कपास का फूल
चक्रधर शुक्ल
धुनिया मुझको धुनता है
मुझे जुलाहा बुनता है ।
सज -धज
के जब आता
हूँ,
सब पर मैं छा जाता हूँ ।
जाड़ा दूर भगाता हूँ
,
सबके मन को
भाता हूँ
।
मैं बाती बन जाता हूँ ,
थाली में
सज जाता हूँ
।
सबके मैं
अनुकूल हूँ
,
मैं - कपास
का फूल हूँ ।
बहुत ही सुन्दर सरस कविता है
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
बहुत बढ़िया रचना !आपको बधाई!
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत सरस बाल कविता ।बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सहज,सरस बाल कविता।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुंदर भी ज्ञानवर्धक भी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर बाल कविता। बधाई आपको।
ReplyDeleteसुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत मनोहारी कविता है, पढ़ कर आनंद आया | बहुत बधाई |
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता. बधाई चक्रधर शुक्ल जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर सरस कविता--बहुत बधाई शुक्ल जी।
ReplyDeleteसुंदर कविता।
ReplyDeleteकनीकी कारण से श्री चक्रधर शुक्ल जी आपसे सम्पर्क नहीं कर सके। आपने मुझे फोन करके सभी साथियों का आभार प्रकट किया है
ReplyDeleteसुंदर मनभावन कविता है हार्दिक बधाई।
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ReplyDeleteबहुत प्यारी लगी बाल कविता, हार्दिक बधाई आपको ।