Saturday, May 31, 2008

बाल कविता

कल्लू मोटा

कल्लू मोटा ना है खोटा

रखे हाथ में ,मोटा सोटा

रोज़ नहाता ,भर भर लोटा ।

चन्दू भाई ,है हलवाई

खुद ना खाता ,कभी मिठाई

इसीलिए कोठी बनवाई

माधो मट्टू,बड़ा निखट्टू

आदत से है अड़ियल टट्टू

सिर है उसका ,जैसे लट्टू ।

है बरजोरा, बड़ा चटोरा

खाता खीर बाइस कटोरा

तन है उसका जैसे बोरा ।

-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'