Saturday, November 22, 2008
खुशी : पंकज चतुर्वेदी
चित्रांकन :अजीत नारायण
प्रकाशक :Pratham Books 930,4rth Cross Ist Main, MICO Layout,Stage 2,Bangalore 560076
बच्चों के लिए लिखना सबसे कठिन कार्य है ।बच्चे जितने छोटे उनके भाषा-ज्ञान ,मनोविज्ञान के अनुरूप लेखन उतना ही चुनौती-भरा है।पंकज चतुर्वेदी जी ने मुनिया और राजू के पतंग उड़ाने के प्रसंग को रोचक , सरल और सहज भाषा में पिरोकर प्रस्तुत किया है । उड़ाते समय पतंग पेड़ में फँस जाती है और झटका देने पर टूट जाती है। बाँस से निकालने के प्रयास में पतंग तो निकलती नहीं ,ऐसे में कुछ आम टूट्कर गिर जाते हैं ।राजू और मुनिया आम खाकर खुश हो जाते हैं ।
आगे चिड़िया का बच्चा पतंग की डोर को मुँह से पकड़कर उड़ने का मज़ा लेता है ।पतंग उसकी चोंच से छूटती है तो खरगोश को मिल जाती है ;लेकिन उठाते समय उसके तीखे नाखूनों से फट जाती है ।
खरगोश रोने लगता है तो उसकी माँ फटी पतंग की झण्डियाँ बनाकर दरवाज़े को सजा देती है ।
इस प्रकार एक पतंग सबको खुशी प्रदान करती है ।शब्दाडम्बर से दूर यह किताब शिशु वर्ग को रिझाने में सफल है ।इस छोटी –सी रोचक कथा को अजीत नारायण ने अपने चित्रांकन से सजाकर और भी रोचक बना दिया है ।
समीक्षा: रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
चंदा और खरगोश :पंकज चतुर्वेदी
चित्रांकन :अजीत नारायण
चन्दा और खरगोश एक छोटी –सी कथा है-खरगोश के धरती पर आने की ।खरगोश ठहरा बच्चा । चाँद पर रहता है उसके साथ-साथ । ।दोनों में गहरी दोस्ती है । धरती, हरे-भरे पेड़ ,नीला समुद्र हमेशा उसे लुभाते रहते हैं; इसीलिए वह हमेशा नीचे झाँकता रहता है । चाँद उसे ऐसा करने से मना करता है ;पर वह मानता नहीं । चाँद पर तेज आँधी चलती है ।झाँकते समय एक दिन वह गिर पड़ता है और कई साल तक हवा में तैरते हुए धरती पर उतर आता है। चाँद पर रहते हुए तो वह हाथी जितना बड़ा था ;लेकिन धरती पर आते-आते बहुत छोटा हो जाता है ।बाल भी टूट्कर छोटे हो जाते हैं ।
चाँद को खरगोश आज तक नहीं भूल पाया है ।उसकी लाल-लाल आँखों इस बात की गवाह हैं ।
अजीत नारायण के चित्रों का वैविध्य इस कहानी में और भी चार चाँद लगा देते हैं ।
>>>>>>>
समीक्षा : रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Tuesday, November 18, 2008
कमज़ोर दृष्टिवाले बच्चे
( प्राथमिक विद्यालयोंके अध्यापकों के लिए एक संदर्शिका)
लेखिका : अनीता जुल्का
मूल्य :26 रुपए ,पृष्ठ :56, प्रकाशक :राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् ,श्री अरविन्द मार्ग नई दिल्ली-110016
कक्षा का रूप प्राय: सामान्य को ध्यान में रखकर निर्धारित किया गया है ।किसी भी प्रकार की कमज़ोरी वाले बच्चे के लिए उसमें अलग से कोई स्थान नहीं है।शिक्षण को छात्र केन्द्रित करने के लिए हर छात्र की विशेषता और कमी का ध्यान रखना ज़रूरी है ।इस कार्य को सजग शिक्षक ही कर सकता है ।यह पुस्तक ऐसे जागरूक शिक्षकों को दिशानिर्देश देने की सजग पहल करती है । यह पुतक छह अध्यायों में बाँटी गई है :-1-परिचय ,2-कमज़ोर दृष्टि वाले बच्चों के लिए कक्षा का व्यवस्थापन,3-पढ़ना और लिखना,4-अनुदेश का स्तर ,5-मनोसामाजिक समस्या ,6-विचारणीय विषय के अन्तर्गत विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है । प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को यह पुस्तक ज़रूर पढ़नी चाहिए ।
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
लौट के बुद्धू घर को आए
पृष्ठ : 32 , मूल्य :25 रुपए।
प्रकाशक: चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट नेहरू हाउस ,
4 बहादुरशाह ज़फ़रमार्गनई दिल्ली-110002
हास परिहास के क्षेत्र में बच्चों के लिए बहुत कम लिखा गया है ; वह भी कविता में। डॉ सरोजिनी प्रीतम की यह पुस्तक इस कमी को पूरा करती है।यह एक नितान्त बुद्धू कहे जाने वाले बालक की अक़्लमन्दी तक पहुँचने की यात्रा है ।कवयित्री ने ने विभिन्न कविताओं को एक सूत्र में रोचक घटनाओं के एक सूत्र में पिरोया है ।इस प्रकार 22 कविताएँ मिलकर कथा को रोचकता प्रदान करती हैं।
इनमेंसे कुछ रोचक कविताएँ हैं:-
1. मैंने तो बस खाया चाँटा
2. कौन है बन्दर
3. बुद्धू का पिंजरा
4. बिल्ली ने जब रस्ता काटा
5. लौट के बुद्धू घर को आए
6. गंजे सिर पर ओले बरसे
7. असली मास्टर नकली मास्टर
8. फिर बुद्धू ने बस्ता फेंका
कविताओं के साथ चित्रों का संयोजन उन्हें और भी प्रभावशाली बना देता है ।यह पुस्तक छोटे बच्चों को ज़रूर पसन्द आएगी ।
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Saturday, November 15, 2008
डॉ भावना कुँअर की बाल-कविताएँ
रंग बिरंगे-नीले पीले,
हैं गुब्बारे खूब सजीले।
इन्द्रधनुष के रंगों जैसे,
झटपट दे दो अब तुम पैसे।
जो भी चाहो ले लो तुम,
जी भर के फिर खेलो तुम।
Tuesday, November 11, 2008
देश हमारा है
देश हमारा है
-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
आँखों का तारा है ,प्राणों से प्यारा है ।
सब देशों से अच्छा , ये देश हमारा है ॥
इसका तन कुन्दन है ,
पावन मन चन्दन है।
साँसों में फूलों की
डूबी हर धड़कन है ॥
षड् ॠतुओं ने आकर फिर रूप सँवारा है ।
नयनों से रहा बरस।
केशों से लिपटी है
अमावस –निशा बरबस ।
अगणित नदियाँ इसकी ममता की धारा हैं।
मिट्टी में छुपी सुगन्ध,
मुट्ठी में पौरुष बन्द ।
नित मुकुट हिमालय से
झरता रहा मकरन्द ।
सागर ने हाथों से पदरज को पखारा है।
भाषा व वेश अनेक ,
प्राण हैं फिर भी एक ।
विश्व-पट पर गौरव का ,
लिखा है हमने लेख ।
गुण सदियों से इसके गाता जग सारा है ।
Tuesday, November 4, 2008
चिटकू : सुरेखा पाणंदीकर
चित्रांकन :मृणाल मित्र ;अनुवाद : मनमोहन पुरी
पृष्ठ :24 ;मूल्य :20 रुपए
प्रकाशक :चिल्ड्रन्स बुक ट्र्स्ट नेहरू हाउस ,4 बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग
नई दिल्ली-110002
‘चिटकू”बालकथा का मुख्यपात्र चिटकू चूहा है , जो बहुत छोटा और चंचल है।अपनी चंचलता के कारण सूँ-सूँ करता पनीर की गन्ध सूँघता इधर –उधर दौड़ता है और मुन्नू कि प्लेट तक पहुँच जाता है। भागने पर मुन्नू की हॉकी स्टिक की चोट से उसकी दुम का एक सिरा अलग हो जाता है । चिटकू की माँ उसे अकेले बाहर जाने से मना करती है। माँ की बात को वह बहुत जल्दी भूल जाता है और लड्डू खाने के लोभ पर नियंत्रण नहीं कर पाता है; जिससे वह लड्डुओं के ढेर में दब जाता है । चुहिया माँ उसे किसी तरह बाहर निकालती है । एक बार फिर चिटकू बिल्ली के पंजे में फँस जाता है और भाग्य से किसी प्रकार बच जाता है । कहानी में रोचकता शुरू से आखिर तक बनी हुई है । छोटे बच्चों के मानसिक स्तर के अनुसार लिखी गई कहानियाँ बहुत कम हैं ।यह पुस्तक इस कमी की पूर्ति करने में सहायक है ।
>>>>>>>>>
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’’