सुबह की पहली किरण के साथ गुलाब की नन्ही-सी कली ने अपनी आँखें खोल कर धीरे से बाहर झाँका। ओस की बूंद उसकी आँखों में गि र पड़ी तो कली ने गबरा कर अपनी पंखुड़ियाँ फैला दी। अपनी लाल-लाल कोमल पंखुड़ियों पर वह खुद ही मुग्ध हो गई। थोड़ी देर इधर-उधर का नज़ारा देखने के बाद उसे कहीं से बातें करने की आवाज़ सुनाई दी। घूम कर देखा तो जूही और बेला के फूल आपस में बतिया रहे थे। गुलाब ने भी उनसे बातें करनी चाही,"बड़े भाइयों,"मैं भी आपसे बात करना चाहता हूँ...।"
"तुम बेटे...अभी बच्चे हो," जूही -बेला के फूलों ने विनोद से झूमते हुए कहा,"थोड़ी दुनियादारी सीख लो तब शामिल होना हमारी मंडली में...।"
वे फिर आपस में बातें करने लगे तो गुलाब ने सिर को झटका दिया,"हुँ...बच्चा हूँ...। कैसी बोरियत भरी दुनिया है...। क्या मेरा कोई दोस्त नहीं है...?" दुःखी होकर उसने सिर झुका लिया।
"दुःखी क्यों होते हो दोस्त," कहीं से बड़ी प्यार-भरी आवाज़ आई,"हम तुम्हारे दोस्त हैं न...। तुम्हारे लिए हम पलकें बिछाए हुए हैं। आओ, हमारे दोस्त बन जाओ...।"
गुलाब ने सिर उठा कर चारो तरफ़ देखा। कौन बोला ये? फिर अचानक काँटों को अपनी ओर मुख़ातिब पा उसने मुँह बिचका दिया,"दोस्ती और तुमसे...? शक्ल देखी है अपनी...? क्या मुकाबला है मेरा और तुम्हारा? न मेरे जैसा रूप, न कोमलता...और उस पर से मेरे लिए पलकें बिछाए बैठे हो...। न बाबा न, तुम्हारी पलकें तो मेरे नाजुक शरीर को चीर ही डालेंगी।"
गुलाब की कड़वी बातों ने काँटों का दिल ही तोड़ दिया। पर उसे बच्चा समझ उन्होंने उसे माफ़ कर दिया और मुस्कराते रहे पर बोले कुछ नहीं।
"पापा,देखो! कितना प्यारा गुलाब है...।" तीन वर्षीय बच्चे को अपनी तारीफ़ करते सुन कर गुलाब गर्व से और तन गया।
‘ऐसे ही प्यारे लोग मेरी दोस्ती के क़ाबिल हैं,’ गुलाब ने सोचा और काँटों की ओर देख कर व्यंग्य से मुस्करा दिया।
"पापा, मैं तोड़ लूँ इसे? अपनी कॉपी में इसकी पंखुड़ियाँ रखूँगा।" बच्चे की बात सुन गुलाब सहम गया,"ओह! कोई तो मुझे तोड़े जाने से बचा लो...। आज ही तो मैने अपनी आँखें खोली हैं। अभी मैने देखा ही क्या है?" गुलाब ने आर्त स्वर में दुहाई दी,"मैं क्या बेमौत कष्टकारी मौत मारा जाऊँगा?"
"नहीं दोस्त! काँटों की गंभीर आवाज़ सुनाई दी,"तुम चाहे हमें दोस्त समझो या न समझो, पर हम तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होने देंगे...।"
इससे पहले कि बच्चे का हाथ गुलाब तोड़ पाता, काँटों ने अपनी बाँहें फैला दी। बच्चा चीख मारता हुआ, सहम कर वापस चला गया। गुलाब ने चैन की साँस ली।
थोड़ी देर बाद बगीचे के फूलों के हँसी-ठहाकों में गुलाब और काँटों की सम्मिलित हँसी सबसे तेज़ थी।
गुलाब अब दुनियादारी सीख चुका था...।
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बहुत सुंदर बालकथा
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुक बहुक सुन्दर प्रियंका। सरल और सरस भाषा में लिखी एक सुन्दर रचना। बधाई प्रियंका ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बाल कथा, बधाई.
ReplyDeleteBahut sundr sikshaprad baal katha ke liye hardik badhai...
ReplyDeletekya sunder manmohak bal katha hai .
ReplyDeletevaese bhi ek baat bataun gulab mujhe sada se hi bahut priya hain.
aapki katha padh kar bahut hi achchha laga
rachana
बहुत ख़ूबसूरत बाल कथा! बढ़िया लगा!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
priyanka ji
ReplyDeletebahut hee sundar
आप सभी के उत्साहवर्धक कमेण्ट्स के लिए बहुत आभारी हूँ...।
ReplyDeleteप्रियंका
आप सभी के उत्साहवर्धक कमेण्ट्स के लिए बहुत आभारी हूँ...।
ReplyDeleteप्रियंका