मेरा आँगन

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Monday, June 1, 2015

दो कविताएँ



1-जल
सपना मांगलिक

जल जीवन है,जल ही धन है
जल बिन धरती उजड़ा वन है
जहाँ देखो वहाँ जल की माया
बिन जल असंभव अन्न ,पेड़, छाया
मचे त्राहि-त्राहि जल बिन क्षण -क्षण
हो पशु -पक्षी या फिर कोई जन
जल वाष्प बदरा बन छाये
बिन जल सावन सोचो क्या बरसाए ?
गरमी  भीषण जीवन कहीं ना
धरा है गहना ,और जल नगीना
मैला कचरा बहाकर जल में
सोचो जरा क्या पाओगे?
जब जल ही ना होगा तब बोलो
तुम भी कहाँ जी पाओगे ?
ना करो व्यर्थ जल को बच्चो
करो संरक्षण धरा पर इसका
जल हो रहा अब यहाँ पर कम है
जल जीवन है जल ही धन है
जल बिन धरती उजड़ा वन है
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एफ-६५९ कमला नगर आगरा २८२००५
फोन-९५४८५०९५०८ ईमेल sapna8manglik@gmail.com
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2-प्रेम गणित - 
 सपना मांगलिक

प्रेम से करो हल बच्चो
नफरत के तुम सभी सवाल
भूलकर गलती दूजों की
करो ख़त्म तुम सभी बवाल
सुनो प्रेम को जोड़ो अबसे
नफरत को दो तुम घटा
कर गुणा स्नेह का दिल से
ईर्ष्या को दो शून्य दस बटा
शेष में रखो फिर प्रेम को ही तुम
बाकी दो सबकुछ फिर हटा
देखना इस प्रेम गणित का जादू
कितना देगा फिर तुम्हें मजा
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एफ-६५९ कमला नगर आगरा २८२००५
 फोन-९५४८५०९५०८ ईमेल sapna8manglik@gmail.com
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Saturday, May 30, 2015

तीन कविताएँ



 डॉ.रामनिवास  'मानव' की तीन कविताएँ

1-होगा विकास तभी 

बच्चो, पढ़ना बहुत ज़रूरी।
पर उतना ही खेल ज़रूरी।
तालमेल दोनों में होगा,
होगा व्यक्तित्वविकास तभी।

देशदेश का ज्ञान ज़रूरी,
और बड़ा विज्ञान ज़रूरी।
ज्ञान और विज्ञान मिलेंगे,
होगा व्यक्तित्वविकास तभी।

अधिकारकर्त्तव्य को जानो।
जीवनमंजिल को पहचानो।
जीवन क्या है ? जब समझोगे,
होगा व्यक्तित्वविकास तभी।

खेलकूद को जीवन समझो,
और काम को पूजन समझो।
कामकाज की आदत डालो,
होगा व्यक्तित्वविकास तभी।
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2-  मिलकर सोचें

मिलकर बैठें, मिलकर सोचें,
बातें करें विकास की।

आपस में हो भाईचारा।
मन हो ज्यों मन्दिरगुरुद्वारा।
रहे भावना भरी मनों में
मस्ती औ उल्लास की।

अलगअलग हों रंग सभी के।
अलगअलग हों ढंग सभी के।
फिर भी रहे एकता सब में,
डोरी हो विश्वास की।

नापें धरती, उड़ें गगन में।
संकल्पों का बल हो मन में।
स्वर्ग बनाना है धरती को,
आशा करें उजास की।
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3-दादी माँ

दादी माँ का क्या कहना है !
सोनेचाँदी का गहना है।
दयाधर्म की सूरत दादी।
ममता की है मूरत दादी।

अनुभव की गठरी है दादी।
जीवन की पटरी है दादी।
माना इनकी उम्र पकी है,
लेकिन दादी नहीं थकी है।

धीरेधीरे चलती दादी।
आशीषों में फलती दादी।
पूरे घर का हाथ बँटाती।
जीभर सब पर प्यार लुटाती।

दादी से घर, है घर दादी।
सबसे बड़ी धरोहर दादी।
प्यारभरी पिचकारी दादी।
लगती मां से प्यारी दादी।
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Monday, November 12, 2007

5-कविताएँ




रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'



1-मेरी नानी


मेरी नानी अच्छी नानी
बातें मैंने सारी मानी ।
रात हो गई मुझे सुनाओ
परियों वाली एक कहानी।
वही कहानी बड़ी पुरानी
जिसमें हो परियों की रानी ।

2- भारी बस्ता



माँ मुझसे यह नहीं उठेगा
बस्ता इतना भारी ।
इस बस्ते के आगे मेरी
हिम्मत बिल्कुल हारी
बोझ करा दो कुछ कम इसका
सुनलो बात हमारी ।


3-पत्ता

टूट गया जब डाल से पत्ता
उड़कर जा पहुँचा कलकत्ता
भीड़ देख्कर वह घबराया
धूल –धुएँ से सिर चकराया.
शोर सुना तो फट गए कान
वापस फिर बगिया में आया ॥


4- दादा जी
ये मेरे प्यारे दादा जी
हैं सबसे न्यारे दादा जी।
उठ सवेरे घूमने जाते
सूरज उगते वापस आते।
नहा-धोकर पूजा करत
जोश सभी के मन में भरते ।
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5-रोमा
रोमा घर की पहरेदार
साथ में उसकी पिल्ले चार ।
चारों पिल्ले हैं शैतान
इधर- उधर हैं दौड़ लगाते
बिना बात भौंकते हैं जब
डाँट बहुत रोमा की खाते

Friday, November 9, 2007

दिया जलता रहे


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

यह ज़िन्दगी का कारवाँ ,इस तरह चलता रहे ।
हर देहरी पर अँधेरों में दिया जलता रहे ॥
आदमी है आदमी तब ,जब अँधेरों से लड़े ।
रोशनी बनकर सदा ,सुनसान पथ पर भी बढ़े ॥
भोर मन की हारती कब ,घोर काली रात से ।
न आस्था के दीप डरते ,आँधियों के घात से ॥
मंज़िलें उसको मिलेंगी जो निराशा से लड़े ,
चाँद- सूरज की तरह ,उगता रहे ढलता रहे ।
जब हम आगे बढ़ेंगे , आस की बाती जलाकर।
तारों –भरा आसमाँ ,उतर आएगा धरा पर ॥
आँख में आँसू नहीं होंगे किसी भी द्वार के ।
और आँगन में खिलेंगे ,सुमन समता –प्यार के ॥
वैर के विद्वेष के कभी शूल पथ में न उगें ,
धरा से आकाश तक बस प्यार ही पलता रहे