-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत दिन पहले की बात है-हरियाली और पानी बहुत प्रेम से रहते थे ।बरगद ,पीपल ,आम और नीम की छाया में लेटकर पानी को बहुत सुख मिलता था। इन वृक्षों की हरियाली पानी पीकर और भी गहरी हो गई थी ।
एक दिन हरियाली बोली-“भाई पानी !तुम बहुत आलसी हो । दिन भर लेटे रहते हो। थोड़ी देर के लिए घूम -फिर लिया करो।”
पानी को हरियाली की यह सलाह अच्छी नहीं लगी ।वह नाराज़ होकर बोला-“यदि मैं यहाँ से चला गया, तो तुम नष्ट हो जाओगी।”
हरियाली तुनुक उठी-“जाना चाहते हो, जाओ । किसने रोका है तुमको?”
“ मैं जा रहा हूँ”-कहकर पानी चल दिया, “कुछ ही दिनों में पत्ते सूख जाएँगे ।उसके बाद तना और जड़ भी। तब तुम्हें पता चलेगा।”
पानी रूठकर कहीं दूर चला गया ।
पानी के वहाँ न होने से चारों तरफ़ धूल उड़ने लगी, बरगद ,पीपल ,आम और नीम के पत्ते मुरझाने लगे ।कुछ ही दिनों में सारे पत्ते पीले पड़ गए ।
बूढ़े बरगद ने बीमार और कमज़ोर हरियाली से कहा-“ तुमने पानी के साथ झगड़ा करके अच्छा नहीं किया ।पानी के बिना मेरा सिर चकराने लगा है।”
“गर्मी से हमारा भी जी घबराने लगा है”- आम ,नीम और पीपल बोले ।
“मुझसे भूल हो गई है । मैं पानी से क्षमा माँगना चाहती हूँ ”-हरियाली ने चारों वृक्षों से कहा ।
“ हाँ ,यही ठीक रहेगा”-चारों वृक्ष बोले ।
उधर हरियाली के बिना पानी भी दु:खी रहने लगा था । दिन भर धूल उड़ती और उसकी आँखोंमें भरती रहती ।सूरज तपता , जिससे उसके शरीर में जलन होने लगती। पानी जब हरियाली की बातें याद करता तो गुस्से से भर उठता ।उधर पीले पत्ते सूखकर धरती पर गिर पड़े ।
एक दिन पत्ते तेज़ हवा के झोंके के साथ उड़कर पानी को ढूँढ़ने के लिए निकल पड़े ।दिन भर उड़ते रहने के बाद उन्होंने पानी को ढूँढ़ लिया ।
सूखे पत्तों की दशा देखकर पानी को बहुत पश्चात्ताप हुआ ।पत्तों ने पानी को सभी वृक्षों की दुर्दशा के बारे बारे में विस्तार से बता दिया । सभी वृक्ष प्यास के कारण सूखने लगे थे ।
पानी ने वृक्षों की प्यास बुझाकर हरियाली को बचाने का दृढ़ निश्चय किया ।सूर्य की तेज़ धूप में उसका शरीर झुलसने लगा । चलते-चलते साँस फूलने लगी। सामने रेतीला मैदान था । पानी ने सोचा-रेतीला मैदान मुझे पी जाएगा। बरगद ,पीपल ,आम और नीम तक पहुँचना कठिन हो जाएगा ।
गर्मी के कारण धरती में जगह-जगह दरारें पड़ गई थीं ।पानी धीरे -धीरे बहकर उन दरारों में भर गया ।वह तीव्रता से आगे बढ़ने लगा ।
पानी ज़मीन के भीतर चलने लगा । रास्ते में कई चट्टानों ने उसका मार्ग रोकने की चेष्टा की ।पानी प्रयास करके फिर रास्ता ढूँढ़ लेता । चलते-चलते थकान के कारण वह हाँफने लगा । आगे बढ़ना कठिन हो गया । उसे कुछ जानी-पहचानी खुशबू महसूस हुई ।उसने छुआ- सूखी-सूखी उँगलियाँ-सी भीगने लगी। वह खुशी से उछल पड़ा-अरे! यह तो नीम है!”
वह दुगुने जोश से चलने लगा ।दूर- दूर तक फैली बरगद दादा की जड़ें भीगने लगीं। पानी ने थोड़ी ही देर में चारों वृक्षों की जड़ों को भिगो दिया । सूखी डालियों में नमी भरने लगी ।कुछ ही दिनों में कोंपलें निकल आईं । चारों वृक्ष हरे -भरे हो उठे ।
हरियाली ने पानी को गले से लगा लिया-“भैया !मुझे क्षमा कर दो ।मैं तुम्हें कभी बुरा-भला नहीं कहूँगी।”
“ग़लती मेरी ही थी”-पानी रोने लगा। टप्-टप् आँसू गिर रहे थे-“मैं तुम्हें छोड़कर कभी नहीं जाऊँगा।”
तब से हरियाली और पानी साथ-साथ रह रहे हैं ।
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1 comment:
कित्ती सुन्दर बात बताई..अच्छा लगा.
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'पाखी की दुनिया में' पुरानी पुस्तकें रद्दी में नहीं बेचें, उनकी जरुरत है किसी को....
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