प्रकृति दोशी
फिर से दीवाली आई
संग लेकर खुशियाँ आई।
घर- घर हो
रही सफाई,
फिर से दीवाली आई।
अपने प्यारे घर में भी,
होगी लो आज
पुताई।
फिर से दीवाली आई।
दादी -मम्मी
मिलकर सब
बना रहे हैं मिठाई।
फिर से दीवाली आई।
हम भाई- बहनों
ने मिल
रंगोली है बड़ी सजाई।
फिर से दीवाली आई।
खूब बताशे खाएँगे हम
झोली भरकर मिलेगी लाई।
फिर से दीवाली आई।
घर के सब लोगों ने मिल
फुलझड़ी खूब चलाई।
फिर से दीवाली आई।
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14 comments:
वाह ... बहुत ही प्यारी कविता है । दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें
दिवाली की हकीकत बयाँ करती सुंदर कविता
बधाई
वाह प्रकृति जी दीवाली पर रची सुन्दर कविता .हार्दिक बधाई .
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-10-2015) को "चाँद का तिलिस्म" (चर्चा अंक-2146) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्यारी सी बाल कविता के लिए प्रकृति जी को बधाई !
सुंदर रचना के लिए बधाई प्रकृति जी !
सुन्दर
beautiful...
welcome to my new post: http://raaz-o-niyaaz.blogspot.in/2015/10/blog-post.html
सुंदर कविता। शुभकामनाएँ।
bahut sundar !diwali par batashe si mithi kavita.............prakriti ji bahut bahut- badhai kavita evam dipotsav ki bhi !
sundar abhivaykti dheron shubhkamnayen..
दीपावली का सुन्दर चित्रण...ढेरों शुभकामनाएँ।
बहुत प्यारी कविता ..बहुत-बहुत शुभकामनाएँ !
happy Diwali :)
बहुत प्यारी कविता...ढेरों शुभकामनाएँ...|
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