मेरा आँगन

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Tuesday, April 6, 2021

162- कपास का फूल

 कपास का फूल 

चक्रधर शुक्ल 

 

धुनिया  मुझको  धुनता  है


मुझे
  जुलाहा  बुनता   है 

 

सज -धज के  जब आता हूँ,

सब पर  मैं  छा  जाता  हूँ 

 

जाड़ा   दूर  भगाता  हूँ    ,

सबके  मन  को भाता हूँ

 


मैं
  बाती  बन  जाता  हूँ   ,

थाली  में   सज जाता  हूँ

 

सबके  मैं   अनुकूल   हूँ  ,

मैं - कपास का  फूल  हूँ 

 

15 comments:

Pushpa mehra said...

बहुत ही सुन्दर सरस कविता है

पुष्पा मेहरा

प्रीति अग्रवाल said...

बहुत बढ़िया रचना !आपको बधाई!

Anita Manda said...

सुंदर

Vibha Rashmi said...

बहुत सरस बाल कविता ।बधाई ।

शिवजी श्रीवास्तव said...

बहुत सहज,सरस बाल कविता।हार्दिक बधाई।

Dr.Mahima Shrivastava said...

सुंदर भी ज्ञानवर्धक भी।

Sudershan Ratnakar said...

बहुत सुंदर बाल कविता। बधाई आपको।

Dr. Purva Sharma said...

सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ

प्रियंका गुप्ता said...

बहुत मनोहारी कविता है, पढ़ कर आनंद आया | बहुत बधाई |

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बहुत प्यारी कविता. बधाई चक्रधर शुक्ल जी.

Krishna said...

बहुत सुंदर सरस कविता--बहुत बधाई शुक्ल जी।

dr.surangma yadav said...

सुंदर कविता।

सहज साहित्य said...

कनीकी कारण से श्री चक्रधर शुक्ल जी आपसे सम्पर्क नहीं कर सके। आपने मुझे फोन करके सभी साथियों का आभार प्रकट किया है

सविता अग्रवाल 'सवि' said...

सुंदर मनभावन कविता है हार्दिक बधाई।

Jyotsana pradeep said...


बहुत प्यारी लगी बाल कविता, हार्दिक बधाई आपको ।