डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा
भैया बहुत सताए मुझको
चोटी खींच रुलाए मुझको ।
गुड़िया मेरी छीने भागे
पीछे खूब भगाए मुझको ।
मेरी पुस्तक ,रंग उसके हैं
खेलें कैसे, ढंग उसके हैं
क्या खाना है, क्या पहनाऊँ
नए- नए हुड़दंग उसके हैं ।
फिर भी तुमको क्या बतलाऊँ
प्यार उसी पर आए मुझको ।
मेरा प्यारा न्यारा भैया ,
कभी दूर ना भाए मुझको ।
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