मेरा आँगन

मेरा आँगन

Wednesday, July 15, 2009

भावना का फल




भावना का फल

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

अँधेरी रात थी । हाथ को हाथ नहीं सूझता था ।एक बूढ़ा साधु गाँव में पहुँचा । वह थककर चूर हो चुका था ।जिसका घर सबसे पहले पड़ेगा; वहीं रुकना ठीक रहेगा- उसने सोचा । सामने ही एक बहुत बड़ा मकान था ।उसने दरवाज़ा खटखटाया ।एक भारी-भरकम आदमी निकलकर आया –“क्यों क्या बात है ? किससे मिलना है ? क्या काम है ?

मुसाफ़िर हूँ ।रात भर ठहरना चाहता हूँ ।थक गया हूँ ।सुबह होते ही चला जाऊँगा।

सुबह होते ही चला जाऊँगा- मोटा आदमी मिनमिनाया-जाओ ! अपना रास्ता नापो ले आते हैं चोर-उचक्के साधु बनकर -और उसने भड़ाक् से दरवाज़ा बन्द कर लिया। दरवाज़ा बन्द करने वाले थे सेठ मगन लाल। इनके यहाँ कोई खास रिश्तेदार भी आ जाए तो उसे जितने दिन खिलाते-पिलाते, उतने दिन का किश्तों में उपवास ज़रूर रखते थे।

साधु आगे बढ़ा ।एक खण्डरनुमा घर में दिया टिमटिमा रहा था । दरवाज़ा खटखटाया तो एक कमज़ोर औरत ने दरवाज़ा खोला । साधु ने अँधेरा होने की बात की तो वह बोली –“आइए महाराज !इसे अपना ही घर समझिए।

घर में जो रूखा सूखा था, औरत ने साधु को आग्रहपूर्वक खिलाया । साधु की दृष्टि घर की हालत को परख रही थी । औरत बोली- मेरे पति कई साल पहले स्वर्ग सिधार गए ।थोड़ी-बहुत मेहनत मज़दूरी करती हूँ । उसी से घर चलता है । आपका ज़्यादा स्वागत सत्कार नहीं कर पाई। बच्चे भी छोटे-छोटे हैं ।इन्हें भी अच्छा खिला-पिला नहीं सकती । आपको इस घर में दिक्कत हो तो माफ़ करना।

सुबह साधु जब चलने लगा तो बोला-तुम सुबह के समय जो काम करने लगोगी , वही शाम तक करती रहोगी।औरत कुछ नहीं समझी । साधु अपनी राह निकल गया ।

वह उठी और बच्चों के लिए कुर्ता सिलने के लिए कपड़ा नापने लगी ।शाम तक कपड़ा ही नापती रह गई घर में कपड़े का ढेर लग गया । कपड़ा कई हज़ार का रहा होगा । वह उस कपड़े को बेचकर बरसों तक घर का खर्च चला सकती थी ।

सेठ मगनलाल के कानों में यह भनक पड़ी तो वह उतावला हो उठा और इस रहस्य का पता लगाने लगा ।

साधु कि बात सुनकर वह बहुत पछताया । उसने अपने दो नौकर साधु को ढूँढने के लिए पीछे-पीछे दौड़ा दिए ।अगले दिन वह साधु दूर के गाँव में मिला । आग्रह करके दोनों नौकर साधु को वापस ले आए। सेठ ने उसको खूब खिलाया पिलाया। साधु कई दिन तक सेठ के यहाँ खूब खाता-पीता रहा ।सेठ मन ही मन बहुत कुढ़ता रहा , पर बोला कुछ नहीं।जब साधु चलने लगा तो सेठ से बोला-तुम सुबह ही जो करने लगोगे ,शाम तक करते रहोगे-सुनकर सेठ की आँखें खुशी से चमक उठीं।

साधु कुछ ही दूर गया होगा कि सेठ के बगीचे में एक गधा घुस गया । सेठ का सहज क्रोध जाग उठा । गधे की इतनी हिम्मत कि बगीचे में आ घुसे !। वह गधे को निकालने के लिए दौड़कर गया । गधा उसे देखकर भागा ।सेठ भी पीछे पीछे दौड़ा ।गधा भी कभी इस गली में तो कभी उस गली में घुस जाता । सेठ जी भी पीछे पीछे ।

गाँव के सब लोग हँस रहे थे ; परन्तु सेठ को इसकी फ़िक्र नहीं थी ।वह थककर चूर हो गया ।दम निकला जा रहा था ।थकने के कारण गधा भी धीरे-धीरे चलने लगा ।सेठ ने भी रफ़्तार कम कर दी। सूर्यास्त होने तक सेठ जी उसके पीछे घूमते रहे । गधा गिर पड़ा ।सेठ जी भी बेदम होकर उसके पैरों के पास गिर पड़े ।




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ऊँटों का बटवारा


ऊँटों का बटवारा

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

गाँव में एक ज़मीदार रहता था ।उसके तीन बेटे थे । मरते समय उसने अपने तीनों बेटों को पास बुलाकर कहा –“मेरे पास सतरह ऊँट हैं ।इन्हें तुम आपस में बाँट लेना ।इतना ध्यान रहे कि किसी को भी उसके निर्धारित भाग से कम न मिले । बड़ा आधे ऊँट रख ले ।मँझला एक तिहाई और सबसे छोटा कुल ऊँटों का नौवाँ हिस्सा। बड़े के हिस्से में आधे ऊँट आते थे अर्थात् 8½ ऊँट ।वह ऊँट किस प्रकार ले ?आठ वह ले नहीं सकता था ।

मँझले के सामने भी यही परेशानी थी ।उसके हिस्से में छह ऊँट से कुछ कम आते थे । छोटे बेटे के हिस्से में दो ऊँट से कुछ कम , पूरे दो ऊँट भी नहीं । कई दिनों तक कुछ फ़ैसला नहीं हो सका ।

हारकर तीनों भाई पास के गाँव वाले एक बुद्धिमान् किसान के पास पहुँचे और उसे अपनी समस्या बताई । किसान ने कहा –‘ जितना तुम्हारा भाग है , तुम्हें उससे कुछ ज़्यादा ही मिल जाएगा ।इस पर तुम्हें एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए ।

सबने किसान की बात मान ली। किसान के पास एक ऊँट था ।उसने वह भी उन ऊँटों में मिला दिया । इस प्रकार अठारह ऊँट हो गए ।किसान ने सबसे पहले बड़े बेटे से कहा –“ तुम नौ ऊँट ले जा सकते हो । बस मेरा ऊँट नहीं लेना है।"
वह नौ ऊँट लेकर जल्दी से चलता बना ।
इसी प्रकार मँझले से कहा –“ तुम्हें छह ऊँट से कम मिलने थे । तुम मेरा ऊँट छोड़कर कोई छह ऊँट ले जा सकते हो।”
वह भी छह ऊँट लेकर खुशी से चलता बना ।
सबसे छोटे से कहा –“तुम दो ऊँट ले जा सकते हो।"
वह भी दो ऊँट लेकर चल दिया ।किसान का ऊँट बच गया और उनका बँटवारा भी ठीक ढंग से हो गया ।




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