बाल
कविताएँ : डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
हवा चली है सर-सर-सर
बादल आए मटकी भर
बादल आए मटकी भर
पानी बरसा झर-झर-झर
भीग गए चिड़िया के पर
काँप रही है थर-थर-थर
उसका भी बनवा दो घर
रहे चैन से जी भरकर
देखे आँखें मटका कर ।
2
साइकिल के हैं पहिए दो
तीन सहेलियाँ अब क्या हो
मोनू जी ले आए कार
हैं गाड़ी में पहिए चार ।
बिट्टू का है सुन्दर नाच
देख रहे हैं बच्चे पाँच ।
झूठी बातें कभी मत कह
तभी मिलेंगे लड्डू छह ।
नानी कहें कहानी सात
सुनते बीती पूरी रात ।
बाक़ी रह गया पढ़ना पाठ
उट्ठक-बैठक होंगी आठ।
सारे दिन बस करते शोर
नौ बच्चे पढ़ने के चोर ।
आ गई विद्यालय की बस
उसमें भी हैं खिड़की दस ।
3
गाँव गए थे चुन्नू जी
मिले वहाँ पर मुन्नू जी
दोनों ने मिल किया कमाल
गली, खेत में खूब धमाल
बाग़ों में घूमे दिनभर
बातें करते चटर-पटर
तोड़ रहे थे कच्चे आम
चुन्नू जी गिर पड़े धड़ाम
कान पकड़कर बोले राम !
कभी करूँ न ऐसा काम ।।
4
मूँछें
चाचा जी की प्यारी मूँछें
लगती कितनी न्यारी मूँछें
खूब मरोड़ें दिन भर इनको
ओ हो हो बेचारी मूँछें
ज़रा न झुकतीं सतर नुकीली
भैया बड़ी करारी मूँछें
मैं भी ऐसी मूँछ लगाऊँ
चाचा जी जैसे बन जाऊँ ।
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