रमेश तैलंग
ताल में जी ताल में
सोनमछरिया ताल में ।
मछुआरे ने मन्तर फूँका
जाल गया पाताल में ।
थर-थर काँपा ताल का पानी
फँसी जाल में मछली रानी
तड़प-तड़पकर सोनमछरिया
मछुआरे से बोली –भैया !
मुझे निकालो , मुझे निकालो
दम घुटता है जाल में ।
मछुआरे ने सोचा पलभर,
कहा-‘छोड़ दूँ तुझे मैं अगर
उठ जाएगा दाना-पानी
क्या होगा फिर मछली रानी ?’
मछली बोली ,रोती-रोती-
‘मेरे पास पड़े कुछ मोती ।
जल में छोड़ो ले आऊँगी
सारे तुझको दे जाऊँगी ।’
मछुआरे को बात जँच गई
बस मछली की जान बच गई।
मछुआरे को मोती देकर
जल में फुदकी मचली रानी !
सोनमछरिया मछुआरे की
खत्म हुई इस तरह कहानी ।
[ आलेख संवाद :नवम्बर 2005 से साभार ]
।
No comments:
Post a Comment