मेरा आँगन

मेरा आँगन

Friday, May 15, 2009

परिचय:श्याम सुन्दर अग्रवाल



जन्म: 8 फरवरी 1950 को कोट कपूरा (पंजाब) में।
शिक्षा: बी.ए.
लेखन: लघुकथा, बालकथा व कविता (पंजाबी एवं हिंदी में)
प्रकाशित कृतियां:
मौलिक
‘नंगे लोकां दा फिक्र‘ व ‘मारूथल दे वासी’ लघुकथा संग्रह पंजाबी में।
अनुवाद
‘डरे होए लोक’, ‘ठंडी रजाई’(सुकेश साहनी), ‘आखरी सच्च’(डा. सतीश दुबे)
व ‘सिर्फ इंसान’(डा. कमल चोपड़ा) लघुकथाओं का हिंदी से पंजाबी में
अनुवाद। इन के अतिरिक्त हिंदी से पंजाबी व पंजाबी से हिंदी में पाँच सौ से
अधिक रचनाओं का अनुवाद।
संपादन :
•पंजाबी में 23 व हिंदी में 2 लघुकथा संकलनों का संपादन।
•नवसाक्षरों के लिए लोक कथाओं के दो संकलनों का संपादन।
•पंजाबी त्रैमासिक ‘मिन्नी’ का 20 वर्षों से संपादन ।

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पंजाब लोक निर्माण से सेवा-निवृत्त
संपर्क: बी-I/575, गली नं. 5, प्रताप सिंह नगर, कोट कपूरा(पंजाब)-151204
दूरभाष: 01635-222517 / 320615 मोबाइल: 09888536437
E.Mail: sundershyam60@gmail.com
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नहीं व्यर्थ बहाओ पानी



श्याम सुन्दर अग्रवाल

सदा हमें समझाए नानी,
नहीं व्यर्थ बहाओ पानी ।
हुआ समाप्त अगर धरा से,
मिट जायेगी ये ज़िंदगानी ।
नहीं उगेगा दाना-दुनका,
हो जायेंगे खेत वीरान ।
उपजाऊ जो लगती धरती,
बन जायेगी रेगिस्तान ।
हरी-भरी जहाँ होती धरती,
वहीं आते बादल उपकारी ।
खूब गरजते, खूब चमकते,
और करते वर्षा भारी ।
हरा-भरा रखो इस जग को,
वृक्ष तुम खूब लगाओ ।
पानी है अनमोल रत्न,
तुम एक-एक बूँद बचाओ ।
-0-

E.Mail: sundershyam60@gmail.com

चिड़िया


श्याम सुन्दर अग्रवाल

सुबह-सवेरे आती चिड़िया,
आकर मुझे जगाती चिड़िया ।
ऊपर बैठ मुंडेर पर,
चीं-चीं, चूँ-चूँ गाती चिड़िया ।
जाना है,नहीं स्कूल उसे
न ही दफ्तर जाती चिड़िया ।
फिर भी सदा समय से आती,
आलस नहीं दिखाती चिड़िया ।
थोड़ा सा चुग्गा लेकर भी,
दिन भर पंख फैलाती चिड़िया ।
इससे सेहत ठीक है रखती ,
नहीं दवाई खाती चिड़िया ।
छोटी-सी है फिर भी बच्चो,
बातें कई सिखाती चिड़िया ।
रखो सदा ध्यान समय का,
सबको पाठ पढ़ाती चिड़िया ।
-0-

E.Mail: sundershyam60@gmail.com

चिड़िया और बच्चा


श्याम सुन्दर अग्रवाल


फर-फर करती आई चिड़िया,
चोंच में तिनका लाई चिड़िया।
जगह सुरक्षित उस को रख गई,
नीड़ बनाने में वह लग गई ।
एक-एक तिनका खूब सजाया,
उसने सुंदर नीड़ बनाया ।
बिस्तर जैसे नर्म गदेला,
उसमें अंडा दिया अकेला ।
सेया अंडा तो निकला बच्चा,
बड़ा ही प्यारा, बड़ा ही सच्चा।
चिड़िया चोंच में दाना लाती,
डाल चोंच में उसे खिलाती ।
रोज रात को लोरी गाती,
बड़े प्यार से उसे सुलाती ।
बच्चे से बतियाती चिड़िया,
सब कुछ उसे सिखाती चिड़िया ।
उड़ना सीख वह बड़ा हो गया,
दूर गगन में कहीं खो गया ।
००००००००००००
संपर्क: बी-I/575, गली नं. 5, प्रताप सिंह नगर,
कोट कपूरा(पंजाब)-151204

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मदन का भाई नन्दू


कमल चोपड़ा

मदन बैलगाड़ी चलाता था। क्योंकि उसके पास नन्दू नाम का एक ही बैल था इसलिए उसने अपनी गाड़ी को थोड़ा छोटा और इस तरीके का बनवा लिया था ताकि उसे खींचने में नन्दू को कोई परेशानी न हो।
उस दिन मदन अपनी बैलगाड़ी से सेठ रामरतन के अनाज के कुछ बोरे सूर्यगढ़ की अनाज मंडी पहुंचाने जा रहा था। आधे रास्ते पहुँचकर उस के बैल नन्दू की तबीयत खराब हो गई। मदन अपने बैल नन्दू को अपने भाई जैसा मानता था। नन्दू को गाड़ी खींचने में बहुत मुश्किल हो रही थी। उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। मदन ने उसे रुकने के लिए कहा लेकिन नन्दू किसी तरह धीरे–धीरे चलने की कोशिश करता रहा।
नन्दू को लड़खड़ाता देख मदन ने गुस्से में उसे रुकने के लिए कहा। नन्दू रुक गया।
गाड़ी से उतरकर मदन ने नन्दू को छू कर देखा – अरे तुझे तो बुखार है? और तू है कि .......? मदन ने उसे गाड़ी से खोला और नजदीक के एक पेड़ के नीचे आराम करने को कहा। नजदीक ही एक गाँव था। मदन गाँव से नन्दू के लिये चारा और बाल्टी में पानी ले आया। नन्दू ने थोड़ा सा पानी पिया। थोड़ा सा चारा खाया फिर छोड़ दिया। मदन ने उसे हाथ से सहलाते हुए उसकी हिम्मत बढ़ाई – अरे, कुछ खायेगा पिएगा नहीं तो ठीक कैसे होगा? इतना बलवान हो के बुजदिलों की तरह हिम्मत छोड़ रहा है? हिम्मत रख भाई......
नन्दू बोलता नहीं था लेकिन वह मदन की सब बात समझता था। मदन भी इशारों–इशारों में नन्दू की हर बात समझ लेता था। नन्दू ने आँखों के इशारे से कहा – मुझे अपनी चिन्ता नहीं। मुझे सेठ रामरतन के माल को जल्द से जल्द मंडी पहुँचाने की चिंता है.....
– कोई बात नहीं! जान है तो जहान है! सेठ क्या कर लेगा? ज्यादा से ज्यादा हमारे भाड़े के पैसे काट लेगा या नहीं देगा। देखा जाएगा। तुझे कुछ हो गया तो? तू चिन्ता न कर मैं अभी तेरी दवा–दारू का कुछ प्रबंध करता हूँ।
थोड़ी देर बाद मदन पास के गाँव से एक वैद्य को बुला कर ले आया। वैद्य ने नन्दू को चैक किया फिर अपने झोले से निकाल कर कुछ जड़ी–बूटियाँ नन्दू को खिलाई और पचास रूपये लेकर चलता बना। रात हो गई थी दोनों पेड़ के नीचे लेट गये।
सुबह तक नन्दू की हालत और खराब हो गई थी। उससे उठकर खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था। वहाँ से गुजरने वाले लोग कुछ पल रुकते। नन्दू को देखते और कहते – इसकी हालत तो बहुत खराब है। इसका तो बचना मुश्किल है।
मदन की चिंता बढ़ती जा रही थी। वहाँ से गुजरने वाले एक अन्य व्यक्ति ने मदन को सलाह दी – देसी इलाज -विलाज को छोड़ो। किसी पढ़े–लिखे जानवरों के डाक्टर को दिखाओ। जानवरों के डाक्टर का पता लगाकर मदन उसे बुलाकर ले आया। डाक्टर ने नन्दू का चैक अप किया और कहा – इसे अंतड़ियों का इंफेक्शन हो गया है। जैसे इंसानों के होता है न? ऐसे ही जानवरों को भी इन्फैक्शन हो जाता है। इसे पाँच दिन तक रोज इंजेक्शन लगाने पड़ेंगे। कुछ दव।इयाँ भी देनी पड़ेंगी। मैं लिख देता हूँ। यहाँ से डेढ़ एक मील दूर अगले गाँव में दवाइयों की दुकान है वहाँ से मिल जायेंगी। सात–आठ सौ रुपये की पड़ेंगीं। सौ रुपया रोज का मेरी फीस होगी। इलाज करवाना है तो सोच लो.....?
– डाक्टर साहब, नन्दू ठीक तो हो जायेगा न?
डाक्टर साहब ने पहले मदन की ओर देखा फिर नन्दू की ओर देखा। दोनों की आँखों में आँसू थे। डाक्टर साहब धीरे से बोले – ठीक क्यों नहीं होगा। कोशिश करना हमारा कर्तव्य है। बाकी तो ऊपर वाले की मर्जी पर है। फिलहाल मैं कुछ दवाइयाँ अपने पास से दे देता हूँ। तुम शाम तक मेरी लिखी दवाइयाँ और इंजेक्शन ले आओ। मैं शाम को फिर आऊँगा। कहकर डाक्टर साहब अपनी फीस लेकर चले गये।
मदन नन्दू के पास गया तो नन्दू सिर हिला हिलाकर पूछने लगा – क्यों मेरे लिए इतना परेशान हो रहे हो? मरने दो मुझे। किराये की बैलगाड़ी लेकर माल मंडी में पहुँचा दो। मुझे यहाँ पड़ा रहने दो। वापसी में देख लेना। मैं ठीक हो गया तो ठीक वर्ना.......।
– मैं तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़कर कैसे जा सकता हूँ? बीमार नहीं होते क्या लोग? इलाज से ठीक नहीं होते क्या?
– इतने पैसे कहाँ से लाओगे? इतने तो हम लोग लेकर भी नहीं चले।
– रास्ते में खाने–नहाने के लिए हम जो बाल्टी–बरतन अपने साथ लेकर चलते हैं न, मैं उन्हें बेच दूँगा। तू चिंता मत कर.....
– मेरे लिए इतना....
– क्या इतना? अपनी बार भूल गया? जब मेरे पिता हमारे सिर पर कुछ कर्ज छोड़कर गुजर गये थे और लोगों ने हमारे खेतों पर कब्जा कर लिया था। तब मैं बीमार चल रहा था। कुछ गुण्डे–लठैत हमारी झुग्गी पर भी कब्जा करने आये थे लेकिन तूने जमकर उनका मुकाबला किया था। उनकी लाठियाँ खाईं लेकिन उन्हें झुग्गी पर कब्जा नहीं करने दिया। मेरी जान बचाई। सींग मार- मारकर खदेड़ दिया था तूने? और आज मैं तुझे यों ही छोड़ दूँ? मुसीबतों में हम दोनों साथ रहे हैं और आगे भी रहेंगे! सुन लिया न!
दोनों की आँखों से आँसू बह रहे थे। तभी वहीं आस–पास मँडरा रहे एक आदमी ने मदन को पास बुलाया और कहा – इस बैल के लिए क्यों इतना परेशान हो रहे हो? आखिर ये है तो जानवर ही?
मदन को गुस्सा आ गया – इंसान भी तो जानवर ही है! बल्कि जानवर तो इंसान को अपना दोस्त समझते हैं और इंसान ...... पशुओं का फायदा उठाता है और बाद में उन्हें मार–काटकर के खा जाता है। इंसान जैसा निर्दय और खुदगर्ज तो कोई जानवर होगा ही नहीं!
वह आदमी हँसते हुए बोला – अरे छोड़ो – छोड़ो ये उपदेश की बातें....! और जरा बु​द्धि से काम लो..... इस बीमार बैल को मुझे एक हजार रुपयों में बेच दो और जो पैसे तुम इसके इलाज में खर्च कर रहे हो वे बच जायेंगे। मेरे दिये एक हजार रुपये और इलाज के बचे पैसों को मिलाकर मैं तुम्हें नया बैल खरीदवा देता हूँ। अपना मजे से जहाँ जाना हो जाओ।
मदन ने हैरानी से पूछा – तुम इस बीमार बैल का क्या करोगे? उस आदमी ने हँसते हुए कहा – इसे किसी कसाई को काटने के लिये दे दूँगा और क्या......।
सुनते ही मदन भड़क उठा। उस आदमी को मारने के लिए डंडा लेने अपनी बैलगाड़ी की ओर भागा। वह आदमी मदन को गुस्से में बेकाबू हुआ देखकर भाग खड़ा हुआ। वर्ना मदन इतने गुस्से में था कि उसे जान से ही मार डालता।
अगले पांच दिन तक मदन वहीं खुले में पड़ा रहा और नन्दू की सेवा करता रहा। कभी उसे दवाई खिलाता कभी चारा खिलाता। कभी उसे नहलाता। डाक्टर आता इंजेक्शन लगाता। छठे दिन नन्दू उठकर खड़ा हो गया। नन्दू के स्वस्थ हो जाने पर मदन की खुशी का ठिकाना नहीं था।
स्वस्थ होते ही नन्दू ने मदन को इशारे से कहा – अब जल्दी से चलो यहाँ से चलकर सेठ राम रतन का माल मंडी में पहुँचा दें।
मदन ने हँसते हुए कहा – सेठ रामरतन तो हमें ढूँढ रहा होगा। वो सोच रहा होगा हम दोनों उसका माल लेकर भाग गये हैं!
ज्यों ही मदन अपनी बैलगाड़ी लेकर मंडी की ओर रवाना होने लगा उसने देखा सामने से गाँव के दो तीन प्रतिष्ठित व्यक्ति चले आ रहे हैं। एक आदमी ने आगे आकर कहा – मैं इस गाँव का प्रधान हूं। मैं तुम्हारे साथ अपनी इकलौती लड़की का रिश्ता करना चाहता हूँ। मुझे तुम्हारे जैसे लड़के की ही तलाश थी। तुम्हारे गाँव अपना आदमी भेजकर मैंने तुम्हारे बारे में सब पता लगा लिया है। तुम मेहनती और ईमानदार आदमी हो। जो आदमी पशुओं से इतना प्यार कर सकता है वह मेरी बेटी को कभी धोखा नहीं देगा। तुम मंडी जा रहे हो जाओ। हम एक माह बाद खुद तुम्हारे गाँव रिश्ता लेकर आएँगे।
दोनों खुशी–खुशी मंडी की ओर चल दिये। मंडी पहुँचे तो सेठ राम रतन जैसे उनके स्वागत में ही खड़ा था। वे तो सोच रहे थे कि सेठ उन्हें देखते ही बिगड़ उठेगा और उन्हें बुरा–भला कहेगा लेकिन सेठ ने हँसते हुए कहा – तुम लोग एक सप्ताह देर से पहुँचे। अच्छा किया। तुम लोग पहले पहुँच जाते तो मेरा माल सस्ते में बिक जाता। इस बीच इधर अनाज के भाव बहुत बढ़ गये हैं। अब मैं अपना माल ऊँचे दामों पर बेचूँगा। मुझे दुगुने का फायदा हो गया है। मैं तुम्हें भी इनाम के रूप में दोगुना किराया दूँगा।
मदन ने नन्दू की ओर देखा। दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था।

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कमल चोपड़ा
1600/114, त्रिनगर,
दिल्ली – 110035.

Wednesday, May 13, 2009

चिन्तन के क्षण

                                      चिन्तन के क्षण

 

प्रसन्न

निराशा भले ही कुछ भी हो़, लेकिन कोई धर्म नहीं है।सदा मुस्कराते हुए प्रसन्न रहकर तुम ईश्वर के समीप पहॅंच सकते हो।क्या खोया , क्या पाया इससे ऊपर उठकर मन को सदा हल्का रखने में एक परम आनन्द है।यह काम किसी भी  प्रार्थ‍ना  से अधिक शक्तिशाली है।

क्षमा

   आत्मप्रशंसा , वैमनस्यभावना  तथा ईर्ष्या का पूर्णतया परित्याग करो।तुम सभी को धरती मॉं की तरह क्षमाशील होना चाहिए।यदि तुममें इस प्रकार की क्षमाशीलता होगी तो संसार तुम्हारे चरणों में झुक जायेगा।क्षमा न करने से जीवन की गति   अवरुद्ध हो जायेगी।

संघर्ष

    पवित्र रहने के लिए संघर्ष करते हुए समाप्त हो जाओ।हजार बार मृत्यु का स्वागत करो।निराश मत होओ।कष्ट के समय में भी धैर्य रखते हुए आशा का पल्ला मत छोड़ो। घबराकर गलत मार्ग पर मत बढ़ो। यदि अमृत प्राप्त नहीं हो सका तो कोई कारण नहीं कि विष ही पी लिया जाये।

पहचान

  प्रशस्त होने का प्रयत्न करो।याद रखो  गति और प्रगति में ही जीवन है।लेकिन जीवन में गति और प्रगति आती हैविनम्रता  , कृतज्ञता और अपने उपकारी के प्रति सच्ची भावना से।अपने कार्य के प्रति निष्ठावान रहते हुए सभी के प्रति उचित सम्मान देना भी सीखो।

संचार

शक्ति और साधन खुद प्राप्त हो जायेंगे। तुम केवल अपने आपको कार्य में रत कर दो और तब तुम्हें ज्ञात होगा कि एक जबरदस्त शक्ति तुम्हारे भीतर आ रही है। दूसरों के प्रति किया गया जरा सा काम भी हमारे भीतर शक्ति का संचार कर देता है। दूसरों के प्रति भलाई के विचार ही हमारी शक्ति के मूल साधन हैं।

                                                                                  

उदारता

          उदारता से बढ़कर कोई गुण नहीं ।नीचतम मनुष्य वह है जो केवल लेने के लिए हाथ बढ़ाता है।वह उच्चतम मनुष्य है जे सदा देता ही रहता है।हाथ देने के लिए ही बनाये गये हैं।भले ही तुम्हारे प्राण निकल रहे हों तो भी अपनी रोटी का अन्तिम टुकड़ा दे दो ,तुरन्त पूर्ण मनुष्य बन जाओगे।एकदम देवता।

प्रयत्न

          असफलताओं के लिए खेद मत करो।वे स्वाभाविक हैं।वे जीवन का सौन्दर्य हैं।इन असफलताओं के बिना जीवन है ही क्या ? यदि जीवन में संघर्ष नहीं है , तो वह जीवन जीने योग्य नहीं। इसलिए एक हजार बार  प्रयत्न करो और यदि एक हजार बार भी असफल रहो तो प्रयत्न और करो। 

उत्पत्ति

          कार्यशीलता एक अच्छा गुण है ; लेकिन उसकी प्राप्ति भी विचारशीलता से होती है।अत: अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों और उच्च आदर्शों से परिपूर्ण करो।रातदिन उन्हें अपने सम्मुख रखो और स्मरण करो।फिर उनमें से अपने आप महान कार्यो की उत्पत्ति होगी।

पक्षपात

          पक्षपात को ही सभी बुराइयों की जड़ समझो।पक्षपात दूसरों के मन में अलगाव पैदा कर देता है। अलगाव पैदा होना अच्छी बात नहीं है।इससे व्यक्ति का विश्वास उठ जाता है और वह मान लेता है कि पक्षपात करने वाला अपने चरित्र से गिर गया है।अत: पक्षपात को अपने से दूर रखो तो आपदाएँ भी दूर रहेंगी।

जाग्रति

          उठो और जागो और उस वक्त तक मत रुको जब तक कि मंजिल नही मिल जाती।तुम्हारी मंजिल तुम्हें ही खोजनी है और तुम्हें ही उस तक पहुँचना है।यदि तुम यह मानकर बैठे हो कि कोई आयेगा और तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हारी मंजिल की तरफ ले जायेगा तो तुम भारी भूल के शिकार हो गये हो।अपनी मंजिल की ओर तुम्हें खुद ही बढ़ना है।

विश्वास

          मैं उस धर्म और भगवान  में विश्वास नहीं रखता जो विधवा के आँसू न पोंछ सके या किसी अनाथ व भूखे तक रोटी का टुकड्रा न ले जा सके।मैं उस धर्म में भी विश्वास नहीं रखता जो किसी को सहारा न दे सके ,किसी डूबते को न बचा सके।धर्म का मूल मंत्र ही यह है कि हम दूसरों के काम आयें।

 

बुद्धिमान

          मृतक वापस नहीं लौटते ।बीती रातें फिर नहीं आतीं ।उतरी हुई लहर फिर नहीं उभरती।मनुष्य फिर से वही शरीर नहीं धारण कर सकता।इसलिए बीती हुई बातों को भूलकर वर्तमान को पूजो।नष्ट और खोई हुई शक्ति अथवा वस्तु का चिन्तन करने की अपेक्षा नये रास्ते पर चलो।जो बुद्धिमान होगा वह इस बात को अवश्य समझेगा।

पुरुषार्थ

                   पुरुषार्थ आलस्य का शत्रु है। आलस्य को हर प्रकार से रोकना चाहिए। पुरुषार्थ करते रहने का अभिप्राय है आलस्य को रोकना सभी बुराइयों को रोकना ;मानसिक व शारीरिक बु्राइयों को रोकना ।और जब तुम ये बुराइयाँ रोकने में सफल हो जाओगे, तो शान्ति और समृ​द्धि स्वयं तुम्हारे पास आ जायेगी।

परिणाम

          प्रत्येक कार्य का परिणाम अच्छाई और बुराई का मिश्रण है।कोई भी अच्छा काम नहीं जिसमें थोडी बहुत बुराई न हो।अग्नि के साथ धुएँ की तरह बुराई भी प्रत्येक कार्य में रहती है।लेकिन हमें अपनेआप को अधिक से अधिक ऐसे कामों में लगाना चाहिये जिनका अच्छा परिणाम अधिक हो और बुरा काम से कम।

विचार

          अपवित्र कल्पना और विचार भी अपवित्र कार्य की तरह बुरे हैं।नियंत्रित इच्छाएँ ही उच्च परिणाम तक पहुँचती हैं।मनुष्य अपवित्र कार्य तभी करता है जब उसके मन में अपवित्र विचार आते हैं।वे अपवित्र विचार उसे बुरे कार्य की ओर घसीट ले जाते हैं।मिर्च खाकर किसका मुँह मीठा हुआ है।

महापाप

          दूसरों की निन्दा करना महापाप है।इससे पूर्णतया बचो।अनेक बातें दिमाग में आती हैं।यदि उन्हें प्रकट करने का  प्रयत्न किया जाये तो राई का पहाड़ बन जाता है।प्रत्येक बात समाप्त हो जाती है यदि तुम चुप हो जाओ व भूल जाओ और क्षमा कर दो।निन्दा की बात पर हमें चुप रहने भूलने और क्षमा करने का गुण अपनाना चाहिए।

सन्तोष

          सुख व्यक्ति के सामने अपने सिर पर दुख का ताज पहनकर आता है।जो सुख का स्वागत करना चाहता है उसे दुख का स्वागत करने के लिए भी सदा तैयार रहना चाहिये।सुख को मात्र सुख मानकर चलने वाला भविष्य में अधिक दुखी भी हो सकता है।अत: ऐसे सुख की कामना करो जो सभी के लिए कल्याणकारी हो।

                                     

साभार: विवेक के आनन्द से

 

प्रस्तुति : चन्द्र देव राम   प्राचार्य  के वि जवाहर नगर(बिहार)