मेरा आँगन

मेरा आँगन

Saturday, November 20, 2010

राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह

राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह एवं बटुकेश्वर दत्त जन्मशती के अवसर पर
      पुस्तकों का लोकार्पण संपन्न
कामरेड बटुकेश्वर दत्त जन्म शताब्दी के अवसर पर दिनांक 19 नवम्वर 2010 लखनऊ माण्टेसरी इन्टर कालेज पुराना किला सदर के प्रांगण में नेशनल  बुक ट्रस्ट इण्डिया, नई दिल्ली एवं ‘शहीद स्मारक स्वतन्त्रता संग्राम शोध केन्द्र’ के सौजन्य से पुस्तक लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह की मुख्य अतिथि शहीद बटुकेश्वर दत्त की पुत्री श्रीमती भारती दत्त बागची थी। विशेष अतिथि प्रो जगमोहन सिंह  (सरदार भगत सिंह के भानजे) थे। नेशनल  बुक ट्रस्ट ने हिन्दी भाषी लोगों के लिए बटुकेश्वर दत्त पर प्रथम पुस्तक प्रकाशित की है। जिसका शीर्षक ‘‘बटुकेश्वर दत्तः भगत सिंह के साथी’’, के लेखक श्री अनिल वर्मा है। इसके अलावा अन्य दो पुस्तकें क्रमशः भारत के संरक्षित वन क्षेत्र लेखक महेन्द्र प्रताप सिंह और संजीव जायसवाल, कृत बाल पुस्तक चंदा गिनती भूल गया’ का भी लोकार्पण किया गया।
विमोचन कार्यक्रम से पूर्व प्रातः विद्यालय के बच्चों ने विद्यालय प्रंkगण में स्वतन्त्रता संग्राम एवं कामरेड बटुकेश्वर दत्त से सम्बन्धित अविस्मरर्णीय साम्रगी एवं दुर्लभ विषयों को पोस्टर के माघ्यम से प्रदर्शित किया। जिसमें विजेता बच्चों को पुरस्कृत भी किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ एडवोकेट श्री उमेश चन्द्रा जी ने की। श्री बैजनाथ सिंह द्वारा अतिथियों के स्वागत के साथ प्रारंभ हुए कार्यक्रम में बटुकेश्वर दत्त पुस्तक के लेखक अनिल वर्मा, जिला एवं सत्र न्यायाधीश, म.प्र. ने बताया कि इस पुस्तक के लिए उन्होंने किस तरह से और कहाँ- कहाँ से सामग्री एकत्र की। श्री महेन्द्र प्रताप सिंह ने अपनी पुस्तक भारत के संरक्षित वन क्षेत्र’ का परिचय देते हुए बताया कि जब तक हिंदी का साहित्य ज्ञान-विज्ञान के विषयों से नहीं जुड़ेगा, उसका विस्तार नहीं हो पाएगा । श्री सिंह ने बताया कि इस पुस्तक को तैयार करने में उन्हें कई राज्यों के कई साथियों का सहयोग मिला। श्री संजीव जायसवाल ने अपनी पुस्तक की जानकारी देते हुए बताया कि एक अच्छा लेखक वही है जोकि बच्चों के लिए लिखे।
पुस्तकों की समीक्षा की शृंखला में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. प्रमोद कुमार ने बटुकेश्वर दत्त पुस्तक को एक सार्थक प्रयास बताते हुए कहा कि भारत के इतिहासकारों ने क्रांतिकारियों का सही आकलन नहीं किया। इतिहास का उद्देश्य होता है कि हम अपने आप को समझें। प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित ने भारत के संरक्षित वन पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि आज की आवश्यकता है कि ज्ञान-विज्ञान विषयों पर हिंदी में पुस्तकें समय की माँग हैं। मुख्य अतिथि भारती बागची ने अपने पिता से जुड़ी कई यादों को साझा करते हुए कहा कि बटुकेश्वर दत्त की जन्मशती के अवसर पर उन पर डाक टिकट, एक स्मारक का निर्माण जरूर होना चाहिए। प्रो. जगमोहन सिंह ने स्पष्ट किया कि बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह सदैव से एक रहे हैं , उनका आकलन अलग-अलग रख कर नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि भगत सिंह जेल में बटुकेश्वर दत्त से बांग्ला सीखा करते थे। अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री उमे’k चंद्राजी ने ऐसे विचारों के प्रचार-प्रसार की जरूरत पर बल दिया ,जिनसे अलगववादी ताकतें कमजोर हों। श्री जयप्रकाश जी ने  आभार व्यक्त किया।
इस आयोजन की महत्त्वपूर्ण घोषणा यह भी रही कि शहीद स्मारक स्वतन्त्रता संग्राम शोध केन्द्र’, लखनऊ के परिसर में बहुत जल्दी नेशनल  बुक ट्रस्ट की पुस्तकों का स्थायी बिक्री केंद्र खुल जाएगा। कार्यक्रम का संचालन नेशनल  बुक ट्रस्ट इण्डिया, नई दिल्ली, के श्री पंकज चतुर्वेदी के द्वारा किया गया जिन्होंने अपनी संस्था के विषय में लोगो को अवगत कराया। कार्यक्रम स्थल पर ट्रस्ट की पुस्तकों की बिक्री बेहद उत्साहजनक रही।

 प्रो. प्रमोद कुमार                           पंकज चतुर्वेदी
मंत्री                                           सहायक संपादक


Friday, November 5, 2010

दीपावली-सन्देश

दीपावली के इस खूबसूरत त्योहार के लिए सुख -समृद्धि और प्रेरणा का सन्देश लेकर  आ रही हैं -तीन संवेदनशील कवयित्रियाँ-डॉ भावना कुँअर , रचना श्रीवास्तव और मंजु मिश्रा , आस्ट्रेलिया ,  और अमेरिका  से । आशा है इनका सन्देश आपको जीवन में नई संकल्प शक्ति से समृद्ध करेगा। प्रस्तुति -रामेश्वर काम्बोज हिमांशु'

1-डॉ भावना कुँअर

रंगोली सजे
दीपों की रोशनी में
अँधेरा मिटे ।

जगमग है
दीपों की कतार से
 हरेक कोना ।

झूम रहे हैं
रंगीन कंदीलों से
घर-आँगन ।

हँसी रोशनी
जीत पर अपनी
अँधेरा रोया ।

करो रोशन
बुझते चिराग़ों को
 इस पर्व में ।
-0-
2-रचना श्रीवास्तव
स्नेह की ,उन्नति की ,ज्ञान की ,वैभव की रौशनी आप को और आप के पूरे परिवार को सदा महकाती रहे -

मस्ज़िद में जलूँ या मंदिर में
झोपड़ी में जलूँ या महल में
भजन में जलूँ या दरगाह पर
चौखट में जलूँ या राह पर
प्रेम गीत गुनगुनाऊँगा
मै दिया हूँ रौशनी फैलाऊँगा ।

-0-
3--मंजु मिश्र
"आँधियों की टक्करों में 
दीप कितने बुझ गए हों
पर भला कब हार माने
हैं, अँधेरों से उजाले  
एक दीपक फिर जला ले।"



-0-

Tuesday, September 21, 2010

ओ मम्मी, ये कैसा युग है !

प्रियंका गुप्ता
[वह कविता मैने तब लिखी थी जब मैं आठवीं में पढ़ती थी ।]
      ओ मम्मी, ये कैसा युग है
      कितने रावण जनम रहे हैं
      राम कहाँ हैं बोलो मम्मी
      लव-कुश यूँ जो बिलख रहे हैं
      पिछ्ली बार तो हम ने मम्मी
      खाक किया था रावण को
      फिर किसने है आग लगाई
      घर घर यूँ  जो दहक रहे हैं
      क्यों मम्मी खामोश हो गई
      कण-कण आज पुकार रहे हैं
      हर बच्चे को राम बनाओ
      फिर चाहे कितने ही रावण
      जन्मे इस धरती पर मम्मी
      हम उनका दस शीश कुचलने को
      लो वानर सेना बना रहे हैं.

-0-

                                                       

Wednesday, September 15, 2010

सामूहिक -रचना -कौशल

 प्रीति,तुषार और आकांक्षा

वर्षा का मनभावन मौसम  
वर्षा का मनभावन मौसम
हर्षित हो जाता है तन-मन ।
वर्षा से हरियाली होती
वर्षा ही खुशहाली बोती ।
जब काले बादल घिर आते
तब वे सबके मन को भाते ।

पकौड़ी माँ ने तभी बनाई
सबने मिलकर जमकर खाई ।
वर्षा है अमृत की धारा
जिसको पीता चातक प्यारा
ये है सबसे प्यारा मौसम
ये है सबसे न्यारा मौसम
मोर नाचकर मन बहलाते
बच्चे कूदें शोर मचाते ।

चुन्नू-मुन्नू भोलू मिलकर
पानी में सब नाव चलाते।
सबके मन में छाई उमंग ,
नभ में लाखों उड़ी पतंग।
झूम-झूमकर नाचे मोर ,
मेंढक टर्र-टर्र करते शोर ।

काले-काले बादल छाते
हवा सुहानी लेकर आते ।
सबके मन को बादल भाते
संग बादल के हम भी गाते ।
डाल-डाल पर बोले कोयल ।
मिसरी कानों में घोले कोयल
-0-
[ राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय, सैक्टर -11 , नई दिल्ली-110085 ]

Friday, August 13, 2010

Arithmetical Magic!!

Beauty of Mathematics!!!!!!!
1 x 8 + 1 = 9
12 x 8 + 2 = 98
123 x 8 + 3 = 987
1234 x 8 + 4 = 9876
12345 x 8 + 5 = 98765
123456 x 8 + 6 = 987654
1234567 x 8 + 7 = 9876543
12345678 x 8 + 8 = 98765432
123456789 x 8 + 9 = 987654321

1 x 9 + 2 = 11
12 x 9 + 3 = 111
123 x 9 + 4 = 1111
1234 x 9 + 5 = 11111
12345 x 9 + 6 = 111111
123456 x 9 + 7 = 1111111
1234567 x 9 + 8 = 11111111
12345678 x 9 + 9 = 111111111
123456789 x 9 +10= 1111111111

9 x 9 + 7 = 88
98 x 9 + 6 = 888
987 x 9 + 5 = 8888
9876 x 9 + 4 = 88888
98765 x 9 + 3 = 888888
987654 x 9 + 2 = 8888888
9876543 x 9 + 1 = 88888888
98765432 x 9 + 0 = 888888888

Brilliant, isn't it?
And look at this symmetry:
1 x 1 = 1
11 x 11 = 121
111 x 111 = 12321
1111 x 1111 = 1234321
11111 x 11111 = 123454321
111111 x 111111 = 12345654321
1111111 x 1111111 = 1234567654321
11111111 x 11111111 = 123456787654321
111111111 x 111111111 = 12345678987654321
Now, take a look at this...
101%
From a strictly mathematical viewpoint:
What Equals 100%?
What does it mean to give MORE than 100%?
Ever wonder about those people who say they are giving more than 100%?
We have all been in situations where someone wants you to
GIVE OVER 100%.
How about ACHIEVING 101%?
What equals 100% in life?
Here's a little mathematical formula that might help
answer these questions:
If:
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
Is represented as:
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26.
If:
H-A-R-D-W-O- R- K
8+1+18+4+23+ 15+18+11 = 98%
And:
K-N-O-W-L-E- D-G-E
11+14+15+23+ 12+5+4+7+ 5 = 96%
But:
A-T-T-I-T-U- D-E
1+20+20+9+20+ 21+4+5 = 100%
THEN, look how far the love of God will take you:
L-O-V-E-O-F- G-O-D
12+15+22+5+15+ 6+7+15+4 = 101%
Therefore, one can conclude with mathematical certainty that:
While Hard Work and Knowledge will get you close, and Attitude will
get you there, It's the Love of God that will put you over the top!
It's up to you if you share this with your friends & loved ones just
the way I did..
Have a nice day & God bless!
Courtesy- Shri Maharaj Krishen Kaw

Monday, June 28, 2010

बालदर्शन – गिजुभाई बधेका

प्रेम और शांति

अगर हमें दुनिया में सच्ची शांति प्राप्त करनी है और अगर हमें युद्ध के विरुद्ध लड़ाई लड़नी है तो हमें बालकों से इसका आरंभ करना होगा, और अगर बालक अपनी स्वभाविक निर्दोषता के साथ बड़े होंगे, तो हमें संघर्ष नहीं करना पड़ेगा, हमें निष्पफल और निरर्थक प्रस्ताव पास नहीं करने पड़ेगे। बल्कि हम प्रेम से अध्कि प्रेम की ओर

और शांति अधिक शांति की ओर बढ़ेंगे यहाँ तक कि अंत में दुनिया के चारों कोने उस प्रेम और शांति से

भर जाएँगे, जिसके लिए आज सारी दुनिया जाने या अनजाने तरस और तड़प रही है।

'यंग इंडिया' – 19–11–1931

प्राचीन काल के विद्यार्थी

प्राचीन काल में हमारे विद्यार्थी ब्रहमचारी, अर्थात ईश्वर से डरकर चलने वाले, कहे जाते हैं। राजामहाराजा और समाज के बड़ेबूढ़े उनका सम्मान करते थे। राष्ट्र स्वेच्छा से उनके पालनपोषण की जिम्मेदारी अपने सिर लेता था और वे लोग बदले में राष्ट्र की सौगुनी बलवती आत्माएँ, सौगुने शक्तिशाली मस्तिष्क और सौगुनी बलवती भुजाएँ

अर्पण करते थे।

'यंग इंडिया' 9–6' 1932 मोहनदास करमचन्द गाँधी

1 – बालक

बालक मातापिता की आत्मा है।

बालक घर का आभूषण है।

बालक आँगन की शोभा है।

बालक कुल का दीपक है।

बालक तो हमारे जीवनसुख की प्रफुल्ल और प्रसन्न खिलती हुई कली है।

2 – बालक की देन

आपके शोक को कौन भुलाता है?

अपनी थकान को कौन मिटाता है?

आपको बाँझपन से कौन बचाता है?

आपके घर को किलकारियों से कौन भरता है?

आपकी हँसी को कौन कायम रखता है?

बालक!

प्रभु को पाने के लिये बालक की पूजा कीजिए।

3 – क्रांति और शांति

ईश्वर की सृष्टि में बालक उसका एक अद्भुत और निर्दोष सृजन है।

हम बालक के विकास की गति को पहचानें।

जिसने आज के बालक को स्वतंत्र और स्वाधीन बनने की अनुकूलता कर दी है,

उसने मनुष्य जाति को सर्वांगीण काति और सम्पूर्ण शांति के मार्ग पर चलता कर दिया है।

4 – जवाब दीजिए

मैं खेलूँ कहाँ?

मैं कूदूँ कहाँ?

मैं गाऊँ कहाँ?

मैं किसके साथ बात करूँ?

बोलता हूँ तो माँ को बुरा लगता है।

खेलता हूँ तो पिता खीजते हैं।

कूदता हूँ, तो बैठ जाने को कहते हैं।

गाता हूँ, तो चुप रहने को कहते हैं।

अब आप ही कहिए कि मैं कहाँ जाऊँ? क्या करूँ?

5–खुद काम करने दीजिए

बालक को खुद काम करने का शौक होता है।

उसे रूमाल धोने दीजिए।

उसे प्याला भरने दीजिए।

उसे फूल सजाने दीजिए।

उसे कटोरी माँजने दीजिए।

उसे मटर की फली के दाने निकालने दीजिए।

उसे परोसने दीजिए।

बालक को सब काम खुद ही करने दीजिए।

उसकी अपनी मर्जी से करने दीजिए।

उसकी अपनी रीति से करने दीजिए।

6–परख

हमारी आँख में अमृत है या विष,

हमारी बोली में मिठास है या कडुआहट,

हमारे स्पर्श में कोमलता है या कर्कशता,

हमारे दिल में शांति,है या अशांति,

हमारे मन में आदर है या अनादर,

बालक इन बातों को तुरंत ही ताड़ लेता है।

बालक हमें एकदम पहचान लेता है।

7 – दुश्मन

'सो जा, नहीं तो बाबा पकड़ कर ले जाएगा।'

'खा ले, नहीं तो चोर उठा कर ले भागेगा।'

'बाघ आया !'

'बाबा आया !'

'सिपाही आया !'

'चुप रह, नहीं तो कमरे में बंद कर दूँगी।'

'पढ़ने बैठ नहीं तो पिटाई करूँगी।'

जो इस तरह अपने बालकों को डराते हैं, वे बालकों के दुश्मन हैं।

8–हम क्या सोचेंगे?

बालक का हास्य जीवन की प्रफुल्लता है।

बालक का रुदन जीवन की अकुलाहट है।

बालक के हास्य से फूल खिलता है।

बालक के रुदन से फूल मुरझाता है।

हमारे घरों में बालहास्य की मंगल शहनाइयों के बदले

बालरुदन के रणवाद्य क्यों बजते हैं?

क्या हम सोचेंगे?

9–पृथ्वी पर स्वर्ग

यदि हम बालकों को अपने घरों में उचित स्थान दें,

तो हमारी इस पृथ्वी पर ही स्वर्ग की सृष्टि हो सके।

स्वर्ग बालक के सुख में है।

स्वर्ग बालक के स्वास्थ्य में है।

स्वर्ग बालक की प्रसन्नता में है।

स्वर्ग बालक की निर्दोष मस्ती में है।

स्वर्ग बालक के गाने में और गुनगुनाने में है।

10–महान आत्मा

बालक की देह छोटी है, लेकिन उसकी आत्मा महान है।

बालक की देह विकासमान है।

बालक की शक्तियाँ विकासशील हैं।

लेकिन उसकी आत्मा तो सम्पूर्ण है।

हम उस आत्मा का सम्मान करें।

अपनी गलत रीतिनीति से हम बालक की शुद्ध आत्मा को भ्रष्ट और कलुषित न करें।

11–हम समझें

बालक सम्पूर्ण मनुष्य है।

बालक में बु​द्धि है, भावना है, मन है, समझ है।

बालक में भाव और अभाव है, रुचि और अरुचि है।

हम बालक की इच्छाओं को पहचानें।

हम बालक की भावनाओं को समझें।

बालक नन्हा और निर्दोष है।

अपने अहंकार के कारण हम बालक का तिरस्कार न करें।

अपने अभिमान के कारण हम बालक का अपमान न करें।

12–चाह

बालक को खुद खाना है, आप उसे खिलाइए मत।

बालक को खुद नहाना है, आप उसे नहलाइए मत।

बालक को खुद चलना है, आप उसका हाथ पकड़िए मत।

बालक को खुद गाना है, आप उससे गवाइए मत।

बालक को खुद खेलना है, आप उसके बीच में आइए मत।

क्योंकि बालक स्वावलम्बन चाहता है।

13–क्या इतना भी नहीं करेंगे?

क्लब में जाना छोड़कर बालक को बगीचे में ले जाइए।

गपशप करने के बदले बालक को चिड़ियाघर दिखाने ले जाइए।

अखबार पढ़ना छोड़कर बालक की बातें सुनिए।

रात सुलाते समय बालक को बढ़िया कहानियाँ सुनाइए।

बालक के हर काम में गहरी दिलचस्पी दिखाइए।

14–नौकर की दया

सचमुच वह घर बड़भागी घर है।

जहाँ पतिपत्नी प्रेमपूर्वक रहते हैं।

जिसके आँगन में गुलाब के फूल के से बालक खेलतेकूदते हैं।

जहाँ मातापिता बालकों को अपने प्राणों की तरह सहेजते हैं।

जहाँ बालक बड़ों से आदर पाते हैं।

और जहाँ बालकों को घर के नौकरों की दया पर जीना नहीं पड़ता है।

सचमुच वह घर एक बड़भागी घर है।

15–आत्म सुधार

बालक का सम्मान इसलिए कीजिए, कि हममें आत्मसम्मान की भावना जागे।

बालक को डाँटिएडपटिए मत,

जिससे डाँटनेडपटने की हमारी गलत आदत छूटने लगे।

बालक को मारिएपीटिए मत,

जिससे मारनेपीटने की हमारी पशुवृत्ति नष्ट हो सके।

इस तरह अपने को सुधरकर ही

हम अपने बालकों का सही विकास कर सकेंगे।

16 –भय और लालच

माँबाप और शिक्षक समझ लें कि

मारने से या ललचाने से बालक सुधर नहीं सकते,

उलटे वे बिगड़ते हैं।

मारने से बालक में गुंडापन आ जाता है।

ललचाने से बालक लालची बन जाता है।

भय और लालच से बालक बेशरम, ढीठ और दीनहीन बन जाता है।

17 – सच्ची शाला : घर

अगर माँबाप यह मानते हैं कि

स्वयं चाहे जैसा आचरण करके भी

वे अपने बालकों को संस्कारी बना सकेगें,

तो वे बड़ी भूल करते हैं।

माँबाप और घर, दोनों दुनिया की

सबसे बड़ी और शक्तिशाली शालाएँ हैं।

घर में बिगाड़े गए बालक को भगवान भी सुधार नहीं सकता!

18 – प्रकृति का उपहार

प्रकृति से दूर रहने वाला बालक, प्रकृति के भेद को कैसे जानेगा?

जगमगाती चाँदनी, कलकल बहती नदी,

खेत की मिट्टी,

बाड़ी के घर, टेकरी के कंकर, खुली हवा और आसमान के रंग,

ये सब वे उपहार हैं, जो बालक को प्रकृति से प्राप्त हुए हैं।

बालक को जी भरकर प्रकृति का आनन्द लूटने दीजिए।

19 – गतिमान

बालक पलपल में बढ़नेवाला प्राणी है।

बालक की दृष्टि प्रश्नात्मक है।

बालक का हृदय उद्गारात्मक है।

बालक के व्याकरण में प्रश्न और उद्गार हैं।

लेकिन पूर्णविराम कहीं नहीं हैं।

बालक का मतलब है, मूर्तिमन्त गति

अल्प विराम भी नहीं।

20 – नया युग

नागों की पूजा का युग बीत चुका है।

प्रेतों की पूजा का युग बीत चुका है।

पत्थरों की पूजा का युग बीत चुका है।

मानवों की पूजा का युग भी बीत चुका है।

अब तो, बालकों की पूजा का युग आया है।

बालकों की सेवा ही उनकी पूजा है।

21 – झगड़े

मातापिता के और बड़ों के झगड़ों के कारण

घर का वातावरण अकसर अशान्त रहने लगता है।

इससे बालक बहुत परेशान हो उठते हैं।

और किसी कारण नहीं, तो अपने बालकों के कारण ही

हम घर में हेलमेल से भरा जीवन जीना सीख लें।

घर के शान्त और सुखी वातावरण में

बालक का महान शिक्षण निहित है।

22 – गिजुभाई की बात

बालकों ने प्रेम देकर मुझे निहाल किया।

बालकों ने मुझे नया जीवन दिया।

बालकों को सिखाते हुए मैं ही बहुत सीखा।

बालकों को पढ़ाते हुए मैं ही बहुत पढ़ा।

बालकों का गुरु बनकर मैं उनके गुरुपद को समझ सका।

यह कोई कविता नहीं है।

यह तो मेरे अनुभव की बात है।

23 – दिव्य संदेश

बालदेव की एकोपासना कीजिए ।

अकेले इस एक ही काम में बराबर लगे रहिए।

सफलता की यही चाबी है।

बालकों द्वारा प्रभु के संदेश को ग्रहण करने की बात मनुष्य को सूझती क्यों नहीं है?

बालक का संदेश किसी एक जाति या देश के लिए नहीं है।

बालक का संदेश तो समूची मनुष्यजाति के लिए एक दिव्य संदेश है।

24–जीवित ग्रंथ

जो पुस्तकें पढ़कर ज्ञान प्राप्त करेंगे, वे शिक्षक बनेंगे।

जो बालकों को पढ़कर ज्ञान प्राप्त करेंगे, वे शिक्षाशास्त्री बनेंगे।

शिक्षा शास्त्री के लिए हरएक बालक

एक समर्थ, अद्वितीय और जीवित ग्रंथ है।

25–बालक की शक्ति

आप सारी दुनिया को धोखा दे सकते हैं,

लेकिन अपने बालकों को धोखा नहीं दे सकते हैं।

आप सबको सब कहीं बेवकूफ बना सकते हैं,

लेकिन अपने बालकों को कभी बेवकूफ नहीं बना सकते।

आप सबसे सब कुछ छिपा सकते हैं,

लेकिन अपने बालकों से कुछ भी नहीं छिपा सकते।

बालक सर्वज्ञ हैं, सर्वव्यापक हैं, सर्वशक्तिमान हैं।

26–बातें बेकार हैं

क्या हमारे पढ़ने, सोचने और लिखनेभर से

हमारा काम पूरा हो जाता है।

नहीं, हमें तो शिक्षा के नयेनये मन्दिरों का निर्माण करना है,

और उन मन्दिरों में अब तक अपूज्य रही सरस्वती देवी की स्थापना करनी है।

बालकों के लिए नये युग का आरम्भ हुआ है।

केवल बातें करने से अब कुछ बनेगा नहीं।

कुछ कीजिए! कुछ करवाइये!!

27–एड़ी का पसीना चोटी तक

बालक के साथ काम करना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल भी है।

बालस्वभाव का ज्ञान, बालक के लिए गहरी भावना और सम्मान,

बालक के व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धा और उसके प्रति आन्तरिक प्रेम,

इस सबको प्राप्त करने में एड़ी का पसीना चोटी तक पहुँचाना पड़ता है।

28–याद रखिए

गली की निर्दोष धूल बालक को चन्दन से भी अधिक प्यारी लगती है।

हवा की मीठी लहरें बालक के लिए माँ के चुम्बन से भी अधिक मीठी होती हैं।

सूरज की कोमल किरणें बालक को हमारे हाथ से भी अधिक मुलायम लगती हैं।

29–चैन कैसे पड़े?

जब तक बालक घरों में मार खाते हैं,

और विद्यालयों में गालियाँ खाते हैं,

तब तक मुझे चैन कैसे पड़े?

जब तक बालकों के लिए पाठशालाएँ, वाचनालय, बागबगीचे और क्रीड़ांगन न बनें,

तब तक मुझे चैन कैसे पड़े?

जब तक बालकों को प्रेम और सम्मान नहीं मिलता, तब तक मुझे चैन कैसे पड़े?

30 – शिक्षक के लिए सब समान

बालक कई प्रकार के होते हैं।

अपंग और अंधे, लूले और लंगड़े, मूर्ख और मंदबु​द्धि,

काले और कुरूप, कोढ़ी और खाजखुजली वाले,

इसी तरह खूबसूरत, ताजेतगड़े, चपल, चंचल, होशियार और चलतेपुरजे।

सच्चे शिक्षक की नजर में ये सब समान रूप से भगवान के ही बालक हैं।

31–बालक्रीड़ांगण

क्या भारत के लाखोंकरोड़ों बालकों को हम हमेशा गन्दी गलियों में ही भटकने देंगे?

या तो हम बालकों को घरों में काम करने के मौके दें,

या गलीगली में और चौराहोंचौराहों पर बाल क्रीड़ांगन खड़े करें।

ये बाल क्रीड़ांगन ही बाल विकास के सबसे आसान, अच्छे और सस्ते साधन हैं।

32–करेंगे या मरेंगे

मैं पलपल में नन्हें बच्चों में विराजमान

महान आत्मा के दर्शन करता हूँ।

यह दर्शन ही मुझे इस बात के लिए प्रेरित कर रहा है

कि मैं बालकों के अधिकारों की स्थापना करने के लिए जिन्दा हूँ,

और इस काम को करतेकरते ही मरमिट जाऊँगा।

33–धर्म का शिक्षण

धर्म की बातें कह कर,

धर्म के काम करवा कर,

धर्म की रूढ़ियों की पोशाकें पहना कर,

हम बालकों को कभी धर्माचरण करने वाला बना नहीं सकेंगे।

धर्म न किसी पुस्तक में है, और न किसी उपदेश में है।

धर्म कर्मकाण्ड की जड़ता में भी नहीं है।

धर्म तो मनुष्य के जीवन में है।

अगर शिक्षक और मातापिता अपने जीवन को धर्मिक बनाए रखेंगे,

तो बालक को धर्म का शिक्षण मिलता रहेगा।

34–अपनी ओर देख

जब तू प्रभु नहीं है तो अपने बालकों का प्रभु क्यों बनता है।

जब तू सर्वज्ञ नहीं है, तो बालकों की अल्पज्ञता पर क्यों हँसता है?

जब तू सर्वशक्तिमान नहीं है, तो बालकों की अल्प शक्ति पर क्यों चिढ़ता है?

जब तू संपूर्ण नहीं है, तो बालकों की अपूर्णता पर क्यों क्षुब्ध होता है?

पहले तू अपनी ओर देख, फिर अपने बालकों की ओर देख!

-00-

साभार : http://arvindguptatoys.com

प्रस्तुति-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'