Friday, October 30, 2015

दीवाली



प्रकृति दोशी

फिर से दीवाली आई
संग लेकर खुशियाँ आई।
घर- घर हो रही सफाई,
फिर से दीवाली आई।

अपने प्यारे घर में भी,
 होगी लो आज पुताई।
फिर से दीवाली आई।

दादी -मम्मी मिलकर सब
बना रहे हैं मिठाई।
फिर से दीवाली आई।

हम भाई- बहनों ने मिल
रंगोली है बड़ी सजाई।
फिर से दीवाली आई।

खूब बताशे खाएँगे हम
झोली भरकर मिलेगी लाई।
फिर से दीवाली आई।

घर के सब लोगों ने मिल
फुलझड़ी खूब चलाई।
फिर से दीवाली आई।
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Tuesday, October 20, 2015

दादी


मंजूषा मन

छोड़ अपना गाँव पीपल की छाँव।
दादी ने रखा था  शहर में पाँव।

भाई नहीं उनको  यहाँ की हवा
चल ही न पाई ये जीवन की नाव।

ना दिखी थी धरती ना आसमान
जँची न किसी तरह  उनको ये ठाँव।

पौधे  ना थे न फूलों की बगिया
चिड़िया की चूँ चूँ न कौए की काँव।

समझ आ गया मुझे दादी का दुख
लो चलते  हैं अब हम फिर से गाँव।

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