मेरा आँगन

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Friday, May 15, 2009

नहीं व्यर्थ बहाओ पानी



श्याम सुन्दर अग्रवाल

सदा हमें समझाए नानी,
नहीं व्यर्थ बहाओ पानी ।
हुआ समाप्त अगर धरा से,
मिट जायेगी ये ज़िंदगानी ।
नहीं उगेगा दाना-दुनका,
हो जायेंगे खेत वीरान ।
उपजाऊ जो लगती धरती,
बन जायेगी रेगिस्तान ।
हरी-भरी जहाँ होती धरती,
वहीं आते बादल उपकारी ।
खूब गरजते, खूब चमकते,
और करते वर्षा भारी ।
हरा-भरा रखो इस जग को,
वृक्ष तुम खूब लगाओ ।
पानी है अनमोल रत्न,
तुम एक-एक बूँद बचाओ ।
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E.Mail: sundershyam60@gmail.com

चिड़िया


श्याम सुन्दर अग्रवाल

सुबह-सवेरे आती चिड़िया,
आकर मुझे जगाती चिड़िया ।
ऊपर बैठ मुंडेर पर,
चीं-चीं, चूँ-चूँ गाती चिड़िया ।
जाना है,नहीं स्कूल उसे
न ही दफ्तर जाती चिड़िया ।
फिर भी सदा समय से आती,
आलस नहीं दिखाती चिड़िया ।
थोड़ा सा चुग्गा लेकर भी,
दिन भर पंख फैलाती चिड़िया ।
इससे सेहत ठीक है रखती ,
नहीं दवाई खाती चिड़िया ।
छोटी-सी है फिर भी बच्चो,
बातें कई सिखाती चिड़िया ।
रखो सदा ध्यान समय का,
सबको पाठ पढ़ाती चिड़िया ।
-0-

E.Mail: sundershyam60@gmail.com

चिड़िया और बच्चा


श्याम सुन्दर अग्रवाल


फर-फर करती आई चिड़िया,
चोंच में तिनका लाई चिड़िया।
जगह सुरक्षित उस को रख गई,
नीड़ बनाने में वह लग गई ।
एक-एक तिनका खूब सजाया,
उसने सुंदर नीड़ बनाया ।
बिस्तर जैसे नर्म गदेला,
उसमें अंडा दिया अकेला ।
सेया अंडा तो निकला बच्चा,
बड़ा ही प्यारा, बड़ा ही सच्चा।
चिड़िया चोंच में दाना लाती,
डाल चोंच में उसे खिलाती ।
रोज रात को लोरी गाती,
बड़े प्यार से उसे सुलाती ।
बच्चे से बतियाती चिड़िया,
सब कुछ उसे सिखाती चिड़िया ।
उड़ना सीख वह बड़ा हो गया,
दूर गगन में कहीं खो गया ।
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संपर्क: बी-I/575, गली नं. 5, प्रताप सिंह नगर,
कोट कपूरा(पंजाब)-151204

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