Saturday, September 10, 2011

मेरी माँ : एक फ़रिश्ता



प्रियंका सैनी

कक्षा 10 स
राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय ,रोहिणी सेक्टर -11 ,
 नई दिल्ली 

जाती थी माँ हर रोज़
उस हवेली  में
पूछा मैंने हर रोज़
हवेली जान के बारे में,
कहती माँ हर रोज़ यही
‘दुनिया का स्वर्ग है वहीं’
सोचा करती मैं ख़्यालों में-
वो हवेली माँ की तो नहीं ?
याद आई मुझे वो एकादशी की रात
कर रही थी जब मैं
अपने जन्म-दिन की बात
कहा था माँ ने -‘
दूँगी तुझे एक मधुर उपहार
अबकी बार ;
पर नहीं थे पैसे  माँ के पास ।
एक दिन पहुँची मैं माँ के पीछे-पीछे,
देखा-खड़ी है वहाँ एक औरत
माँ कह रही थी उसे ठकुराइन,
ठकुराइन गुर्राकर बोली-
‘जा बनाकर ला मेरे लिए कॉफ़ी’
उसका बोलना लगा मुजे बेढंगा
समझ गई थी मैं अब सब कुछ
जोड़ रही थी पैसे माँ
मेहनत करती थी दिन-रात
मुझे देना चाहती थी मधुर उपहार ।
माँ कह रही थी ठकुराइन को-
‘ कल मुझे जाना है रात होने से पहले
देना है अपनी लाडो को प्यारा उपहार’-
सुनकर इतना ढरके मेरे आँसू
गीली हो गईं हथेलियाँ ।
‘ओह ! मेरी माँ !’ -निकला मेरे मुँह से ।
ढली चाँदनी, आई सुबह नई !
सबसे प्यारा उपहार मुझे मिला
वह उपहार था -मेरी नई स्कूल ड्रेस,
मेरी माँ भला क्या कम है
किसी आकाश से उतरने वाले फ़रिश्ते से !
सचमुच फ़रिश्ता है मेरी माँ !!
-0-

4 comments:

  1. प्यारी कविता ...

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  2. बहुत ही प्यारी और सुन्दर पंक्तिया ....

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  3. हकीकत बयान करती यह पोस्ट अच्छी लगी...शुभकामनायें !!

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  4. बहूत अच्छी कहानी हेँ।

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