दादी अम्मा से सुनी कहानी
सत्या शर्मा ‘कीर्ति’
[ 14 वर्ष की अवस्था में लिखी कविता ]
बच्चों आज मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुनाने जा रही हूँ
जिसे कभी मेरी प्यारी दादी अम्मा ने
सुनाया था ।
एक रात मैं सोई थी , लगा कोई बच्ची रोई थी ।
मैं उठी पर डर रही थी , क्योंकि घर में कोई बच्ची नहीं थी ।
रात की गहरी खामोशी सी थी , और मैं अकेली अनाड़ी सी थी ।
घर और आबादी में थी दूरी , ये भी थी एक मेरी मजबूरी ।
पर मैं खुद में साहस भर के,हाथों में फर्सा लेकरके ।
अपने बालों को समेट कर , चल दी ईश्वर को याद कर ।
दादी माँ की बातें सुनकर ,काँटा हो गई मैं सूख कर ।
दादी से मैं यूँ लिपट गई , जैसे सारी दुनिया सिमट गई।
दादी बोली- गुड़िया रानी, सुनो अब आगे की कहानी ....
दादी जो बोली आगे ,सुन कर सारे हिम्मत भागे ।
हाथों में फिर फर्सा लेकर ,सारे जग की हिम्मत भरकर ।
लगी ढूँढने आवाज को , खोजने लगी उस राज को ।
एक रात मैं सोई थी , लगा कोई बच्ची रोई थी ।
मैं उठी पर डर रही थी , क्योंकि घर में कोई बच्ची नहीं थी ।
रात की गहरी खामोशी सी थी , और मैं अकेली अनाड़ी सी थी ।
घर और आबादी में थी दूरी , ये भी थी एक मेरी मजबूरी ।
पर मैं खुद में साहस भर के,हाथों में फर्सा लेकरके ।
अपने बालों को समेट कर , चल दी ईश्वर को याद कर ।
दादी माँ की बातें सुनकर ,काँटा हो गई मैं सूख कर ।
दादी से मैं यूँ लिपट गई , जैसे सारी दुनिया सिमट गई।
दादी बोली- गुड़िया रानी, सुनो अब आगे की कहानी ....
दादी जो बोली आगे ,सुन कर सारे हिम्मत भागे ।
हाथों में फिर फर्सा लेकर ,सारे जग की हिम्मत भरकर ।
लगी ढूँढने आवाज को , खोजने लगी उस राज को ।
छत भी बड़ी थी, घर भी बड़ा था ।
कोना खिड़की सब ही बड़ा था ।
अकेले मैंने सब जगह खोजा , मेरे सिवा न था कोई दूजा ।
आखिर क्या बात है , इसमें क्या राज है ।
जरूर कोई भूत होगा, चाहे कोई प्रेत होगा ।
हो सकता है भगवान हो ,
कोना खिड़की सब ही बड़ा था ।
अकेले मैंने सब जगह खोजा , मेरे सिवा न था कोई दूजा ।
आखिर क्या बात है , इसमें क्या राज है ।
जरूर कोई भूत होगा, चाहे कोई प्रेत होगा ।
हो सकता है भगवान हो ,
मेरे जीवन का अरमान हो ।
फिर मुझे कुछ याद आया ,
फिर मुझे कुछ याद आया ,
खोलना भूल गई थी पीछे का दरवाजा ।
फिर हौले से जो दरवाजा खोली,
लगा चारों है ओर कोयल बोली।
वाह! क्या नजारा था ,
फिर हौले से जो दरवाजा खोली,
लगा चारों है ओर कोयल बोली।
वाह! क्या नजारा था ,
जैसे सब
हमारा था ।
चारों ओर हरियाली थी ,
चारों ओर हरियाली थी ,
आकाश में कुछ लाली थी ।
सुगंधित हवा चल रही थी,
सुगंधित हवा चल रही थी,
फूलों की
सुंदरता मन मोह रही थी ।
झरने सैकड़ों बह रहे थे
झरने सैकड़ों बह रहे थे
पंछी कलरव कर रहे थे ।
इन सबों के बीच में ,
इन सबों के बीच में ,
फूलों की
प्यारी सेज में ।
जैसे स्वर्ग की अप्सरा हो ,
जैसे स्वर्ग की अप्सरा हो ,
या परियों
की शहजादी हो ।
देखने में तो बड़ी सुंदर थी ,
देखने में तो बड़ी सुंदर थी ,
पर बेचारी रो रही थी ।
मैंने ख़ुशी और ममता से भरकर
चूम लिया उसे गोद में लेकर ।
फिर जाने क्या इत्तिफाक हुआ,
मैंने ख़ुशी और ममता से भरकर
चूम लिया उसे गोद में लेकर ।
फिर जाने क्या इत्तिफाक हुआ,
जैसे सब धुँधला सा गया ।
मुझे न फिर कुछ होश रहा ,
मुझे न फिर कुछ होश रहा ,
जग का भी कुछ न ध्यान रहा ।
बाद में जब होश आया ,
बाद में जब होश आया ,
वहाँ तो वीराना सा था छाया।
पर! गोद में एक हसीना थी,
पर! गोद में एक हसीना थी,
जो बहुत ही प्यारी थी ।
जानती हो वो कौन है , मैंने पूछा कौन है ।
मेरे पास जो सोई है , बातों में मेरे खोई है ।
वही है देखो बड़ी सयानी , मेरी प्यारी गुड़िया रानी ।
दादी माँ की बातें सुनकर , कुप्पा हो गई मैं फूलकर।
दादी को भी भूल गई, जैसे मुझे यहाँ आकर कोई भूल हुई ।
फिर दादी कुछ हामी भरकर, बोली मुझसे कुछ हँसकर ।
मैंने ये कहानी तब सुनी थी , जब तुमसे भी छोटी थी ।।
-0-
जानती हो वो कौन है , मैंने पूछा कौन है ।
मेरे पास जो सोई है , बातों में मेरे खोई है ।
वही है देखो बड़ी सयानी , मेरी प्यारी गुड़िया रानी ।
दादी माँ की बातें सुनकर , कुप्पा हो गई मैं फूलकर।
दादी को भी भूल गई, जैसे मुझे यहाँ आकर कोई भूल हुई ।
फिर दादी कुछ हामी भरकर, बोली मुझसे कुछ हँसकर ।
मैंने ये कहानी तब सुनी थी , जब तुमसे भी छोटी थी ।।
-0-
13 comments:
बहुत सुंदर, हार्दिक बधाई ।
बड़ी सलोनी सी ये काव्य कथा...| मेरी ढेरों बधाई...|
बहुत रूमानी सी कथा ।बधाई ।
बच्चों को बहलाती सुंदर रचना। बधाई
बहुत बहुत सादर आभार भैया जी मेरी कविता को स्थान देने के लिए ।
हार्दिक धन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद कविता जी
बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद कविता जी
बहुत आभार आपका प्रियंका जी
बहुत बहुत आभरी हूँ विभा जी
सादर आभार आदरणीय सर
सादर आभार आदरणीय सर
बहुत सुंदर मनभावन रचना, हार्दिक बधाई सत्या कीर्ति जी
बहुत प्यारी रचना सत्या जी ...आपको हार्दिक बधाई !!
Post a Comment