रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मोटू हाथी लाया भरकर
सूँड में अपनी रंग ।
लिए खड़े थे जो पिचकारी
वे सब रह गए दंग ॥
रंग सभी पर बरसा करके
दादा जी मुस्काए ।
किसमें दम जो मेरे ऊपर
आज रंग बरसाए।
भीगे बन्दर, भालू ,चीता
खेली ऐसी होली ।
हाथी के आगे टिक पाई
नहीं एक भी टोली ।।
हुई शाम को दावत जमकर
लाए सभी मिठाई ।
आधी खाई हाथी जी ने
आधे में सब भाई ।।
सूँड में अपनी रंग ।
लिए खड़े थे जो पिचकारी
वे सब रह गए दंग ॥
रंग सभी पर बरसा करके
दादा जी मुस्काए ।
किसमें दम जो मेरे ऊपर
आज रंग बरसाए।
भीगे बन्दर, भालू ,चीता
खेली ऐसी होली ।
हाथी के आगे टिक पाई
नहीं एक भी टोली ।।
हुई शाम को दावत जमकर
लाए सभी मिठाई ।
आधी खाई हाथी जी ने
आधे में सब भाई ।।
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