मैं हूँ आलू का पापड़
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मैं हूँ आलू का पापड़। मैं छोटे-छोटे बीज के रूप में था। किसान ने खेत की जुताई करके मुझे जमीन में दबा दिया। मेरा दम घुटने लगा। मुझे लगा मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएँगे। किसान ने सिंचाई की। मुझसे अंकुर निकलने लगे और ऊपर की कोमल जमीन को चीरकर खुली हवा में साँस लेने का मौका मिला। ठण्ड पड़ने लगी। लगा कि मेरे पत्ते सूख जाएँगे। किसान ने सिंचाई करके मुझे सूखने से बचाया। कुछ कीट-पंतगों ने भी मेरे स्वास्थ्य को खराब करने का बीड़ा उठाया। मेरा मालिक बहुत होशियार था। उसने कीटनाशक छिड़ककर मुझे होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिला दिया। मैं धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। जमीन के भीतर मेरा आकार बढ़ने लगा।
किसान ने खुदाई करके मुझे बाहर निकाल लिया। बाहर का संसार बहुत सुन्दर था। एक दिन एक हलवाई मुझे खरीदकर ले गया। उसने पहले मुझे बड़े-बड़े भगौनों में उबाला। फिर मेरा छिलका बड़ी बेरहमी से उतारा। मेरी आँखों में इस हलवाई ने नमक-मिर्च झोंक दीं, मसाला भी मिला दिया। मुझे बुरी तरह कुचलकर बेलन से बेला और पापड़ बनाए। वह मुझे इतनी जल्दी छोड़ने वाला नहीं था। उसने मुझे तेज धूप में डाल दिया। मैं रो भी नहीं सकता था। इसके बाद उसने मुझे खौलते तेल में डालकर तला। आलू से पापड़ बनने की यह मेरी कष्टकारी यात्रा थी। अब आपकी प्लेट में सजाया गया हूँ ।
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आलू से पापड़ बनने तक की सारी जानकारी आपने बड़े रोचक ढंग से बच्चों को दी है। बधाई।
ReplyDeletewaah ...bahut saral tareeke se aaloo kii papad banane tak ki yaatraa katha !
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