एकांकी नाटक
चक्रव्यूह-
कमला
निखुर्पा ( प्राचार्य केन्द्रीय विद्यालय , पिथौरागढ़)
पात्र
1-माँ
2-शिवम (बेटा, उम्र 16 साल)
3-दिव्या (बेटी उम्र 14 साल)
4-डाक्टर
5-पुलिसवाला
6-आशीष (शिवम का दोस्त)
7-हिमांशु(शिवम का दोस्त)
दृश्य
एक
घर के बैठक कक्ष का दृश्य है। माँ
सोफ़े पर बैठी अखबार पढ़ रही है। शिवम का प्रवेश।
माँ- अरे शिवम क्या हुआ? इतना परेशान क्यों है? आज तुम्हारा यूनिट टेस्ट था ना?
पेपर कैसा हुआ? शिवम
क्या हुआ? कुछ बोलता क्यों नहीं? किसी से लड़ाई हुई है क्या?
(शिवम बैग
सोफ़े पर फेंककर अपनी
टाई खोलता है)
शिवम
(अनमने स्वर में)-कुछ नही माँ मेरा खाना लगा दो जल्दी, मुझे ट्यूशन के
लिए
देर हो जाएगी।
माँ- ठीक है ठीक है, लगा रही हूँ मैं खाना। अब बताओ
भी पेपर कैसा हुआ? 90% से
अधिक ही हैं ना?
शिवम
(झल्लाकर) पेपर पेपर पेपर लो देखो पेपर । 90% नहीं केवल 40% अंक ही
आए हैं मेरे फ़िजिक्स में। मैं अच्छा नहीं कर
पाया माँ।
माँ-(
हैरान होकर) 40% !! तुमने तो फ़िजिक्स की ट्यूशन भी लगाई है, वो भी शहर के
सबसे
महंगे ट्यूटर से फ़िर भी इतने कम नंबर? क्यों …?
शिवम-(दुखी स्वर में) माँ मुझे नहीं पता…क्यों?
मैं तो पूरी मेहनत करता हूँ फ़िर भी
मेरे नंबर कम क्यों आते हैं। कितनी बार
बताया आप लोगों को, मुझे ये फ़िजिक्स,
कैमिस्ट्री समझ नहीं आती। मुझे तो कैनवस और
रंगों से प्यार है पर आप और
पापा …
माँ- शिवम हमने भी कितनी
बार समझाया है, हम तुम्हें आर्किटेक्ट इंजीनियर बनाना
चाहते हैं और तुम एक मामूली शौक के लिए पेंटर
बनकर अपनी जिंदगी बरबाद
करना
चाहते हो ? ये रंग कागज में ही अच्छे लगते हैं ,असल
जिंदगी में नहीं। चलो
अब खाना खा लो।
शिवम
(झल्लाकर)।ओफ़्फ़ो…फ़िर भाषण। रहने दो खाना-वाना। मै जा रहा हूँ । मुझे
फ़िजिक्स
की ट्यूशन के लिए देर हो रही है।
(शिवम
अपना बैग उठाकर चला जाता है)
माँ- अरे शिवम बेटा! खाना तो खा ले, सुबह
से कुछ नही खाया। शिवम शिवम!!!!
हे भगवान! आज फ़िर बिना खाए भूखा चला गया ये
लड़का। दिव्या ,ओ दिव्या! कहाँ
गई ये
लड़की भी…
दिव्या-क्या हुआ माँ, भैया नही आए क्या?
माँ-अरे बेटा शिवम आया था और बिना खाए ही ट्यूशन चला गया, बताओ खाने की भी
फ़ुर्सत नहीं है।
दिव्या-खाने की फ़ुर्सत कहा होगी माँ, पता है, भैया आज फ़िर टिफ़िन लेकर नही गए
थे, स्कूल कैंटीन में खाकर आए होंगे। बर्गर,
पिज्जा या समोसा।
माँ- हाँ,आज फ़िर बाहर से उल्टा-सीधा खाकर आया होगा।
क्या होगा आज की पीढ़ी का? सुबह से घोड़े की तरह दौड़ रहा है, रुकने का तो नाम
ही
नहीं ।
दिव्या-हुँह भागता रहता है, कान में मोबाइल की लीड
डालकर बाइक में सवार होकर,
इतनी तेज चलाता है कि ………… आपको तो मालूम है
ना कि 18 साल से कम
उम्र के बच्चों को गियर वाला वाहन चलाना गैर
कानूनी है। आपने उसे बाइक
दिलाई ही क्यों? साइकिल तो थी न उसके पास?
माँ- कैसी बातें करती हो दिव्या, तुम्हें तो मालूम है न कितनी व्यस्त दिनचर्या है
तुम्हारे
भाई
की। पहले स्कूल फ़िर तीन-तीन विषयों के ट्यूशन । साइकिल से आते-जाते
कितना थक जाता था बेचारा; इसीलिए तो उसे मोटर साइकिल दिलाई हमने और
रही
बात कानून की तो बेटा, सारे नियम कानून व्यावहारिक नहीं होते, जीवन में कई
समझौते करने पड़ते हैं। तुम्हें क्या पता? तुम्हें तो ट्यूशन नहीं जाना पड़ता है ना।
दिव्या-मैं क्यों जाऊँ ट्यूशन ? मैं स्कूल में मन लगाकर पढ़ती हूँ
जो समझ में नहीं
आता अपने टीचर से पूछ लेती हूँ । हर बार
अव्वल आती हूँ अपनी कक्षा में। अरे
हाँ… माँ
मुझे आपको कुछ दिखाना है… अपनी आँखें बन्द करो ना………प्लीज माँ
हाँ अब
देखो……मुझे आज प्राइज मिला……।
माँ- अरे वाह! प्राइज! कितना सुंदर है, दिव्या अब प्राइज के बारे में जल्दी से बता
दो।
दिव्या- बताती हूँ , बताती हूँ । माँ ,मैने कविता
लेखन- प्रतियोगिता में भाग लिया था, मेरी
कविता ‘जलसंचय’ को फ़र्स्ट प्राइज मिला।
माँ- अरे वाह! मेरी मुनिया तो कवयित्री बन
गई। शाबाश बेटा!
तुम ये सब काम कब करती हो भई ?
दिव्या- मैं ट्यूशन जाकर समय बरबाद नहीं करती माँ
। इसीलिए पढ़ाई के साथ-साथ
अपनी रुचि के काम करने के लिए वक्त मिल जाता है मुझे।
माँ- भई हमें भी सुनाओ अपनी कविता-
दिव्या- सुनो-
पानी है अनमोल,
इसका मोल जान
लीजिए।
आने वाली पीढ़ी का
कुछ तो खयाल कीजिए।
बूँद-बूँद से बनता जल
जल से बनता जीवन
पानी धरती की जान
है
बेकार न बहाया
कीजिए.।
पानी है अनमोल,
इसका मोल जान
लीजिए।
आने वाली पीढ़ी का
कुछ तो खयाल कीजिए।
जलसंचय नाकिया अभी
तो
जल्दी वो दिन आएगा।
हर पौधा हर एक जीव
तड़प तड़प रह जाएगा।
पानी पानी चिल्लाकर
इंसा प्यासा मर
जाएगा।
आने वाली पीढ़ी का
कुछ तो खयाल कीजिए।
पानी है अनमोल,
इसका मोल जान
लीजिए।
माँ, कैसी लगी आपको मेरी कविता………?
माँ-बहुत सुन्दर, प्रेरक रचना है। इसी बात पर आज मैं तुम्हें अपने हाथ से हलवा
बनाकर खिलाऊँगी।
(तभी फ़ोन की घण्टी बजती है)
माँ- हैलो! जी हाँ मैं शिवम की माँ बोल रही हूँ । क्या?? (परेशान हो जाती है) कौन से
अस्पताल में? मैं आ रही हूँ । ( फ़ोन रखकर रुआँसी
आवाज में) दिव्या ! जल्दी चलो शिवम का एक्सीडेंट हो गया
है।
(दोनों
माँ बेटी तेजी से निकल जाती हैं।)
दृश्य
परिवर्तन
अस्पताल का कमरा, शिवम बिस्तर पर लेटा कराह रहा
है, माथे से खून बह रहा है। उसके दोनों दोस्त परेशानी की मुद्रा में खड़े हैं।
डाक्टर, शिवम की जाँच कर रहा है। वही एक पुलिसवाला भी चहलकदमी
कर रहा है। तभी माँ और दिव्या का प्रवेश होता है।
माँ-(घबराई
हुई है)- शिवम , क्या हुआ बेटा!! शिवम!, डाक्टर क्या हुआ है मेरे बेटे को? (शिवम
के दोस्तों से) आशीष बेटा!, हिमांशु क्या हुआ है शिवम को, और तुम दोनों को भी
ये खरोंचे कैसी?( दोनों अपना सिर झुका लेते हैं) बताओ बेटा…।
पुलिसवाला- ये क्या बताएंगे मैडम!, मैं बताता हूँ । आपका बेटा बिना हैलमेट पहने
मोटरसाइकिल चला रहा था, फ़ुल स्पीड में। वो भी अपने दोनों दोस्तों
को पीछे बैठाकर, ऐसे में दुर्घटना तो होनी ही थी। आपके बेटे की मोटरसाइकिल जब्त हो
गई है। यातायात के नियमों का उल्लंघन
करने के जुर्म में आपका बेटा इस वक्त हिरासत में है और (शिवम के दोस्तों से)
तुम दोनों इसी वक्त चलो मेरे साथ थाने, दोपहिया वाहन में तीन तीन लोग सवारी करते
हो? अपने साथ-साथ सड़क पर चलने वाले दूसरे लोगों की जिंदगी से भी खेलते हो?
आशीष
और हिमांशु- (रोते हुए) हमें माफ़ कर दीजिए सर, फ़िर कभी ऐसी गलती
नही होगी।
माँ- हे भगवान ये क्या हो रहा है!! (पुलिसवाले से) भाई साहब बच्चे हैं माफ़
कर दीजिए इनको, (डाक्टर से) डाक्टर साहब! बताइए ना कैसा है मेरा शिवम?
(पुलिसवाला
दोनों बच्चों को लेकर बाहर चला जाता है)
डॉक्टर-
देखिए मैने इंजेक्शन दे दिया है, चोटें गहरी नहीं है। ठीक
होने में हफ़्ता भर लगेगा इसे पर अंदरूनी कमजोरी बहुत है । आपका बेटा को एनीमिया
है,
माँ- एनीमिया???
डॉक्टरहाँ... एनीमिया यानी खून की कमी, मैं पेशेंट
से कुछ सवाल पूछ्ना चाहूँगा।
हां शिवम बेटा!
बताइए ये एक्सीडेंट कैसे हुआ? क्या आप
किसी से टकरा गए थे?
शिवम-
नहीं, बाइक चलाते-चलाते अचानक मुझे चक्कर आ गया था।
डाक्टर-
आपने आज सुबह क्या खाया था?
शिवम-
मैगी।
डॉक्टर-
और दिन में?
शिवम-
स्कूल के कैंटीन में बर्गर ले लिया था।
डॉक्टर-
छुट्टी के बाद घर पहुँचकर आपने
लंच लिया होगा क्यों ?
शिवम-
जी कभी- कभी । अक्सर समय ही नही मिलता। ट्यूशन जाना होता है।
डॉक्टर-
स्कूल टाइम क्या है आपका?
शिवम-
जी सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक ।
डॉक्टर-
ट्यूशन कितने बजे से जाते हो?
शिवम-
2:30 बजे घर पहुँचता हूँ फ़िर 3 बजे से मेरी ट्यूशन क्लासेज़ शुरु हो जाती है।
डॉक्टर-
वापस घर कब पहुँचते हो?
शिवम-
7:30 या 8 बजे।
डॉक्टर- इतनी देर से क्यों?
शिवम-
3 से चार बजे तक फ़िजिक्स का ट्यूशन, 4 से 5 मैथ्स, 5 से 6 कैमिस्ट्री फ़िर
6 से 7 बजे तक
कंप्यूटर क्लासेस। इसीलिए घर आते आते 7:30 ,8 बज जाते हैं। घर
जाकर पहले स्कूल का होमवर्क, फ़िर ट्यूशन का
होमवर्क।
(डॉक्टर
शिवम की माँ के साथ अलग जाकर बात करता है)
डाक्टर- (शिवम की माँ को) – देखिए मैडम ! एक बात मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूँ
। आप अपने बच्चे की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही हैं । पहली बात, आपका बेटा जंक फ़ूड
ले रहा है और इसी फ़ास्ट फ़ूड की वजह से उसकी आँतों में सूजन आ
गई है। आप उसे सब्जी फ़ल खिलाइए नहीं तो एनीमिया घातक सिद्ध
हो सकता है। दूसरी बात, वो एक टीन एज
बच्चा है कोई रोबोट नहीं। पढ़ाई के साथ-साथ उसे आराम , खेलकूद और मनोरंजन की शक्त
जरूरत है। क्या आपका बेटा खेलने जाता है?
माँ-
नहीं डाक्टर साहब, खेलने का समय ही नहीं होता उसके पास। हाँ पहले
पेंटिंग बनाता था पर पढ़ाई के बोझ से वो भी
छूट गया।
डाक्टर- देखिए मैडम! पढ़ाई व्यक्तित्व के विकास के लिए
है, विनाश के लिए नहीं। अपनी महत्वाकांक्षा के लिए आपने बच्चे की रुचियों का गला
घोंटकर उसपर पढ़ाई का बोझ डाल दिया। आपका बेटा भयंकर तनाव और दबाव में जी रहा है। उसका
स्वास्थ्य तो चौपट हो ही रहा है, अगर अभी भी आपने ध्यान नहीं दिया तो एक दिन वह
अपना मानसिक संतुलन भी खो बैठेगा।
माँ- ( सिसकते हुए) ओह ! डाक्टर आपने मेरी आँखें खोल दीं। अब हम अपनी महत्वाकांक्षा के बोझ तले
अपने बच्चों को नहीं दबने देंगे। उनका
बचपन नहीं छिनने देंगे।
-0- [ पर्दा गिरता है ]
Scintillating work Madam
ReplyDeleteVery inspiring and heart touching
वर्तमान परिप्रेक्ष्य का सही चित्रण किया मैम आपने।।👏 बहुत सरहनीय।
ReplyDeleteएकांकी नाटक 'चक्रव्यूह'आज की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलता है। छात्र तनाव का शिकार हो रहे है।इसके लिए अभिभावक भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। वे अपने सपनों को अपने बच्चों पर थोप रहे हैं।छात्र,छात्र न होकर मानों मशीन बन गया है। अब संभलने की जरूरत है। बच्चों को उनकी रूचि और सामर्थ्य के अनुसार आगे बढ़ने देना चाहिए। अभिभावकों के लिए यह आँखे खोलने वाला एकांकी है।उत्तम रचना के लिए 'कमला निखुर्पा' जी को बधाई।उन्होंने इस एकांकी के माध्यम से आज की ज्वलंत समस्या को उठाया है।
ReplyDeleteReality of today, a scene of every household. An eye opening writing. Great work madam.
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति कमला जी, 'चक्रव्यूह' शीर्षक आज की परिस्थितियों और मनस्थितियों को एक शब्द में बहुत खूबी से समेटे हुए है, आपको बहुत बहुत बधाई!!
ReplyDeleteअप्रतिम 👏
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
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