मेरा आँगन

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Monday, March 16, 2020

154-सवेरा


डॉ.अर्पिता अग्रवाल
1.सवेरा

सूरज जागा रथ को हाँका,
चंदा मामा सोने भागा,
मुर्गों ने फिर बाँग लगाई,
बस्ती ने भी ली अँगड़ाई
झोंका तभी हवा का आया,
चिड़ियों ने मिल गाना गाया,
भोर उजाला लेकर आई
जागो, उठकर दौड़ो भाई।
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2 .सूरज की सवारी

सूर्य की सवारी आई,
सतरंगी उजास है लाई
हरा रंग पौधों से खेला,
नील रंग बिखरा अलबेला
रंग-बिरंगा बाग़ सजाओ,
खिलो-खिलाओ हँसो हँसाओ।
खुशबू की मटकी भर लाओ
सारी दुनिया को महकाओ ।
-0-

11 comments:

सविता अग्रवाल 'सवि' said...

डॉ अर्पिता जी 'सवेरा' और 'सूरज की सवारी' दोनों ही कवितायें बहुत सुन्दर रचना हैं बधाई स्वीकारें |

Ramesh Kumar Soni said...

सुंदर बाल कविताएँ , खुशबू की मटकी - वाह ।
बधाई ।
रमेश कुमार सोनी , बसना

Dr. Purva Sharma said...

दोनों कविता बहुत ही प्यारी
अर्पिता जी हार्दिक शुभकामनाएँ

प्रीति अग्रवाल said...

मनभावन रचना के लिए बधाई अर्पिता जी!

सदा said...

बहुत ही सुंदर बाल कविताएं ... अर्पिता जी को बहुत बहुत बधाई 💐💐

Sudershan Ratnakar said...

दोनों बाल कविताएँ मनमोहक बहुत सुंदर हैं। बधाई अर्पिता जी।

Anonymous said...

चंदा मामा सोने भागा,
मुर्गों ने फिर बाँग लगाई,
बस्ती ने भी ली अँगड़ाई
bahut khoob bachchon ke liye pyari kavitayen
badhayi
rachana

Krishna said...

बहुत प्यारी बाल रचनाएँ...बधाई अर्पिता जी।

Vibha Rashmi said...

बहुत प्यारी बाल कविताएं । बधाई डॉ अर्पिता ।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

दोनों कविताएँ बहुत प्यारी हैं. सुन्दर लेखन के लिए बधाई अर्पिता जी.

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

दोनों बाल-कविताएँ बहुत ही प्यारी!
हार्दिक बधाई अर्पिता जी!

~सादर
अनिता ललित