मेरा आँगन

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Saturday, November 20, 2010

राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह

राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह एवं बटुकेश्वर दत्त जन्मशती के अवसर पर
      पुस्तकों का लोकार्पण संपन्न
कामरेड बटुकेश्वर दत्त जन्म शताब्दी के अवसर पर दिनांक 19 नवम्वर 2010 लखनऊ माण्टेसरी इन्टर कालेज पुराना किला सदर के प्रांगण में नेशनल  बुक ट्रस्ट इण्डिया, नई दिल्ली एवं ‘शहीद स्मारक स्वतन्त्रता संग्राम शोध केन्द्र’ के सौजन्य से पुस्तक लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह की मुख्य अतिथि शहीद बटुकेश्वर दत्त की पुत्री श्रीमती भारती दत्त बागची थी। विशेष अतिथि प्रो जगमोहन सिंह  (सरदार भगत सिंह के भानजे) थे। नेशनल  बुक ट्रस्ट ने हिन्दी भाषी लोगों के लिए बटुकेश्वर दत्त पर प्रथम पुस्तक प्रकाशित की है। जिसका शीर्षक ‘‘बटुकेश्वर दत्तः भगत सिंह के साथी’’, के लेखक श्री अनिल वर्मा है। इसके अलावा अन्य दो पुस्तकें क्रमशः भारत के संरक्षित वन क्षेत्र लेखक महेन्द्र प्रताप सिंह और संजीव जायसवाल, कृत बाल पुस्तक चंदा गिनती भूल गया’ का भी लोकार्पण किया गया।
विमोचन कार्यक्रम से पूर्व प्रातः विद्यालय के बच्चों ने विद्यालय प्रंkगण में स्वतन्त्रता संग्राम एवं कामरेड बटुकेश्वर दत्त से सम्बन्धित अविस्मरर्णीय साम्रगी एवं दुर्लभ विषयों को पोस्टर के माघ्यम से प्रदर्शित किया। जिसमें विजेता बच्चों को पुरस्कृत भी किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ एडवोकेट श्री उमेश चन्द्रा जी ने की। श्री बैजनाथ सिंह द्वारा अतिथियों के स्वागत के साथ प्रारंभ हुए कार्यक्रम में बटुकेश्वर दत्त पुस्तक के लेखक अनिल वर्मा, जिला एवं सत्र न्यायाधीश, म.प्र. ने बताया कि इस पुस्तक के लिए उन्होंने किस तरह से और कहाँ- कहाँ से सामग्री एकत्र की। श्री महेन्द्र प्रताप सिंह ने अपनी पुस्तक भारत के संरक्षित वन क्षेत्र’ का परिचय देते हुए बताया कि जब तक हिंदी का साहित्य ज्ञान-विज्ञान के विषयों से नहीं जुड़ेगा, उसका विस्तार नहीं हो पाएगा । श्री सिंह ने बताया कि इस पुस्तक को तैयार करने में उन्हें कई राज्यों के कई साथियों का सहयोग मिला। श्री संजीव जायसवाल ने अपनी पुस्तक की जानकारी देते हुए बताया कि एक अच्छा लेखक वही है जोकि बच्चों के लिए लिखे।
पुस्तकों की समीक्षा की शृंखला में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. प्रमोद कुमार ने बटुकेश्वर दत्त पुस्तक को एक सार्थक प्रयास बताते हुए कहा कि भारत के इतिहासकारों ने क्रांतिकारियों का सही आकलन नहीं किया। इतिहास का उद्देश्य होता है कि हम अपने आप को समझें। प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित ने भारत के संरक्षित वन पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि आज की आवश्यकता है कि ज्ञान-विज्ञान विषयों पर हिंदी में पुस्तकें समय की माँग हैं। मुख्य अतिथि भारती बागची ने अपने पिता से जुड़ी कई यादों को साझा करते हुए कहा कि बटुकेश्वर दत्त की जन्मशती के अवसर पर उन पर डाक टिकट, एक स्मारक का निर्माण जरूर होना चाहिए। प्रो. जगमोहन सिंह ने स्पष्ट किया कि बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह सदैव से एक रहे हैं , उनका आकलन अलग-अलग रख कर नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि भगत सिंह जेल में बटुकेश्वर दत्त से बांग्ला सीखा करते थे। अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री उमे’k चंद्राजी ने ऐसे विचारों के प्रचार-प्रसार की जरूरत पर बल दिया ,जिनसे अलगववादी ताकतें कमजोर हों। श्री जयप्रकाश जी ने  आभार व्यक्त किया।
इस आयोजन की महत्त्वपूर्ण घोषणा यह भी रही कि शहीद स्मारक स्वतन्त्रता संग्राम शोध केन्द्र’, लखनऊ के परिसर में बहुत जल्दी नेशनल  बुक ट्रस्ट की पुस्तकों का स्थायी बिक्री केंद्र खुल जाएगा। कार्यक्रम का संचालन नेशनल  बुक ट्रस्ट इण्डिया, नई दिल्ली, के श्री पंकज चतुर्वेदी के द्वारा किया गया जिन्होंने अपनी संस्था के विषय में लोगो को अवगत कराया। कार्यक्रम स्थल पर ट्रस्ट की पुस्तकों की बिक्री बेहद उत्साहजनक रही।

 प्रो. प्रमोद कुमार                           पंकज चतुर्वेदी
मंत्री                                           सहायक संपादक


Friday, November 5, 2010

दीपावली-सन्देश

दीपावली के इस खूबसूरत त्योहार के लिए सुख -समृद्धि और प्रेरणा का सन्देश लेकर  आ रही हैं -तीन संवेदनशील कवयित्रियाँ-डॉ भावना कुँअर , रचना श्रीवास्तव और मंजु मिश्रा , आस्ट्रेलिया ,  और अमेरिका  से । आशा है इनका सन्देश आपको जीवन में नई संकल्प शक्ति से समृद्ध करेगा। प्रस्तुति -रामेश्वर काम्बोज हिमांशु'

1-डॉ भावना कुँअर

रंगोली सजे
दीपों की रोशनी में
अँधेरा मिटे ।

जगमग है
दीपों की कतार से
 हरेक कोना ।

झूम रहे हैं
रंगीन कंदीलों से
घर-आँगन ।

हँसी रोशनी
जीत पर अपनी
अँधेरा रोया ।

करो रोशन
बुझते चिराग़ों को
 इस पर्व में ।
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2-रचना श्रीवास्तव
स्नेह की ,उन्नति की ,ज्ञान की ,वैभव की रौशनी आप को और आप के पूरे परिवार को सदा महकाती रहे -

मस्ज़िद में जलूँ या मंदिर में
झोपड़ी में जलूँ या महल में
भजन में जलूँ या दरगाह पर
चौखट में जलूँ या राह पर
प्रेम गीत गुनगुनाऊँगा
मै दिया हूँ रौशनी फैलाऊँगा ।

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3--मंजु मिश्र
"आँधियों की टक्करों में 
दीप कितने बुझ गए हों
पर भला कब हार माने
हैं, अँधेरों से उजाले  
एक दीपक फिर जला ले।"



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