डा .भावना कुँअर
गधेराम थे सुस्त बड़े
सो जाते थे खड़े- खड़े।
भाता नहीं था कोई काम
हर पल करते थे आराम।
मालिक रोज़ उन्हें समझाता
गधे राम को समझ न आता।
मालिक कहते 'काम करोगे'
खूब फलोगे स्वस्थ रहोगे।
सुनते थे वो कान दबाये
बिना आँख से आँख मिलाये।
आज़ पड़े हैं वो बीमार
घुटने हो गये हैं बेकार।
टप-टप आँसू खूब बहाये
पर घुटनों से उठ ना पाये।
रोज़ ही करते गर वो काम
स्वस्थ ही रहते सुबहो शाम।
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गधेराम थे सुस्त बड़े
सो जाते थे खड़े- खड़े।
भाता नहीं था कोई काम
हर पल करते थे आराम।
मालिक रोज़ उन्हें समझाता
गधे राम को समझ न आता।
मालिक कहते 'काम करोगे'
खूब फलोगे स्वस्थ रहोगे।
सुनते थे वो कान दबाये
बिना आँख से आँख मिलाये।
आज़ पड़े हैं वो बीमार
घुटने हो गये हैं बेकार।
टप-टप आँसू खूब बहाये
पर घुटनों से उठ ना पाये।
रोज़ ही करते गर वो काम
स्वस्थ ही रहते सुबहो शाम।
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