ज्योत्स्ना प्रदीप
1-इन्द्रधनुष
इन्द्रधनुष कितना प्यारा
रंगों की हो जैसे धारा
सात रंग का रथ जैसे
रंग भरा इक पथ जैसे ।
देखो-देखो बिन पैसे
रंगों की प्यारी धारा ।।
मन को खूब लुभाता है
इसको कौन चलाता है ।
दिख ना कोई पाता है
मन अपना इस पर वारा ।।
सब बालक हैं कितने खुश
चलो-चलो जी इन्द्रधनुष ।
प्रीत, मीत, आरव, आयुष
नभ चमका देखो सारा ।।
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2-प्यारा गाँव
कोयल गाये कू-कू कू,
तोते लो बतियाते हैं ।
टॉमी करता भौं-भौं भौं
पक्षी सब चहचहाते हैं ।
बंदर करता खो-खो खो
सारस करता क्रे-क्रे क्रे ।
मेंढक करता टर्र टर्र
बकरी करती में-में में ।
पूसी की म्याऊँ म्याऊँ,
कौवा करता काँव-काँव ।
दादी कहती अच्छा गाँव
सबसे अच्छे होते गाँव ।
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3-प्यारी चिड़िया
बालकनी में आती चिड़िया
मीठा गाना गाती चिड़िया ।
तिनका-तिनका लाती चिड़िया
अपना नीड़ बनाती चिड़िया ।
इक-इक दाना लाती चिड़िया
बच्चों को खिलाती चिड़िया ।
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4-बाघ
सभी जानवर लगते प्यारे
चिड़िया घर में बाघ दहाड़े ।
मैडम जी समझाती हैं
बाघ की कम अब जाति है ।
ये चौकन्ना, फुर्तीला है
रंग कत्थई, पीला है ।
जानवरों में न्यारा है
राष्ट्रीय पशु हमारा है ।
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5-छोटा मेंढक
मेंढक कितना छोटा है
पेट ज़रा पर मोटा है ।
करता है पेटू टर्र टर्र
भर जाता है ज़ब पोखर ।
पोखर में कागज़ की नाव
मेंढक का देखो न चाव ।
गोल-गोल आँखें मटकाता
देखो मेंढक नाव चलाता ।
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6-इक गिलहरी
एक गिलहरी आती है
बालकनी में आती है ।
टहनी से लो उतर गई
दाँतों से कुछ कुतर गई ।
आँखे भी मटकाती है
एक गिलहरी आती है ।
छूना चाहें जब उसको
भाग भाग वह जाती है ।
दाने कितने डालो पर
हाथ नहीं वह आती है ।
कुछ बीजों को खाती है
कुछ मिट्टी में छुपाती है ।
अनजाने भोली भाली
कितने पेड़ उगाती है ।
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9 comments:
बहुत बढ़िया बाल गीत हैं ज्योत्स्ना जी बधाई हो |
बहुत ही प्यारे से बाल गीत .... बच्चों को आनंद आ जाएगा.... हार्दिक अभिनंदन ज्योत्स्ना जी
बेहद प्यारे बालगीत ज्योत्स्ना जी। अभिनन्दन।
सुंदर और सरल बालगीत,बच्चों को सहज ही कण्ठस्थ हो जाएंगे।बधाई ज्योत्स्ना जी।
बहुत सुंदर रचनाओं के लिए ज्योत्स्ना जी को हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर बालगीत। ज्योत्सना जी बधाई आपको ।
आदरणीय भैया जी मेरी बाल रचनाओं को पतंग ब्लॉग पर स्थान देने के लिए आपका तहे दिल से आभार !
सविता जी,पूर्वा जी,भावना जी,आद.शिवजी, कविता जी, सुरंगमा जी आप सबकी भी हृदय से आभारी हूँ !!
बहुत सुंदर ,मनमोहक बालगीत। बधाई ज्योत्स्ना जी।
ज्योत्स्ना प्रदीप जी की बाल कविताएँ पढ़कर बहुत आनंद आया । बालमन को ज़रूर भाएँगी । हार्दिक बधाई ।
विभा रश्मि
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