प्रकृति दोशी
फिर से दीवाली आई
संग लेकर खुशियाँ आई।
घर- घर हो
रही सफाई,
फिर से दीवाली आई।
अपने प्यारे घर में भी,
होगी लो आज
पुताई।
फिर से दीवाली आई।
दादी -मम्मी
मिलकर सब
बना रहे हैं मिठाई।
फिर से दीवाली आई।
हम भाई- बहनों
ने मिल
रंगोली है बड़ी सजाई।
फिर से दीवाली आई।
खूब बताशे खाएँगे हम
झोली भरकर मिलेगी लाई।
फिर से दीवाली आई।
घर के सब लोगों ने मिल
फुलझड़ी खूब चलाई।
फिर से दीवाली आई।
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वाह ... बहुत ही प्यारी कविता है । दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें
ReplyDeleteदिवाली की हकीकत बयाँ करती सुंदर कविता
ReplyDeleteबधाई
वाह प्रकृति जी दीवाली पर रची सुन्दर कविता .हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-10-2015) को "चाँद का तिलिस्म" (चर्चा अंक-2146) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्यारी सी बाल कविता के लिए प्रकृति जी को बधाई !
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए बधाई प्रकृति जी !
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ReplyDeleteसुन्दर
beautiful...
ReplyDeletewelcome to my new post: http://raaz-o-niyaaz.blogspot.in/2015/10/blog-post.html
सुंदर कविता। शुभकामनाएँ।
ReplyDeletebahut sundar !diwali par batashe si mithi kavita.............prakriti ji bahut bahut- badhai kavita evam dipotsav ki bhi !
ReplyDeletesundar abhivaykti dheron shubhkamnayen..
ReplyDeleteदीपावली का सुन्दर चित्रण...ढेरों शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता ..बहुत-बहुत शुभकामनाएँ !
ReplyDeletehappy Diwali :)
बहुत प्यारी कविता...ढेरों शुभकामनाएँ...|
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