Monday, April 7, 2008

जब सूरज जग जाता है

जब सूरज जग जाता है
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

आँखें मलकर धीरे-धीरे
सूरज जब जग जाता है ।
सिर पर रखकर पाँव अँधेरा
चुपके से भग जाता है ।
हौले से मुस्कान बिखेरी
पात सुनहरे हो जाते ।
डाली-डाली फुदक-फुदक कर
सारे पंछी हैं गाते ।
थाल भरे मोती ले करके
धरती स्वागत करती है ।
नटखट किरणें वन-उपवन में
खूब चौंकड़ी भरती हैं ।
कल-कल बहती हुई नदी में
सूरज खूब नहाता है
कभी तैरता है लहरों पर
डुबकी कभी लगाता है ।
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घर में आई बिल्ली


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

जब से घर में आई बिल्ली
खा गई दूध –मलाई बिल्ली ।
ताक लगाए बैठी रहती
बन गई चुश्त सिपाही बिल्ली ।।
बिल में चूहे दौड़ लगाते
भूख के मारे बैठ न पाते
बाहर आने से अब डरते
दिन भर उपाय विचारा करते ।
फिर भी घबराते रहते हैं
कर न दे कहीं खिंचाई बिल्ली ।।
हफ़्ते भर में हिम्मत टूटी
बचने की उम्मीद भी छूटी ।
सब बोले-“अब छोड़ो यह घर
दिल से नहीं हट पाता है डर
कहीं और गुज़ारा कर लेंगे”-
सुन मन में मुस्काई बिल्ली ॥