कीजिए।

बूँ-बूँद से बनता जल
जल से बनता जीवन
पानी धरती की जान है
बेकार न बहाया कीजिए.।

पानी है अनमोल,
इसका मोल जान लीजिए।
आने वाली पीढ़ी का
कुछ तो खयाल कीजिए।

जलसंचय नाकिया अभी तो
जल्दी वो दिन आएगा।
हर पौधा हर एक जीव
तड़प तड़प रह जाएगा।
पानी पानी चिल्लाकर
इंसा प्यासा मर जाएगा।

आने वाली पीढ़ी का
कुछ तो खयाल कीजिए।
पानी है अनमोल,
इसका मोल जान लीजिए।

 माँ, कैसी लगी आपको मेरी कविता………?

माँ-बहुत सुन्दर, प्रेरक रचना है। इसी बात पर आज मैं तुम्हें अपने हाथ से हलवा बनाकर खिलाऊँगी।
 (तभी फ़ोन की घण्टी बजती है)
माँ- हैलो! जी हाँ मैं शिवम की माँ बोल रही हूँ । क्या?? (परेशान हो जाती है) कौन से अस्पताल में? मैं आ रही हूँ । ( फ़ोन रखकर रुआँसी आवाज में) दिव्या ! जल्दी चलो शिवम का एक्सीडेंट हो गया है।
(दोनों माँ बेटी तेजी से निकल जाती हैं।)


दृश्य परिवर्तन

  अस्पताल का कमरा, शिवम बिस्तर पर लेटा कराह रहा है, माथे से खून बह रहा है। उसके दोनों दोस्त परेशानी की मुद्रा में खड़े हैं। डाक्टर, शिवम की जाँच कर रहा है। वही एक पुलिसवाला भी चहलकदमी कर रहा है। तभी माँ और दिव्या का प्रवेश होता है।


माँ-(घबराई हुई है)- शिवम , क्या हुआ बेटा!!  शिवम!, डाक्टर क्या हुआ है मेरे बेटे को? (शिवम के दोस्तों से) आशीष बेटा!, हिमांशु क्या हुआ है शिवम को, और तुम दोनों को भी ये खरोंचे कैसी?( दोनों अपना सिर झुका लेते हैं) बताओ बेटा…।

पुलिसवाला- ये क्या बताएंगे मैडम!, मैं बताता हूँ । आपका बेटा बिना हैलमेट पहने मोटरसाइकिल चला रहा था, फ़ुल स्पीड में। वो भी अपने दोनों दोस्तों को पीछे बैठाकर, ऐसे में दुर्घटना तो होनी ही थी। आपके बेटे की मोटरसाइकिल जब्त हो ग है यातायात के नियमों का उल्लंघन करने के जुर्म में आपका बेटा इस वक्त हिरासत में है और (शिवम के दोस्तों से) तुम दोनों इसी वक्त चलो मेरे साथ थाने, दोपहिया वाहन में तीन तीन लोग सवारी करते हो? अपने साथ-साथ सड़क पर चलने वाले दूसरे लोगों की जिंदगी से भी खेलते हो?

आशीष और हिमांशु- (रोते हुए) हमें माफ़ कर दीजिए सर, फ़िर कभी ऐसी गलती नही होगी।
माँ- हे भगवान ये क्या हो रहा है!! (पुलिसवाले से) भाई साहब बच्चे हैं माफ़ कर दीजिए इनको, (डाक्टर से) डाक्टर साहब! बताइए ना कैसा है मेरा शिवम?

(पुलिसवाला दोनों बच्चों को लेकर बाहर चला जाता है)


डॉक्टर- देखिए मैने इंजेक्शन दे दिया है, चोटें गहरी नहीं है। ठीक होने में हफ़्ता भर लगेगा इसे पर अंदरूनी कमजोरी बहुत है । आपका बेटा को एनीमिया है,

माँ- एनीमिया???

डॉक्टरहाँ... एनीमिया यानी खून की कमी,  मैं पेशेंट से कुछ सवाल पूछ्ना चाहूँगा।
हां शिवम बेटा! बताइए ये  एक्सीडेंट कैसे हुआ? क्या आप किसी से टकरा गए थे?

शिवम- नहीं, बाइक चलाते-चलाते अचानक मुझे चक्कर आ गया था।

डाक्टर- आपने आज सुबह क्या खाया था?
शिवम- मैगी।
डॉक्टर- और दिन में?
शिवम- स्कूल के कैंटीन में बर्गर ले लिया था।
डॉक्टर- छुट्टी के बाद घर पहुँचकर आपने लंच लिया होगा  क्यों ?
शिवम- जी  कभी- कभी । अक्सर समय ही नही मिलता। ट्यूशन जाना होता है।
डॉक्टर- स्कूल टाइम क्या है आपका?
शिवम- जी सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक ।
डॉक्टर- ट्यूशन कितने बजे से जाते हो?
शिवम- 2:30 बजे घर पहुँचता हूँ  फ़िर 3 बजे से मेरी ट्यूशन क्लासे शुरु हो जाती है।

डॉक्टर- वापस घर कब पहुँचते हो?
शिवम- 7:30 या 8 बजे।
डॉक्टर- इतनी देर से क्यों?
शिवम- 3 से चार बजे तक फ़िजिक्स का ट्यूशन,  4 से 5 मैथ्स, 5 से 6 कैमिस्ट्री फ़िर
    
6 से 7 बजे तक कंप्यूटर क्लासेस। इसीलिए घर आते आते 7:30 ,8 बज जाते हैं। घर
    जाकर पहले स्कूल का होमवर्क, फ़िर ट्यूशन का होमवर्क।

(डॉक्टर शिवम की माँ के साथ अलग जाकर बात करता है)

डाक्टर- (शिवम की माँ को) देखिए मैडम ! एक बात मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूँ । आप अपने बच्चे की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही हैं । पहली बात, आपका बेटा जंक फ़ूड ले रहा है और इसी फ़ास्ट फ़ूड की वजह से उसकी आँतों में सूजन आ गई है। आप उसे सब्जी फ़ल खिलाइए नहीं तो एनीमिया घातक सिद्ध हो सकता है। दूसरी बात,  वो एक टीन एज बच्चा है कोई रोबोट नहीं। पढ़ाई के साथ-साथ उसे आराम , खेलकूद और मनोरंजन की शक्त जरूरत है। क्या आपका बेटा खेलने जाता है?
माँ- नहीं डाक्टर साहब, खेलने का समय ही नहीं होता  उसके पास। हाँ पहले पेंटिंग  बनाता था पर पढ़ाई के बोझ से वो भी छूट गया।


डाक्टर- देखिए मैडम! पढ़ाई व्यक्तित्व के विकास के लि है, विनाश के लिए नहीं। अपनी महत्वाकांक्षा के लिए आपने बच्चे की रुचियों का गला घोंटकर उसपर पढ़ाई का बोझ डाल दिया। आपका बेटा भयंकर तनाव और दबाव में जी रहा है। उसका स्वास्थ्य तो चौपट हो ही रहा है, अगर अभी भी आपने ध्यान नहीं दिया तो एक दिन वह अपना मानसिक संतुलन भी खो बैठेगा।
 माँ- ( सिसकते हुए) ओह ! डाक्टर आपने मेरी आँखें खोल दीं। अब हम अपनी महत्वाकांक्षा के बोझ तले अपने बच्चों को नहीं दबने देंगे।  उनका बचपन नहीं छिनने देंगे।
-0- [ पर्दा गिरता है ]




















Tuesday, May 5, 2020

157


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


6-पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ, पेड़ लगाओ
गुरु जी हमको समझाते ।

बिना पेड़ धरती है सूनी
पेड़ सभी हैं खुशियाँ लाते।

मीठे फल और सुन्दर फूल,
छाया देकर सुखी बनाते ।
-0-


7-मेरी गुड़िया

मेरी भोली गुड़िया रानी
सुनती मुझसे रोज़ कहानी।

आँखें नीली सुन्दर बाल
परियों -जैसी इसकी चाला

बढ़िया जूते-कपड़े पहने
मेरी गुड़िया के क्या कहने !

-0-
8-विद्यालय

लेकर बस्ता हँसी -खुशी से
विद्यालय में जाते हम ।

मिल-जुलकर हम पढ़ते-लिखते
मिल-जुल करके गाते हम ।

अच्छी-अच्छी बातें ही सब
सदा सीखकर आते हम ।
-0-
9-मदारी

डुगडुग- डुगडुग डमरू बजता
उछल-उछलकर चले मदारी ।
नाचे बन्दर और बंदरिया
भीड़ देखती उनको सारी।

रूठ बंदरिया घर को जाती
बंदर उसे मनाकर लाता।
कान पकड़कर्। नाक रगड़कर
देखो सबका मन बहलाता ।

-0-
10-प्रार्थना

हरे-भरे पेड़ और पौधे
हे भगवान् ! बनाए तुमने ।

रंग-बिरंगे ख़ुशबू  वाले
अनगिन फूल खिलाए तुमने।

तरह-रतह की बोली वाले
पंछी भी चहकाए तुमने ।

सूरज चाँद रोशनी बाँटे
तारे भी चमकाए तुमने ।

-0-

Sunday, May 3, 2020

156



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1-गैया

हरी दूब है गैया खाती
सबको पीठा दूध पिलाती ।

बने दूध से दही-मलाई
तरह -तरह की खूब मिठाई ।
-0--

2-गीत

ढोल बजा मेढक का ढम-ढम
भालू बना बाँसुरी वाला ।

अच्छे साथी मिले गधे को
गीत सुनाता गड़बड़झाला ।
-0-

3-सर्कस

देखो सर्कस का यह खेल
हाथी, घोड़ा ठेलमपेल ।

झूला झूल उछल हवा में
कुछ देखो छलाँग लगाते।

बन्दर , चीता, जोकर आते
सब हैं अपने खेल दिखाते।

-0-

4-नेवले की जीत

समझ नेवले को छोटा
नाग झपट पड़ा ।

बहुत निडर था नेवला
डटकर खूब   लड़ा ।

नेवले की जीत हुई
हारा नाग बड़ा ।

-0-
5-सवारी

आसमान पर जहाज उड़े
जिधर चाहता उधर मुड़े॥

छुक-छुक करके आती रेल
दूर-दूर तक जाती रेल ।

लम्बी सड़क बहुत इठलाती
मोटर इस पर दौड़ लगाती ।
-0-

Friday, May 1, 2020

155-कुकडू-कूँ:

समीक्षा 
प्रियंका गुप्ता

कुकडू-कूँ: रामेश्वर काम्बोज ‘हिमाशु’, प्रकाशक : विकास पेपर बैक / 221, मेन रोड, गांधीनगर, दिल्ली-110031, द्वितीय संस्करण:2003, मूल्य : बीस रुपये, पृष्ठ :32,ISBN:81-88124-42-7
बच्चों के सरस-कोमल मन को अगर सहजता से कोई बात बतानी-सिखानी हो या उनके मन की बात दुनिया के सामने लानी हो तो छोटी-छोटी मनभावन कविताओं से अधिक उत्तम साधन कोई और नहीं होता । अपनी गेयता के कारण ये स्वयम बच्चों की जुबान पर भी बेहद आसानी से चढ़ जाती हैं ।
वैसे तो हर माता-पिता अपने बच्चों को बहुत अच्छे से समझता है, पर मेरा मानना है कि  एक बच्चे के मन को जितनी अच्छी तरह से एक शिक्षक समझ सकता है, उतना और कोई नहीं । इसका प्रमाण श्री काम्बोज जी द्वारा रचित इन मनोहारी पंक्तियों में खुद ही मिल जाता है । काम्बोज जी स्वयं एक शिक्षक रहे हैं और देखिए, बस्ते का बोझ कम हो जाए, हर बच्चे की ऐसी इच्छा को कितने अच्छे से इन्होने समझा है- भारी बस्ता- शीर्षक कविता की इन पंक्तियों में-
माँ मुझसे यह नहीं उठेगा
बस्ता इतना भारी।
इस बस्ते के आगे मेरी
हिम्मत बिल्कुल हारी
बोझ करा दो कुछ कम इसका
सुन लो बात हमारी ।
काम्बोज जी की बाल-कविताओं में एक सब से बड़ी खासियत मुझे यह भी दिखी कि एक तरफ तो इनमे बच्चों के मन की झलक दिखती है, वहीं हर कविता में बड़ों के लिए भी कोई-न-कोई  सन्देश मौजूद है, बस आवश्यकता है तो उस सन्देश को समझ कर अपने आसपास की दुनिया में एक सकारात्मक बदलाव लाने की...।
‘मेरी नानी’ में बच्चा वही पुरानी परियों की कहानी सुनना चाहता है, पर अगर सोचिए तो क्या आजकल के इस कम्प्यूटरीकृत समय में एकल परिवारों के अकेलेपन से जूझते बच्चे के पास कहानी सुनाने को कोई नानी हैं भी ?
‘पत्ता’ शीर्षक कविता में बेचारा पत्ता घूमने के शौक में डाल से टूटकर कलकत्ता तो जा पहुँचता है, पर वहाँ के धूल-धुएँ से घबराकर वापस अपनी बगिया के मनोरम वातावरण में भाग आता है ।
दादा-दादी तो हर बच्चे को प्यारे होते हैं, इसलिए उनका हरेक अंदाज़ बच्चों को भाता है । ‘दादाजी’ शीर्षक कविता में दादाजी तड़के जागकर न केवल अच्छी सेहत के लिए टहल भी आते हैं, बल्कि वे अपनी बातों से सबके मन में जोश भी भरते हैं ।
दादाजी कविता में जहाँ दादाजी सबसे न्यारे हैं, वहीं ‘रोमा’ में चार शैतान पिल्ले हैं, जो बेचारे भौंकने भर के लिए अपनी माँ रोमा से डाँट खा जाते हैं।‘रोमा’ नाम की कुतिया सचमुच काम्बोज जी के घर की पहरेदार थी। दिनभर स्कूल में  रहती थी और स्कूल के बाद घर पर। भूकम्प आने पर इसने रात में भौंक-भौंककर पूरे परिवार को जगा दिया था। ज़रा देखिए तो-
रोमा घर की पहरेदार
साथ में उसके पिल्ले चार।
चारों पिल्ले हैं शैतान
इधर-उधर हैं दौड़ लगाते
बिना बात भौंकते हैं जब
डाँट बहुत रोमा की खाते।
‘चाचा जी का बन्दर’ में चंद पंक्तियों में ही काम्बोज जी एक बंदर की हरकतें बहुत दृश्यात्मक रूप से प्रस्तुत की हैं । शीशा देख के बन्दर का मुँह बनाना और खों-खों करने और पेड़ों से फल तोड़ना आदि वे बातें हैं , जिनसे कोई भी बच्चा बहुत अच्छे से परिचित होता है और इस कविता को पढ़कर उसे उतना ही आनंद आएगा, जितना किसी बन्दर को अपनी आँखों के सामने उछल-कूद मचाते देखकर होता है ।
‘तारे’ और ‘तितली रानी’ कविताएँ , जहाँ बहुत सहजता से बच्चों को प्रकृति से जोती हैं, वहीं ‘नन्ही चींटी’ और ‘मुर्गा बोला’ कविताएँ बालमन को रोज़ सवेरे जल्दी उठने और मेहनत करने की सीख खेल-खेल में दे जाने में बिल्कुल सार्थक साबित होते हैं ।
काम्बोज जी की बाल कविताएँ अपने कलेवर में भले छोटी हैं, पर बच्चों में संस्कार डालने के लिए बहुत लम्बे-चौड़े व्याख्यान की आवश्यकता नहीं, इस बात को बहुत अच्छे से सिद्ध करती हैं । उदहारण के तौर पर देखिए कविता- माता-पिता -
माता-पिता बहुत ही अच्छे
जीभर करते हमको प्यार ।
सुबह जागकर सबसे पहले
उन्हें करते हम नमस्कार ॥
‘बापू’ और ‘तिरंगा’ शीर्षक कविताएँ कितनी खूबी से नन्हे दिलों में जीवन भर के लिए देशभक्ति का पाठ पढ़ा जाती है, ये बात निश्चित ही क़ाबिल-ए-तारीफ़ है । सिर्फ बच्चे ही क्यों, ‘तिरंगा’ की ये पंक्तियाँ अगर बड़े भी पढ़ेंगे तो निश्चय ही एक ओज से भरा हुआ महसूस करेंगे । आप स्वयं पढ़ कर अनुभव कीजिए-
सदा तिरंगा झण्डा प्यारा
ऊँचा इसे उठाएँगे हम ।
चाहे जान हमारी जाए
इसको नहीं झुकाएँगे हम ।
 ‘माली’ और ‘मोर’ शीर्षक कविताएँ प्रकृति की एक मनमोहक झलक बेहद सहज रूप से प्रस्तुत करके बच्चों के मन को हर्षा जाती हैं ।
काम्बोज जी ने एक कविता लिखी- मेढक जी- इसे पढ़कर तो बच्चो और बड़ों दोनों को समान रूप से मज़ा आ जाएगा । जब मेढक जी बरसात में छाता लेकर निकलें और उसके बाद भी भीग जाएँ,  तो बुखार आना तो लाजिमी है न...और फिर कछुआ डॉक्टर साहब तो सुई लगाएँगे ही...और वह भी एक नहीं, चार-चार...। बाप रे ! अब भला किसकी हिम्मत होगी ,जो बारिश में भीगकर बीमार पड़ेगा । ज़रा आप खुद ये मज़ेदार कविता पढ़कर देखिए, आप इसके बाद भीगना चाहेंगे क्या ?
छाता लेकर मेढक निकले
जैसे अपने घर से।
गरज-गरजकर, घुमड़-घुमड़कर
बादल जमकर बरसे ।
भीगे सारे कपड़े उसके
हो गया तेज़ बुखार ।
कछुए ने दे दी दवाई
और लगे इंजेक्शन चार ।
एक तरफ ये मेढक जी हैं ,तो दूसरी ओर ‘मोटूराम’ भी हैं । अब अगर सड़क पर कोई मोटूराम की तरह गड़बड़ ढंग से चलेगा, तो फिर गिरकर चोट तो खाएगा ही ।
कभी इधर तो कभी उधर को
चलते जाते मोटूराम ।
मोटर वाला भी चकराया
कहाँ जा रहे मोटूराम ।
बीच सड़क में घबरा करके
गिरे अचानक मोटूराम ।
चोट लगी घुटनों पर भारी
उठते कैसे मोटूराम ।
‘सवाल’ कविता में जो सवाल किए गए हैं, उनसे बच्चे खुद को बहुत अच्छे से रिलेट कर सकते हैं ; क्योंकि कभी न कभी हर बच्चे के मन में ये सवाल तो उठते तो हैं ही ।
‘तोता’ पढ़कर अपने घर के मिट्ठू की याद आ जाती है, और ‘फल’ कविता पढ़कर शायद हर बच्चा बिना ना-नुकुर करके फलों को खाना शुरू कर देगा ।
कुछ कविताएँ थोड़े  और बड़े बच्चों के लिए है, पर फिर भी इतने सहज-सरल शब्दों में कि हर उम्र के बच्चे को नि:संदेह आनंद आएगा ।
बालपन के एक पड़ाव पर हम में से हर किसी ने रेलगाड़ी का डिब्बा या इंजन बनने का मज़ा तो ज़रूर उठाया होगा । उसी सुख का अनुभव ‘रेल चली’ कविता को पढने-गुनने वाला हर बालमन करेगा। इसी तरह सड़क पर अचानक गुज़रते किसी हाथी को देखना बेहद रोमांचकारी लगता है । ‘हाथी दादा’ कविता उसी अनुभव को एक बार फिर अपनी मन की आँखों से देखने का मौक़ा देती है ।
‘प्यारे बादल’ और ‘बादल’ समान-से शीर्षक वाली कविताएँ भले हों, पर दोनों का वर्णन एक-दूसरे से नितांत भिन्न है ।
आप स्वयं देख लीजिए-
बादल
झूम-झूमकर हाथी जैसे आसमान में छाए बादल ।
बरसा पानी चलीं हवाएँ,भारी ऊधम मचाएँ बादल ।।
तड़तड़-तड़तड़ बिजली चमकी,कैसा डर फैलाएँ बादल ।
धूप खिली तो आसमान में,इन्द्रधनुष चमकाएँ बादल ॥
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प्यारे बादल
बिखर गये हैं रूई जैसे, नन्हें –मुन्ने प्यारे बादल ।
खरगोशों की तरह कुदकते, आसमान में न्यारे बादल ।
ठण्डी-ठण्डी चलीं हवाएँ,जब है बादल शोर मचाता ।
पंख खोलकर रंग-बिरंगे, तभी मोर भी नाच दिखाता।
इसी से मिलता-जुलता विषय है-सावन । काम्बोज जी ने ‘सावन आया’ शीर्षक कविता में इस मनोहारी ऋतु का उतना ही सुन्दर चित्रण कर दिया है । सावन में झूले पड़ना, मोर का नाचना और सबका मन प्रसन्नता से खिल जाने जैसी प्यारी भावनाओं से ओतप्रोत ये कविता नि:संदेह पढने के साथ मन-मयूर को नाचने पर मजबूर कर देती है ।
कुल मिला कर इन समस्त भागों में जो कविताएँ प्रस्तुत की गई हैं, वे सब एक से बढ़कर एक हैं और हरेक कविता उस उम्र के बच्चों के मनोभाव के पूरी तौर से अनुकूल होने के कारण बार-बार पढ़ने योग्य है । चित्रों ने कविताओं के सौन्दर्य में और वृद्धि की है।
-0-







Monday, March 16, 2020

154-सवेरा


डॉ.अर्पिता अग्रवाल
1.सवेरा

सूरज जागा रथ को हाँका,
चंदा मामा सोने भागा,
मुर्गों ने फिर बाँग लगाई,
बस्ती ने भी ली अँगड़ाई
झोंका तभी हवा का आया,
चिड़ियों ने मिल गाना गाया,
भोर उजाला लेकर आई
जागो, उठकर दौड़ो भाई।
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2 .सूरज की सवारी

सूर्य की सवारी आई,
सतरंगी उजास है लाई
हरा रंग पौधों से खेला,
नील रंग बिखरा अलबेला
रंग-बिरंगा बाग़ सजाओ,
खिलो-खिलाओ हँसो हँसाओ।
खुशबू की मटकी भर लाओ
सारी दुनिया को महकाओ ।
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