Sunday, September 23, 2012

भैया बहुत सताए मुझको


डॉ ज्योत्स्ना शर्मा


भैया बहुत सताए मुझको
चोटी खींच रुलाए मुझको ।
गुड़िया मेरी छीने भागे
पीछे खूब भगाए मुझको ।

मेरी पुस्तक ,रंग उसके हैं
खेलें कैसे, ढंग उसके हैं
क्या खाना है, क्या पहनाऊँ
नए- नए हुड़दंग उसके हैं ।

फिर भी तुमको क्या बतलाऊँ
प्यार उसी पर आए मुझको  ।
मेरा प्यारा न्यारा भैया  ,
कभी दूर ना भाए मुझको ।
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