प्रियंका गुप्ता
[वह कविता मैने तब लिखी थी जब मैं आठवीं में पढ़ती थी ।]
ओ मम्मी, ये कैसा युग है
कितने रावण जनम रहे हैं
राम कहाँ हैं बोलो मम्मी
लव-कुश यूँ जो बिलख रहे हैं
पिछ्ली बार तो हम ने मम्मी
खाक किया था रावण को
फिर किसने है आग लगाई
घर घर यूँ जो दहक रहे हैं
क्यों मम्मी खामोश हो गई
कण-कण आज पुकार रहे हैं
हर बच्चे को राम बनाओ
फिर चाहे कितने ही रावण
जन्मे इस धरती पर मम्मी
हम उनका दस शीश कुचलने को
लो वानर सेना बना रहे हैं.
-0-
अले वाह, यह तो बहुत अच्छी कविता है...मजेदार.
ReplyDelete____________________
'पाखी की दुनिया' में 'करमाटांग बीच पर मस्ती...'
बहुत शुक्रिया...।
ReplyDeleteअच्छी कविता है!
ReplyDeleteमन को भाने नए दोस्तों का दिन आया : सरस चर्चा (14)
पतंग पर सुन्दर रचना लिखी है आपने!
ReplyDelete--
आपकी पोस्ट की चर्चा तो यहाँ भी है!
--
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/09/18.html
बहुत सुन्दर कविता है .....धन्यवाद !
ReplyDeleteनन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
ये तो बता देती कि आठवीं किये कितने बर्ष हो गये चलो छोडो लडकियों की उम्र नही पूछते वो तो पालने मे ही स्यानी हो जाती हैं बिलकुल तुम्हारी तरह। बहुत अच्छी लगी कविता। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है .....
ReplyDeleteये कैसा युग है !कविता अति सुन्दर बन पड़ी है|सच में नई पीढ़ी ही दुष्ट दिमागों से कार्बन निकालने में सफल होगी|
ReplyDeleteसुधा भार्गव
bahut sunder.
ReplyDeleteChoti si umara men itni badi soch ...bahut khub! yun hi likhte raho..
ReplyDeleteआप सब के इतने उत्साहवर्धक कमेण्ट्स के लिए बहुत आभारी हूँ...।
ReplyDeleteसुन्दर कविता है .......
ReplyDeleteumar koi bhi ho vjn bhav ka hota hai . slam aapke is jjbe ko .
ReplyDeleteअरे यह तो बहुत ही सुंदर कविता है....बहुत अच्छी लगी मुझे
ReplyDeleteBAHUT HEE SUNDAR TATHA VICHAROTOZAK KAVITA...BADHAYI
ReplyDeletevery nice
ReplyDeletethanks for encouraging me,With best wishes
ReplyDeleteइसी तरह आप से बात करूंगा
मुलाक़ात आप से जरूर करूंगा
आप
मेरे परिवार के सदस्य
लगते हैं
अब लगता नहीं कभी
मिले नहीं है
आपने भरपूर स्नेह और
सम्मान दिया
हृदय को मेरे झकझोर दिया
दीपावली को यादगार बना दिया
लेखन वर्ष की पहली दीवाली को
बिना दीयों के रोशन कर दिया
बिना पटाखों के दिल में
धमाका कर दिया
ऐसी दीपावली सब की हो
घर परिवार में अमन हो
निरंतर दुआ यही करूंगा
अब वर्ष दर वर्ष जरिये कलम
मुलाक़ात करूंगा
इसी तरह आप से
बात करूंगा
मुलाक़ात आप से
जरूर करूंगा
01-11-2010
निरंतर ख्वाब देख रहे थे
क्या पता था वो वक़्त गुजार रहे थे
हम
समझते थे वो
आजमां रहे हैं
क्या पता था हमें
सता रहे हैं
जब मुस्करा कर देखते
हम समझते
करीब आ रहे हैं
जब बात करते
हम समझते थे
हाल-ऐ-दिल बता रहे हैं
इंतज़ार बेचैनी से कर रहे थे
सब खुशी से सह रहे थे
हाँ सुनने को तरस रहे थे
निरंतर ख्वाब देख रहे थे
क्या पता था
वो
वक़्त गुजार रहे थे
05-11-2010
इक बार तेरे हांथों से पी लूं,
क़ज़ा से पहले तमन्ना तो कर लूं
क़ज़ा
से पहले तमन्ना पूरी
कर लूं
दीदार तेरा इक बार तो
कर लूं
जी भर के तुझे इक बार
देख लूं
बीमार-ऐ- इश्क हूँ दवा तो
ले लूं
हकीकत में नहीं तो ख़्वाबों में
देख लूं
निरंतर जाम पिए तेरे नाम पर
इक बार तेरे हांथों से
पी लूं
क़ज़ा से पहले तमन्ना तो
कर लूं
04-11-2010
(क़ज़ा=मृत्यु)
चाल कोई भी चलें,अब चाल चलेंगे हम
तय
किया था
अब इश्क नहीं करेंगे
हम
कोई मुस्कराएगा नहीं देखेंगे
हम
इशारों से बुलाएगा,नहीं जायेंगे
हम
ख़्वाबों में आयेंगे,नहीं सोयेंगे
हम
निरंतर पैगाम भेजें,जवाब नहीं देंगे
हम
पहले से रो रहे हैं,अब नहीं रोयेंगे
हम
पुराने जाल से निकले नहीं
नए जाल में नहीं फंसेंगे
हम
चाल कोई भी चलें,अब चाल चलेंगे
हम
04-11-2010
इन्साफ ज़मीन पर नहीं तो ऊपर होता है
जो जैसा करता है,वैसा भरता है
जो
फितरत में जीते हैं
हैवान बन के रहते हैं
मन में शैतान पालते हैं
इंसानियत को निरंतर
बदनाम करते हैं
खुदा के कहर से नहीं डरते
किसी बात का असर
उन्हें नहीं होता
रंज भी उन्हें नहीं होता
ऐसे लोगों का,कोई नहीं होता
वे जानते नहीं हैं
विकृत सोच का अंत भी
विकृत होता है
इन्साफ ज़मीन पर नहीं
तो ऊपर होता है
जो जैसा करता है
वैसा भरता है
04-11-2010
इसी तरह आप से बात करूंगा
ReplyDeleteमुलाक़ात आप से जरूर करूंगा
आप
मेरे परिवार के सदस्य
लगते हैं
अब लगता नहीं कभी
मिले नहीं है
आपने भरपूर स्नेह और
सम्मान दिया
हृदय को मेरे झकझोर दिया
दीपावली को यादगार बना दिया
लेखन वर्ष की पहली दीवाली को
बिना दीयों के रोशन कर दिया
बिना पटाखों के दिल में
धमाका कर दिया
ऐसी दीपावली सब की हो
घर परिवार में अमन हो
निरंतर दुआ यही करूंगा
अब वर्ष दर वर्ष जरिये कलम
मुलाक़ात करूंगा
इसी तरह आप से
बात करूंगा
मुलाक़ात आप से
जरूर करूंगा
01-11-2010
निरंतर ख्वाब देख रहे थे
क्या पता था वो वक़्त गुजार रहे थे
हम
समझते थे वो
आजमां रहे हैं
क्या पता था हमें
सता रहे हैं
जब मुस्करा कर देखते
हम समझते
करीब आ रहे हैं
जब बात करते
हम समझते थे
हाल-ऐ-दिल बता रहे हैं
इंतज़ार बेचैनी से कर रहे थे
सब खुशी से सह रहे थे
हाँ सुनने को तरस रहे थे
निरंतर ख्वाब देख रहे थे
क्या पता था
वो
वक़्त गुजार रहे थे
05-11-2010
इक बार तेरे हांथों से पी लूं,
क़ज़ा से पहले तमन्ना तो कर लूं
क़ज़ा
से पहले तमन्ना पूरी
कर लूं
दीदार तेरा इक बार तो
कर लूं
जी भर के तुझे इक बार
देख लूं
बीमार-ऐ- इश्क हूँ दवा तो
ले लूं
हकीकत में नहीं तो ख़्वाबों में
देख लूं
निरंतर जाम पिए तेरे नाम पर
इक बार तेरे हांथों से
पी लूं
क़ज़ा से पहले तमन्ना तो
कर लूं
04-11-2010
(क़ज़ा=मृत्यु)
चाल कोई भी चलें,अब चाल चलेंगे हम
तय
किया था
अब इश्क नहीं करेंगे
हम
कोई मुस्कराएगा नहीं देखेंगे
हम
इशारों से बुलाएगा,नहीं जायेंगे
हम
ख़्वाबों में आयेंगे,नहीं सोयेंगे
हम
निरंतर पैगाम भेजें,जवाब नहीं देंगे
हम
पहले से रो रहे हैं,अब नहीं रोयेंगे
हम
पुराने जाल से निकले नहीं
नए जाल में नहीं फंसेंगे
हम
चाल कोई भी चलें,अब चाल चलेंगे
हम
04-11-2010
इन्साफ ज़मीन पर नहीं तो ऊपर होता है
जो जैसा करता है,वैसा भरता है
जो
फितरत में जीते हैं
हैवान बन के रहते हैं
मन में शैतान पालते हैं
इंसानियत को निरंतर
बदनाम करते हैं
खुदा के कहर से नहीं डरते
किसी बात का असर
उन्हें नहीं होता
रंज भी उन्हें नहीं होता
ऐसे लोगों का,कोई नहीं होता
वे जानते नहीं हैं
विकृत सोच का अंत भी
विकृत होता है
इन्साफ ज़मीन पर नहीं
तो ऊपर होता है
जो जैसा करता है
वैसा भरता है
04-11-2010
आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .
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