चूहा सात पूँछों वाला (कहानी –संग्रह)
लेखक : गिजुभाई बधेका
अनुवाद , रूपान्तरण और चित्रांकन: आबिद सुरती
मूल्य:35 रुपये ,पृष्ठ :40 (आवरण पृष्ठ सहित)
प्रकाशक : नेशनल बुक ट्र्स्ट इण्डिया ,नेहरू भवन, 5 इंस्टीट्यूशनल एरिया वसन्तकुंज फेज़-2 ,नई दिल्ली-110070
गिजुभाई जी ने बरसों पहले कहानी के बारे में शिक्षकों से कहा था –“आप इन्हें रसीले ढंग से कहिए ,कहानी सुनाने के लहज़े में कहिए ।कहानी भी ऐसी चुनें ,जो बच्चों की उम्र से मेल खाती हो । भैया मेरे ,एक काम आप कभी न करना ।ये कहानियाँ आप बच्चों को रटाना नहीं।बल्कि ,पहले आप खुद अनुभव करें कि ये कहानियाँ जादू की छड़ी–सी हैं।…।पण्डित बनकर कभी कहानी नहीं सुनाना।कील की तरह बोध ठोंकने की कोशिश नहीं करना । कभी थोपना भी नहीं।”
इन पंक्तियों में कहानी सुनाने में जो उद्देश्य निहित है, वह स्पष्ट है-
1-कहानी पढ़ाने की चीज़ नहीं-कहने की चीज़ है।
2-कहानी कहने का ढंग रसीला होना चाहिए ।
3-कहानी आयु-वर्ग के अनुकूल हो ।
4- कहानी रटवाई न जाए ।
5- कहानी सुनाने में सहजता हो , पाण्डित्य प्रकट न हो ।
6- बोध कील की तरह न ठोंकना न थोपना । बोधगम्यता सहज और स्वाभाविक हो ।
बच्चों को भाषा सिखाने में कहानियों की भूमिका बहुत गहरी है । इस संग्रह में ये आठ कहानियाँ हैं ,जो अपने आप में रोचकता लिये हुए हैं –चूहा सात पूँछोंवाला,जो न बोले सो निहाल ,सौ के साठ ,चिरौटा चार सौ बीस ,किस्सा एक दाने का ,जोगी या भोगी ,फूफू बाबा ,करते हो सो कीजिए ।प्रत्येक कहानी का तेवर और स्वर अलग-अलग है ।
इन कहानियों का हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आबिद सुरती जी ने किया है । अनुवाद अत्यन्त सरल, सहज एवं ग्राह्य है । चित्रों के साथ लोककथाओं का रंग इन्हें और रोचक बना देता है । बच्चों तक अगर ये कहानियाँ पहुँचती हैं तो नि:सन्देह भाषा के प्रति और अधिक रुचि जाग्रत होगी ।
-रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’
लेखक : गिजुभाई बधेका
अनुवाद , रूपान्तरण और चित्रांकन: आबिद सुरती
मूल्य:35 रुपये ,पृष्ठ :40 (आवरण पृष्ठ सहित)
प्रकाशक : नेशनल बुक ट्र्स्ट इण्डिया ,नेहरू भवन, 5 इंस्टीट्यूशनल एरिया वसन्तकुंज फेज़-2 ,नई दिल्ली-110070
गिजुभाई जी ने बरसों पहले कहानी के बारे में शिक्षकों से कहा था –“आप इन्हें रसीले ढंग से कहिए ,कहानी सुनाने के लहज़े में कहिए ।कहानी भी ऐसी चुनें ,जो बच्चों की उम्र से मेल खाती हो । भैया मेरे ,एक काम आप कभी न करना ।ये कहानियाँ आप बच्चों को रटाना नहीं।बल्कि ,पहले आप खुद अनुभव करें कि ये कहानियाँ जादू की छड़ी–सी हैं।…।पण्डित बनकर कभी कहानी नहीं सुनाना।कील की तरह बोध ठोंकने की कोशिश नहीं करना । कभी थोपना भी नहीं।”
इन पंक्तियों में कहानी सुनाने में जो उद्देश्य निहित है, वह स्पष्ट है-
1-कहानी पढ़ाने की चीज़ नहीं-कहने की चीज़ है।
2-कहानी कहने का ढंग रसीला होना चाहिए ।
3-कहानी आयु-वर्ग के अनुकूल हो ।
4- कहानी रटवाई न जाए ।
5- कहानी सुनाने में सहजता हो , पाण्डित्य प्रकट न हो ।
6- बोध कील की तरह न ठोंकना न थोपना । बोधगम्यता सहज और स्वाभाविक हो ।
बच्चों को भाषा सिखाने में कहानियों की भूमिका बहुत गहरी है । इस संग्रह में ये आठ कहानियाँ हैं ,जो अपने आप में रोचकता लिये हुए हैं –चूहा सात पूँछोंवाला,जो न बोले सो निहाल ,सौ के साठ ,चिरौटा चार सौ बीस ,किस्सा एक दाने का ,जोगी या भोगी ,फूफू बाबा ,करते हो सो कीजिए ।प्रत्येक कहानी का तेवर और स्वर अलग-अलग है ।
इन कहानियों का हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आबिद सुरती जी ने किया है । अनुवाद अत्यन्त सरल, सहज एवं ग्राह्य है । चित्रों के साथ लोककथाओं का रंग इन्हें और रोचक बना देता है । बच्चों तक अगर ये कहानियाँ पहुँचती हैं तो नि:सन्देह भाषा के प्रति और अधिक रुचि जाग्रत होगी ।
-रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’
1 comment:
आपने जानकारी तो बहुत अच्छी
किताब की दे रखी है,
पर यह जानकारी अधिक लोगों तक
पहुँच नहीं पा रही है!
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