Saturday, March 17, 2012
Saturday, March 3, 2012
Friday, March 2, 2012
भर ओक बाँटे वह खुशियाँ
डॉ हरदीप कौर सन्धु
कितनी भोली और मासूम सी
फूलों जैसे खिला है चेहरा
खिल-खिल वह हँसती है
कद से वह लम्बी दिखती
अभी भोली बातें करती है
भर ओक बाँटे वह खुशियाँ
दुःख कभी न आएँ अंगना
हर पल एक नई सौगात बन जाए
जिन्दगी सतरंगी कायनात बन जाए
रहे भरता सदा रब
उसकी तमन्नाओं की पिटारी को
चल काला टीका लगा दूँ
कहीं नजर न लग जाए
मेरी परियों जैसी धी -रानी को
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