Tuesday, September 21, 2010

ओ मम्मी, ये कैसा युग है !

प्रियंका गुप्ता
[वह कविता मैने तब लिखी थी जब मैं आठवीं में पढ़ती थी ।]
      ओ मम्मी, ये कैसा युग है
      कितने रावण जनम रहे हैं
      राम कहाँ हैं बोलो मम्मी
      लव-कुश यूँ जो बिलख रहे हैं
      पिछ्ली बार तो हम ने मम्मी
      खाक किया था रावण को
      फिर किसने है आग लगाई
      घर घर यूँ  जो दहक रहे हैं
      क्यों मम्मी खामोश हो गई
      कण-कण आज पुकार रहे हैं
      हर बच्चे को राम बनाओ
      फिर चाहे कितने ही रावण
      जन्मे इस धरती पर मम्मी
      हम उनका दस शीश कुचलने को
      लो वानर सेना बना रहे हैं.

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Wednesday, September 15, 2010

सामूहिक -रचना -कौशल

 प्रीति,तुषार और आकांक्षा

वर्षा का मनभावन मौसम  
वर्षा का मनभावन मौसम
हर्षित हो जाता है तन-मन ।
वर्षा से हरियाली होती
वर्षा ही खुशहाली बोती ।
जब काले बादल घिर आते
तब वे सबके मन को भाते ।

पकौड़ी माँ ने तभी बनाई
सबने मिलकर जमकर खाई ।
वर्षा है अमृत की धारा
जिसको पीता चातक प्यारा
ये है सबसे प्यारा मौसम
ये है सबसे न्यारा मौसम
मोर नाचकर मन बहलाते
बच्चे कूदें शोर मचाते ।

चुन्नू-मुन्नू भोलू मिलकर
पानी में सब नाव चलाते।
सबके मन में छाई उमंग ,
नभ में लाखों उड़ी पतंग।
झूम-झूमकर नाचे मोर ,
मेंढक टर्र-टर्र करते शोर ।

काले-काले बादल छाते
हवा सुहानी लेकर आते ।
सबके मन को बादल भाते
संग बादल के हम भी गाते ।
डाल-डाल पर बोले कोयल ।
मिसरी कानों में घोले कोयल
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[ राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय, सैक्टर -11 , नई दिल्ली-110085 ]